फिल्म समीक्षा: दिल धड़कने दो

-सिद्धार्थ शंकर गौतम-

film

-बड़ी नाव पर लदा बेकार सामान-

कलाकार: प्रियंका चोपड़ा, रणवीर सिंह, अनुष्का शर्मा, फरहान अख्तर, अनिल कपूर, शेफाली शाह, राहुल बोस, रिदिमा सूद, परमीत सेठी, जरीना वहाब, विक्रम मैसी, मनोज पाहवा

निर्देशन: जोया अख्तर

निर्माता: फरहान अख्तर, रितेश सिधवानी

संवाद: फरहान अख्तर

संगीत: शंकर-एहसान-लॉय

कहानी-पटकथा: रीमा कागती, जोया अख्तर

गीत: जावेद अख्तर

रेटिंग: ३ स्टार

 

युवा निर्देशक जोया अख्तर की फिल्में, चाहे वह लक बाय चांस हो या ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा; एक ऐसी पारिवारिक लीक पर चलने का दावा करती हैं जो बड़जात्या और चोपड़ा परिवार के ड्रामे से कोसों दूर है। उनकी ताज़ा प्रस्तुति ‘दिल धड़कने दो’ हालांकि ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा जैसी मनोरंजक न हो किन्तु क्रूज़ यात्रा के दौरान मनमोहन दृश्य कैमरे के कमाल से आकर्षक बन पड़े हैं। फिल्म दिल्ली के अभिजात्य वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रहे एक ऐसे परिवार की कहानी हैं जिसमें भावनाएं तो हैं मगर सतही तौर पर उनमें कोई सामंजस्य नहीं है। परिवार के मुखिया की शादी की तीसवीं वर्षगांठ के मौके पर आयोजित क्रूज़ यात्रा इस अभिजात्य वर्ग के मंसूबों, खोखली आदर्शवादिता एवं कुंठित मानसिकता को बखूबी उभार देती है। वहीं बेमन से निभाए जा रहे संबंधों के मानसिक द्वंद्व को भी यह यात्रा बखूबी उभारती है।

 

कहानी: दिल्ली के अभिजात्य वर्ग के रईस उद्योगपति कमल मेहरा (अनिल कपूर) ने अपनी मेहनत के दम पर अपना मुकाम हासिल किया है। उसकी पत्नी नीलम (शेफाली शाह) ने हर कदम पर उसका साथ दिया है मगर दोनों के वैवाहिक जीवन से प्रेम गायब है। इनकी बेटी आयशा मेहरा (प्रियंका चोपड़ा) की शादी रईस बिजनसमैन मानव (राहुल बोस) से हो चुकी है और वह भी अपनी कंपनी चलाती है पर पारिवारिक जीवन से दुखी है। कमल मेहरा का बेटा कबीर (रणवीर सिंह) पायलट बनना चाहता है, लेकिन अपने पापा की जिद के चलते बेमन से वह उनकी कंपनी ज्वाइन करता है मगर चाहकर भी अपने दिल की बात किसी से बता नहीं पाता गोयाकि परिवार का हर सदस्य सफल होकर भी भीतर से संतुष्ट नहीं है। इसी दौरान कमल मेहरा को पता चलता है कि उसका बिज़नेस घाटे में जा रहा है और उसे किसी की मदद की ज़रूरत है। कमल दंपति की शादी की तीसवीं वर्षगांठ भी नज़दीक है तो वह अपने रिश्तेदारों और मित्रों के साथ क्रूज़ यात्रा का प्लान बनाता है।

 

अपने बिज़नेस को बचाने की खातिर कमल मेहरा अपने दुश्मनों को भी बुलाने से नहीं चूकता क्यूंकि उसका सोचना है कि यदि उसका एकलौता बेटा दुश्मन खेमे की एकलौती बेटी नूरी सूद (रिद्धमा) को अपने प्यार में फसा ले तो उसका बिज़नेस भी बच जाएगा और उसका परिवार भी पूरा हो जाएगा। कहानी इसी उधेड़बुन में आगे बढ़ती है और सभी मेहरा परिवार के साथ दस दिन की क्रूज़ यात्रा पर निकल पड़ते हैं। यहां कबीर की मुलाक़ात डांसर फराह (अनुष्का शर्मा) से होती है और दोनों पहली नज़र में प्यार कर बैठते हैं। दूसरी ओर आयशा की मानव से पटरी नहीं बैठ रही है और क्रूज़ पर आते ही वह तलाक की नौबत तक आ जाती है। दरअसल आयशा अपने पापा की कंपनी के मैनेजर के बेटे सनी (फरहान अख्तर) को चाहती थी लेकिन पापा के कारण हालात ऐसे बने कि आयशा को परिवार की मर्जी के चलते मानव से शादी करनी पड़ी। इजिप्ट में सनी भी क्रूज़ पर सवार होता है और आयशा की मोहब्बत को दोबारा पंख लग जाते हैं। रिश्तों की इस उलझी कहानी में आगे क्या होता है, यह जानने के लिए आपको सिनेमाघरों का रुख करना होगा।

