फेमस होने के लिए लोग क्या – क्या नहीं करते ?

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राजीव गुप्ता

फेमस होने के लिए लोग क्या – क्या नहीं करते ? तथाकथित राजनेताओं पर वोट बटोरने का ऐसा बुखार चढ़ जाता है कि उन्हें सारी हदें पार करने से भी कोई गुरेज नहीं होता ! परिणामतः वो हल्की राजनीति करने पर उतर आते है ! जान बूझकर कश्मीर जैसे अत्यंत संवेदनशील मुद्दों पर मूफट की तरह अपना मुंह खोल ही देते है ! वर्तमान वाकया पकिस्तान के तथाकथित नेता इमरान खान जी का है ! भारतीय अख़बारों में छपी खबर के अनुसार क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान ने पाकिस्तान में अपनी राजनीति चमकाने के लिए कश्मीर मुद्दा उठाया है ! लाहौर में एक विशाल रैली को संबोधित करते हुए पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के मुखिया इमरान खान ने कश्मीर से भारतीय सेना के हटाए जाने की मांग की है ! लाहौर में रैली को संबोधित करते हुए इमरान खान ने कहा, ‘मैं हिंदुस्तान को बता देना चाहता हूं कि कश्मीर के लोगों के बीच सात लाख सैनिक तैनात करके तुम्हें कुछ हासिल नहीं होगा। इतिहास गवाह है कि कोई भी सेना किसी भी देश की समस्या का समाधान नहीं कर सकी है।’

ज्ञातव्य है कि पाकिस्तान में 2013 में आम चुनाव होने है ! लाहौर में हुई इस रैली में करीब एक लाख लोग शामिल हुए ! पिछले कुछ महीनों से इमरान खान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए भारत के खिलाफ भड़काऊ ऐसे भाषण दे रहे हैं! कश्मीरी लोगों के अधिकारों की वकालत करते हुए इमरान खान कहते है कि भारत को घाटी से सेना को वापस बुला लेना चाहिए और कश्मीर के लोगों को उनके अधिकार देने चाहिए। इमरान खान ने यह भी कहा कि उनकी पार्टी कश्मीरी लोगों के साथ है और हमेशा उनकी आवाज उठाती रहेगी।

लाख टके का अब सवाल यह है कि इमरान खान जैसे तथाकथित नेताओं में भारत के खिलाफ बोलने की इतनी हिम्मत कैसे आ जाती है ? कही जम्मू – कश्मीर के वर्तमान मुख्यमंत्री श्री उमर अब्दुल्ला के द्वारा दिए गए बयानों से तो नहीं आ जाती ? जिन्होंने कश्मीर से AFSPA (Armed Force Special Power Act ) हटाने की बात की थी ! बयानों के इस दौर में पहले प्रशांत भूषण जैसे फेमस वकील ने भी एक विवादस्पद बयान दिया था ! ज्ञातव्य है कि अभी कुछ दिन पहले ही प्रशांत भूषण जी ने कश्मीर मुद्दे पर जनमत संग्रह की बात कहकर अपनी व्यक्तिगत राय के द्वारा भारत की अखंडता के साथ खिलवाड़ करने का दुस्साहस किया था !

इमरान खान ने सवाल करते हुए कहा, ‘क्या अमेरिकी अफगानिस्तान में कामयाब हो गए ? क्या भारतीय सेना अमेरिकी सेना से भी ताकतवार है ? जब अमेरिका की सेना कामयाब नहीं हो सकती तो फिर भारत की सेना कैसे कामयाब हो सकती है ? इमरान ने सवाल किया कि क्या भारत सात लाख फौजियों के दम पर कामयाब हो सकता है?’ इमरान खान जी जैसे नेताओं के प्रश्नों पर मुझे किसी की लिखी हुई ये पंक्तियाँ याद आ गयी :-

हम डरते नहीं किसी अणु – बमों से , विस्फोटों और तोपों से ,

हम डरते है ताशकंद और शिमला जैसे समझौतों से ,

सियार भेडियों से डर सकती सिहों की ऐसी औलाद नहीं ,

भरतवंश के इस पानी की है तुमको पहचान नहीं ,

एटम बनाकरके तुम किस मद में फूल गए ,

पैसठ , इकहत्तर और निन्यानवे के युद्धों को तुम भूल गए ,

तुम याद करो अब्दुल हमीद ने पैटेंट टैक जला डाला,

हिन्दुस्तानी नेटो ने अमरीकी जेट जला डाला ,

तुम याद करो नब्बे हजार उन बंदी पाक जवानों को ,

तुम याद करो शिमला समझौता इंदिरा के एहसानों को ,

पाकिस्तान ये कान खोलकर सुन ले , अबकी जंग छिड़ी तो यह सुन ले ,

नाम निशान नहीं होगा , कश्मीर तो होगा लेकिन पाकिस्तान नहीं होगा !

लाल कर दिया लहू से तुमने श्रीनगर की घाटी को ,

तुम किस गफलत में छेड़ रहे सोई हल्दी घाटी को ,

जहर पिलाकर मजहब का इन कश्मीरी परवानो को ,

भय और लालच दिखलाकर तुम भेज रहे नादानों को ,

खुले प्रशिक्षण, खुले शस्त्र है खुली हुई शैतानी है ,

सारी दुनिया जान चुकी ये हरकत पाकिस्तानी है ,

बहुत हो चुकी मक्कारी , बस बहुत हो चुका हस्तक्षेप ,

समझा ले अपने इस नेता को वरना भभक पड़ेगा पूरा देश ,

क्या होगा अंजाम तम्हे अब इसका अनुमान नहीं होगा ,

नाम निशान नहीं होगा , कश्मीर तो होगा लेकिन पाकिस्तान नहीं होगा !

भारत को अपने परमाणु बम से डराकर या भारतीय फौजों का मनोबल तोड़ने के लिए इमरान खान जैसे तथाकथित नेता वोट बटोरने के लिए जितनी चाहे बयानबाजी कर ले पर भारत का कुछ बिगाड़ सके ये उनके बूते की बात नहीं !

 

 

1 COMMENT

  1. ऐसे राजीव गुप्ता का यह भावनापूर्ण लेख आम भारतीय के भावनाओं का द्योतक है,पर इमरान खान ने जब यह कहा किइतिहास गवाह है कि” कोई भी सेना किसी भी देश की समस्या का समाधान नहीं कर सकी है।’”तो वे गलत नही थे.इसका जीता जागता उदाहरण उनका अपना देश ही है जो मिटने के कगार पर है,जबकी वहां आजतक सेना के ही कबल पर शासन चलता रहा है.इमरान खान जैसे लोकप्रिय आदमी के लिए कश्मीर के सम्बन्ध में ऐसा कहना आवश्यक नही था.ऐसे भी आदमी को मुंह खोलने के पहले अपने गरेबान में झाँक कर देख लेना चाहिए.रही प्रशांत भूषण की बात तो उनके स्वर में स्वर मिलाते हुए ,यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि कोई भी संवेदनशील इंसान अपने ही देश के लोगों पर सशस्त्र सेना विशेषाधिकार के अंतर्गत पीढी दर पीढी उनके मौलिक अधिकारों का हनन होते देखकर आँख कान मुंह सर्वदा के लिए बंद कर गांधी के तीन बन्दर बन कर नही रह सकता.

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