मोदी का डर और नेहरू गांधी

 

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरदार पटेल की जयंती मनाने में इतने व्यस्त रहे कि वे पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी की समाधि पर जाकर श्रद्धांजलि तक अर्पित नहीं कर पाए। ये इस देश की परम्परा रही है कि वर्तमान प्रधानमंत्री पूर्व प्रधानमंत्री की समाधि पर जाता है और श्रद्धा से अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है। इसे राजधर्म कह सकते हैं और जिस पद पर व्यक्ति है उस पद की गरिमा की बात भी कही जा सकती है। परन्तु भारतीय सभ्यता और संस्कृति का सबसे ज्यादा ढिंढोरा पीटने वाली पार्टी के नेता द्वारा यह एक असांस्कृतिक कदम निश्चित ही चैंकाने वाला है। किसी भी राजनेता का कोई भी कदम राजनीति की आहट देता है। इसी तरह मोदी जी का इंदिरा जी की समाधि पर नहीं जाना भी किसी न किसी विचार या मन की थाह की पहचान बताता है।

भारतीय जनता पार्टी की मुश्किल ये है कि उनके पास अपना कोई इतिहास नहीं है और या यूं कहे कि ऐसा कोई इतिहास नहीं है जिसको वे देश की आजादी या राष्ट्रभक्ति से जोड़ सके। इसलिए ऐतिहासिक नेता के अभाव में इस पार्टी ने सरदार पटेल को पकड़ा और उसको भुनाना शुरू कर दिया। ये तो वो ही बात हुई कि जिनके खुद के बाप दादाओं का इतिहास नहीं होता वो बाजार से कोई अच्छा सा फोटो लाकर आंगन में लगा दे और आने जाने वालों को बताए कि ये हैं मेरे दादाजी। भारतीय जनता पार्टी की पृष्ठभूमि संघ की रही है और संघ पर किसी समय गांधी की हत्या के आरोप लगे और इन्हीं लौह पुरूष ने संघ पर अपने हस्ताक्षरों से पाबंदी लगाई थी और इसको राष्ट्र को खतरा देने वाला संगठन बताया था। पटेल कांग्रेसी थे भले ही उनके नेहरू से विवाद रहे हो परंतु विचारधारा कंाग्रेसी ही थी और उन्होंने अपने विचार को कभी इतना उग्र नहीं होने दिया और वे हमेशा कांग्रेस में उदारवादी नेता के रूप में नजर आए। इसी ऐतिहासिक कांग्रेसी नेता को अपना बताकर महान् नेत्री आयरन लेडी इंदिरा गांधी की अनेदखी करना प्रधानमंत्री मोदी जी की किस मानसिकता को बताता है यह कहने की जरूरत नहीं है।

