आमरण अनशन के पैरोकार-प्रभुदयाल श्रीवास्तव

झंडूलाल झापड़वाले कोई साधारण आदमी नहीं हैं| वह एक खास आदमी हैं और उनकी इसी खासियत ने उन्हें शहर का गणमान्य नागरिक बना दिया है|देश के हित में और देश की गरीब और सरकार की मारी निरीह जनता के हित में जब जब भी आमरण अनशन की बात होती है झंडूलाल झापड़वाले को याद किया जाता है|उन्होंनें शहर के व्यस्ततम चौराहे पर एक दुकान खोल रही है|सामने एक बोर्ड लगा है|उस पर सुनहरे और हसीन रंगों से लिखा है”आमरण अनशन के लिये चौबीस घंटे उपलब्ध‌ झंदूलाल झापड़वाले|”

 

जब से मैंने होश संम्हाला है झंडूलालजी सात बार आमरण अनशन पर बैठ चुके हैं|मैं हर बार सोचता था कि झंडूलाल अब मरे तब मरेऔर शहीदों की श्रेणी में नाम लिखाने के लिये शायद मुझे ही श्मशान घाट तक जाना पड़ेगा|किंतु भइयाजी हर बार मुझे मुँह कि खानी पड़ी|वे मरे ही नहीं| मेरी सोच कि सरकार डर गई होगी और झंडू एजेंडे की सभी बातें सरकार ने मान लीं होंगीं|किंतु हर बार अखवारों में छप जाता कि सरकार ने झंडू की एक भी बात नहीं मानी और उन्होंने अनशन तोड़ दिया है| झंडू पुलिस के घेरे में संतरियों ने संतरे का रस पिलवाया और उन्होंने मंत्रियों से हाथ मिलाया| वे शान से अपनी दुकान वापस आये|

मुझे समझ में नहीं आता कमबखत ये कैसा अनशन है |अनशन का मतलब तो यह है कि जब तक मांगें न मानी जायें भूखे रहो प्यासे रहो और मर जाओ, गरीब पब्लिक के लिये मर जाओ ,अपने आप को बलिदान कर दो|आखिर मरना तो सभी को है ,अनशन से मरोगे तो अखवार और चेनल में अंतिम समय तक बने रहोगे औलाद की पूछ परख होने लगेगी|

परंतु झंडुलालजी की तो बात ही निराली है जब भी आमरण की भट्टी से तपकर निकलते हैं चेहरा टमाटर की तरह लाल हो जाता है| भोहें और मूछें महाराणा प्रताप की मूछों और भोहों की तरह खिल जातीं हैं|

एक दिन मैंनें पूछा ‘झंडू दादा आप जिसके विरोध में अनशन पर बैठते हैं उसी के साथ हाथ मिलाते हुये फोटो खिचवाते हैं, हँस हंस कर बातें करते हैं यह क्या माज़रा है?

झंडू ने इधर उधर देखा और धीरे से कान में बोले’भाईजी मैं रिमोट से संचालित होता हूं ,जिसके विरोध में अनशन पर बैठता हूं उसकी सहमति और आदेश से ही बैठता हूं| कब तक अनशन पर बैठना है, कब पुलिस गिरफ्तार करेगी ,कब संतरे का रस पीना है ,कौन पिलायेगा सब पूर्व निर्धारित कार्यक्रम होता है|बड़ा जोखिम का काम है| कभी कभी तो दम निकलने की नौबत आ जाती है |जनता मांगों के समर्थन में नारे लगाती रहती है ,फोटोग्राफर और पत्रकार घेरे रहते हैं ऐसे में कभी कभी आयोजक महोदय व्यस्तताओं के चलते रिमोट दबाना भूल जातॆ हैं तब लगता है बुरे फँसे कहीं जान न गवाना पड़े| तब तो पुलिस वालों को कातर नज़रों से देखता हूं “हे खाकी वर्दी वालों आगे बड़ो पुलिस की लारी में बैठाओ और जेल की यात्रा कराओ|पुलिस के अफसर मुंडी हिला देते हैं ‘ऊपर से अभी तक कोई आदेश नहीं आया है अभी तक| मैं ऊपर वालों को मन ही मन गाली देता हूं साले इस आयोजक मंत्री कोकोई चिंता नहीं है ,न अंगूर का रस पिलवा रहा है न ही गिरफ्तार करवा रहा है या खुदा मदद कर|’

मैं पूछता हूं ‘क्या लाभ है ऐसे अनशन से?’

‘आमरण अनशन का अग्रिम भुकतान लाखों में मिलता है और नेतृत्व के गुण विकसित होते हैं|’

जब से लोगों को इस तरह के आमरण अनशन के बारे में पता लगा है शहर में कई साईन बोर्ड लग गये हैं| कई इंस्टीट्यूशन ट्रेनिग देने के लिये तैयारी कर रहे हैं बस ऊपर से परमीशन चाहिये देखो कब मिलती है|

 

 

 

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