 

अभिनय: कमल मेहरा के किरदार में अनिल कपूर ने बेहतरीन अभिनय किया है। ऐसा लगता है जैसे अनिल कपूर सदाबहार अभिनेता देव आनंद के चिर जवानी वाले फॉर्मूले पर चल पड़े हैं। बढ़ती उम्र का उनके अभिनय और हाव-भाव पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। उनकी पत्नी नीलम के किरदार में शैफाली शाह ने यह साबित किया है कि यदि उन्हें भरपूर अवसर मिलें तो वे किरदार ने न्याय कर सकती हैं। प्रियंका चोपड़ा और रणवीर सिंह फिल्म में भाई-बहन बने हैं और उनकी केमिस्ट्री जमकर निखरी है। दोनों के कई प्रसंग ऐसे बन पड़े हैं जो भाई-बहनों की आंखें नम कर देंगे। राहुल बोस को जिस तरह का किरदार मिला था वे उसमें फिट हैं मगर कहना होगा कि उन जैसे प्रतिभाशाली अभिनेता की अभिनय क्षमता का जोया अख्तर ने ह्रास किया है। फरहान अख्तर का किरदार फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष है मगर जब तक वह पर्दे पर आता है, फिल्म बोरियत की सीमाएं लांघ जाती है। फरहान ने अपने किरदार से न केवल न्याय किया है बल्कि फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाने और मनोरंजक बनाने में भी मदद की है।

 

डांसर के किरदार ने अनुष्का शर्मा ने बॉम्बे वेलवेट के बाद फिर निराश किया है। एनएच-१० जैसी कठिन फिल्म में उनका अभिनय देखकर लगा था कि वे कुछ अलग करेंगी मगर अब उनकी अभिनय को लेकर एकरूपता खीज पैदा करने लगी है। अन्य कलाकारों में मनोज पाहवा की एक्टिंग मजेदार है, बाकी चरित्रों ने अपना काम बस कर दिया है। फिल्म में कहानी और किरदारों के सूत्रधार के रूप में प्लूटो नाम का डॉगी कहानी को आगे बढ़ाता है और आमिर खान की आवाज़ में आप इसकी बातें सुनकर थोड़ा सा सुकून पा सकते हैं।

 

निर्देशन: रीमा कागती और जोया अख्तर की संयुक्त रूप से लिखी गई कहानी को जोया अख्तर जिस ढंग से पर्दे पर उतारना चाहती थीं, उसमें वे चूक गई हैं। पटकथा कहीं-कहीं बेहद बोझिल है और ऐसा लगता है जैसे दृश्यों को जानबूझ कर लंबा खींचा गया है। क्रूज़ यात्रा के दौरान विभिन्न देशों के मनमोहक दृश्य आपका मन मोह सकते हैं मगर वे सीमित ही हैं। जिस अभिजात्य वर्ग की मनोदशा का जोया ने वर्णन किया है, उससे कमोवेश हर भारतीय वाकिफ है। शंकर-एहसान-लॉय का संगीत ठीक-ठाक है। खासकर पूरे परिवार के साथ वाला नृत्य खूबसूरत बन पड़ा है। गीतों और डायलॉग्स पर जावेद अख्तर की स्पष्ट छाप दिखाई पड़ती है। जोया का निर्देशन अब एकरूपता लेता जा रहा है जो उनके लिए अच्छा नहीं है।

 

देखें या नहीं: खूबसूरत लोकेशंस और कुछेक अभिनेताओं का अभिनय देखने के लिए फिल्म देखी जा सकती है वरना फिल्म बोझिल एवं उबाऊ है। अगर आप अख्तर परिवार के सिनेमा के फैन हैं तो फिल्म एक बार देखी जा सकती है। यदि आप जिंदगी न मिलेगी दोबारा जैसी फिल्म समझकर इसे देखने जा रहे हैं तो आप निश्चित रूप से मायूस होंगे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here