यूं देखा जाए तो कांग्रेस के विरोधी लोग कभी कांग्रेस से नहीं डरते उनका डर हमेशा नेहरू और गांधी से रहा है। मोदी जी कांग्रेस विरोधी होने के नाते ये अच्छे से जानते हैं कि कंाग्रेस संगठन से उनको कोई खतरा नहीं है परंतु नेहरू गांधी खानदान हमेशा उनकी भावी राहों में भी रोड़ा बना रहेगा। मोदी जी एक श्रेष्ठ राजनेता होने के नाते ये भी जानते हैं कि जब तक इस देश में नेहरू और इंदिरा और गांधी जी का नाम रहेगा तब तक कांग्रेस संगठन जिंदा रहेगा और उसका अस्तित्व बना रहेगा। इसलिए मोदी जी दो अक्टूबर की छुट्टी को हमेशा के लिए निरस्त कर स्वच्छता का नारा दिया। ये मोदी जी की मजबूरी है कि महात्मा गांधी का कद इतना बड़ा है कि उनको उपेक्षित भारत में कभी नहीं किया जा सकता परंतु दो अक्टूबर की छुट्टी के नाम पर महात्मा गांधी हमेशा किसी न किसी रूप में याद रहेंगे तो क्यूं न जड़ पर ही चोट की जाए और ये छुट्टी रद्द कर दी जाए ताकि आने वाले समय में अभियान तो लोग भूल ही जाएंगे और गांधी भी धीरे धीरे भूला दिए जाएंगे। यही डर नेहरू और इंदिरा से मोदी जी को सता रहा है और इंदिरा जी की पुण्यतिथि पर उनको श्रद्धांजलि देने नहीं जाना इसी रणनीति का हिस्सा है कि क्यूं इंदिरा जी को याद किया जाए क्यूंकि जब तक इंदिरा जी याद रहेगी उनके कार्य याद रहेंगे उनको आयरन लेडी के रूप में याद किया जाएगा तब तक कांग्रेसी की जड़ों में पानी जाता रहेगा तो क्यूं न इंदिरा को उपेक्षित किया जाए और यही डर मोदी जी को शक्ति स्थल जाने से रोक रहा है। नेहरू की तो आलोचना मोदीजी और संघ शुरू से ही करते रहे हैं। तो वास्तव में ये सिर्फ इंदिरा जी को श्रद्धांजलि नहीं देने तक की बात नहीं है ये विचारधारा की लड़ाई का एक हिस्सा है और कांग्रेस की मूल जड़ को समाप्त करने की रणनीति है कि कैसे करके कांग्रेस को समाप्त किया जाए और ये प्रयास आज से नहीं आजादी के बाद से हो रहे हैं और पिछले लोकसभा चुनावों में पहली बार कांग्रेसी की धुर विरोधी पार्टी को मौका मिला है पूर्ण बहुमत में सत्ता में आने का तो निश्चित रूप से ये लोग अपनी रणनीति और विचारधारा को लागू करने के प्रयास करेंगे। लेकिन शायद मोदी जी भूल रहे हैं कि जब तब आधुनिक भारत के निर्माता की बात होगी तब तब नेहरू याद आएंगे। जब जब देश में बड़ी बड़ी योजनाओं को देखा जाएगा। भेल, सेल, सरदार सरोवर आदि आदि देखे जाएंगे तब तब नेहरू याद आएंगे। जब जब पंचशील के सिद्धांतों की बात होगी नेहरू याद आएंगे। जब जब पाकिस्तान के दो टुकड़े कर अलग बांग्लादेश बनाने की बात होगी इंदिरा गांधी याद आएगी, जब जब बैंको के राष्ट्रीयकरण की बात होगी, जब जब देशी राजाओं के प्रिवी पर्स बंद करने की बात होगी, जब आॅपरेषन ब्लू स्टार करके देश को आतंकवादियों से मुक्त करवाने की बात होगी तब तब इंदिरा गांधी याद आएगी और रही बात महात्मा गांधी की तो वो इस देश की आत्मा है और इस देश की रग रग में गांधी का वास है। भारत की जीवनशैली के रोम रोम में गांधीवाद भरा है इसलिए इन लोगों से मुक्त होकर देश को देखना मुर्खता है। आज अगर मोदी जी सही को सही कहें और गांधी, नेहरू, इंदिरा के दिए योगदान को याद रखें और उनके विकास को आगे ले जाने की बात करें तो अच्छा लगता। मोदी जी की कार्यशैली भी इंदिरा गांधी जैसी ही है फिर क्यूं डर सता रहा है मोदी जी को। भारत के प्रधानमंत्री को दिमाग खुला व दिल बड़ा रखना चाहिए क्यूंकि भारत सिर्फ गुजरात नहीं है और न ही भारत का मतलब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से है।

 

7 COMMENTS

  1. यदि १८८५ में जन्मी राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी द्वारा शिक्षा, व्यापार, व शासन में अंग्रेजी भाषा का निरंतर बोल-बाला हमें फिरंगी को नहीं भुलाने देता तो अवश्य ही श्याम नारायण रंगा की सी मनोवृति के लोग हमें नेहरु गाँधी की याद भी दिलाते रहेंगे| थॉमस बैबिंगटन मैकॉले के एक ही भारतीय सपूत जवाहरलाल नेहरु ने रक्त और रंग में भारतीय होते अंग्रेजी सोच, नैतिकता, और बुद्धि से अंग्रेजों के प्रतिनिधि कार्यवाहक के रूप में तथाकथित स्वतंत्रता के बहुत पहले ही नेता सुभाष चन्द्र बोस से भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का अपहरण कर देश में स्वदेशानुरागपूरित शासन को कभी स्थापित ही नहीं होने दिया| समय आ गया है कि सार्वजनिक हित के लिए हम न कि अंग्रेजी भाषा को परन्तु नेहरु गाँधी समेत राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी को भी भुलाते हुए प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में नव भारत के नए इतिहास की रचना करें|

  2. भारत का दुर्भाग्य रहा कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कांग्रेस नाम की संस्था जीवित रही .इसने राजनीतिक दल के रूप में चुनावों में हिस्सा लिया, यह तो स्वाभाविक ही था कि आजादी के लिये जब पूरे देश का योगदान था, इसने सारा श्रेय स्वयं ले लिया .और रंगा जैसे लोग यह मानने लगे कि आजादी इसी राजनीतिक दल ने दिलवायी और वो भी नेहरु और गांधी परिवार ने ही इस काम को किया. इतिहास तो एक दिन यह सवाल उठाएगा ही. इंदिरा गांधी द्वारा लगायी गयी इमरजेंसी क्या इतिहास उसे भूल जायेगा . सिखों पर हुए अत्याचार इतिहास में जगह नहीं पाएंगे और यह तथाकथित कथन कि जब अक बड़ा पेड़ गिरता है तो उसके नीचे कुछ लोग दबते ही हैं. कितना असंवेदनशील है यह वक्तव्य. आयरन लेडी किस बात के लिए कहा जाये. पहले भिन्दरावाला को अपने मतलब के लिए प्रयोग किया फिर उसके बहाने स्वर्ण मंदिर पर सेना का प्रयोग. यह किसी भी आस्थावान व्यक्ति के लिए सहन करने योग्य नही है. आज भी सिखों को न्याय नहीं मिल पाया है. संजय गाँधी जैसा उनका बेटा जिसका वह आंख मूँद कर उसके कुकृत्यों को समर्थन करती थी यह किसी से छुपा हुआ नहीं. यह भी इतिहास में उल्लिखित हो ही चुका है. फिर नरेन्द्र मोदी को वहां किस बात के लिए जाना चाहिए था. जिन्हें जाना था वो तो गये ही.इसे राजधर्म कह कर लोगों को भ्रमित न करें. हिटलर मुसोलिनी इत्यादि भी तो किसी देश के शाशक ही थे तो आज की पीढ़ी के शाशकों को उन्हें राजधर्म के रूप में याद करना चाहिए. हाँ एक मिसाल जरूर मिलती है चंगेज खान के बारे में ,मंगोलिया का वह वीर नायक था और उसे वहां पूजा भी जाता है
    मेरा यह मतलब नहीं निकालना चाहिए कि इंदिरा गाँधी इन अधिनायकों के बराबर मन लिया जाय पर आयरन लेडी भी नहीं कहना चाहिए .

    बिपिन कुमार सिन्हा

  3. i am not satisfy this article because it not matter of economy and development if any leader went to all leader memories place and he do not works than you thinks that he is a good leader. now our country need a good leader whose can developed country other than memories place.

    I am not support any political party

    thanks u very much and reply me my Id rksms14@india.com

  4. ap ye to btana bhul hi gye ki jb bi bbharat ke do tukde (india +pakistan) hone ki bat ayegi tb bi kangresh yad aayegi. jb bi tibbat mudda ssamne aye ga tb bi nehru yad aayege.. jb bi POK ki bat aayegi tb bi ehru yad aayege…………. vo nehru hi h jinke karan se ham log atomic power ka darja n pa ske

  5. “Jab Emergency ki baat hogi”—-Tab Indira avashya yaad aayegi hi Aayegi”—–Ranga ji suvidha se hi Bhool Gaye?

    JAN TANTRA ke virodh men –indira kaa bahut bada yogadaan Rangaji kaise Bhool gaye?

    • सच कहा डॉक्टर साहब … ऐसे लोगों को आइना दिखाना चाहिए … इंदिरा गाँधी का योगदान इस देश के विकास से ज्यादा विनाश में था … अगर गिनाने बैठे तो सिर्फ इमरजेंसी ही नहीं बल्कि ऑपरेशन ब्लू स्टार को भी याद करना होगा जिसके कारण पंजाब को एक सदी तक आतंकवाद सहना पड़ा … भिंडरावाला जैसे दो कौड़ी के के बदमाश को एक राष्ट्रिय समस्या बनाने में इंदिरा के योगदान को कौन भूल सकता है … राजनीती में हर तरह के भ्रष्टाचार के लिए इंदिरा के योगदान को कौन भुला सकता है …

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