अग्नि से मिलती भारत को ताकत

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 डॉ. मयंक चतुर्वेदी
भारतीय परम्परा में अग्नि प्राचीनकाल से ही पूजनीय रही है। यहां अग्निहोत्र है। यहां मुक्ति का मार्ग अग्नि से होकर जाता है। यहां पंचतत्व में विलीन तभी माना जाता है, जब अग्निमय शरीर और शरीरमय अग्नि हो जाय। यहां यज्ञ से अग्नि देवताओं को भोजन कराती है। यही वह भारत है जहां स्वर्ण जैसा चमकने के लिए अग्निमय तप का विधान बताया गया है और जब स्वयं ईश्वर भी जब इस धरती पर जन्म लेकर आते हैं तो वे योगेश्वर कृष्ण अपने को अग्नि कहकर संबोधित करते दिखाई देते हैं। प्राचीन शास्त्र ग्रंथ वेद हों, उपनिषद हों या श्रीमद्भागवत जैसे धार्मिक ग्रंथ, सभी एक स्वर में कह रहे हैं कि हे अग्नि देव ! आपके प्रकाश से ही इस जग का प्रकाश है। आप सूर्य हो, आप जीवन हो, आप ही हो इस जग का सार। भोजन पकाने से लेकर जीवन चक्र से जुड़ा कोई ऐसा कार्य नहीं, जो आपके बिना पूरा होता हो। शरीर में जठराग्नि भी आप हो और भोजन के प्राण तत्व भी आप ही हो।
ऋग्वेद में अग्नि सूक्त का विधान मिलता है, जिसे कि आज दुनिया अग्नि की जानकारी रखने और उसके महत्व को समझने वाली सबसे प्राचीनतम रचना स्वीकार करती है। अग्निदेवता यज्ञ के प्रधान अंग हैं। ये सर्वत्र प्रकाश करने वाले एवं सभी पुरुषार्थों को प्रदान करने वाले हैं। सभी रत्न अग्नि से उत्पन्न होते हैं और सभी रत्नों को यही धारण करते हैं। यही भारतीय धारणा है। ऋग्वेद में प्रथम शब्द अग्नि प्राप्त हुआ है। अत: यह कहा जा सकता है कि विश्व-साहित्य का प्रथम शब्द अग्नि ही है। ऐतरेय ब्राह्मण आदि ब्राह्मण ग्रन्थों में यह बार-बार कहा गया है कि देवताओं में प्रथम स्थान अग्नि का है।
आचार्य यास्क और सायणाचार्य ऋग्वेद के प्रारम्भ में अग्नि की स्तुति का कारण यह बतलाते हैं कि अग्नि ही देवताओं में अग्रणी देव हैं और सबसे आगे-आगे चलते हैं। पुराणों में विवरण है कि इन्हीं को आगे कर युद्ध में देवताओं ने असुरों को परास्त किया था। इनकी पत्नी स्वाहा है। ये सभी देवताओं के मुख हैं और इनमें जो आहुति दी जाती है, वह इन्हीं के द्वारा देवताओं तक पहुँचती है। केवल ऋग्वेद में अग्नि के दो सौ सूक्त प्राप्त होते हैं।
इसी प्रकार यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद में भी इनकी स्तुतियाँ प्राप्त होती हैं। ऋग्वेद के प्रथम सूक्त में अग्नि की प्रार्थना करते हुए विश्वामित्र के पुत्र मधुच्छन्दा कहते हैं कि मैं सर्वप्रथम अग्निदेवता की स्तुति करता हूँ, जो सभी यज्ञों के पुरोहित कहे गये हैं। पुरोहित राजा का सर्वप्रथम आचार्य होता है और वह उसके समस्त अभीष्ट को सिद्ध करता है। उसी प्रकार अग्निदेव भी यजमान की समस्त कामनाओं को पूर्ण करते हैं।
भारतीय वांग्मय में व्याप्त अग्नि की विशेषताओं से पता चलता है कि भारत में आज से हजारों साल पहले ही अग्नि के महत्व को जान लिया गया था। अग्नि से जीवन चक्र कैसे जुड़ा है, यह समझकर भारत के मनीषियों ने उसके साथ तादात्म स्थापित करने के प्रयास किए और वे बहुत हद तक उसमें सफल रहे। रामायण एवं महाभारत काल में अग्नेय-अस्त्रों का प्रयोग एवं उसका महत्व हम सभी को देखने और सुनने को मिलता ही है। कुल मिलाकर इन सभी बातों का मुलम्मा यही है कि ताकत वह फिर किसी भी रूप में हो, सम्मान और पूजन उसी का होता है।
अब देखो न ! भारत में अमेरिका के राष्ट्रपति आए, हमारी ओर से उनके सम्मान में जो करना चाहिए था, वह किया ही गया लेकिन वे जो अपने हित में कर गए यह बात ज्यादा महत्व रखती है। अमेरिका ताकतवर देश है, दुनिया की एक नंबर की शक्ति। वह किसी भी संप्रभु राष्ट्र में कभी भी कहीं भी बिना सूचना दिए घुस सकता है। यदि उसका कोई शत्रु वहां है, तो उसे रातो-रात पाकिस्तान में ओसामा बिन लादेन की तरह मार गिरा सकता है। वह ईराक को परमाणु हथियार रखने का दावा ठोककर जमींदोज कर सकता है। वह जब इच्छा हो भारतीयों को कोई भी बहाना बनाकर अपने देश से निकाल सकता है। परमाणु परीक्षण के नाम पर स्वयं के साथ दुनिया के कई देशों से सामूहिक आर्थिक और अन्य प्रकार के प्रतिबंध भारत पर लगवा सकता है। अपनी उन्नत तकनीक देने से जब चाहे तब मना बीच में ही मना कर सकता है, लेकिन इस पर भी उससे दुनिया यह प्रश्न उठाने का समर्थ्य नहीं रखती कि किसी देश की संप्रभुता को बिना सूचना के कैसे चुनौती दी जा सकती है। उसके पास डालर है। तकनीक है और अग्नेयास्त्र हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत अपने मन में एक सुनिश्चित लक्ष्य लेकर आए थे और वह लक्ष्य था भारत से अमेरिका के लिए अरबों डालर का व्यापार करना, वह भी अपनी शर्तों पर।  और वे उसे पूरा करने में कामयाब भी रहे। वे अमेरिका के परमाणु संयंत्र और उपकरण प्रदाताओं को परमाणु उत्तरदायित्व से मुक्त कराना चाहते थे, भारत को अपने हथियार भी बेचना चाहते थे। ओबामा दोनों कार्यों में विजय हासिल करने में सफल रहे। इसका नकारात्मक पक्ष यह है कि यदि किसी परमाणु रियेक्टर में हादसा हो जाता है, तो बिजली संयंत्र आपूर्तिकर्ता (अमेरिकी) कहीं से भी जिम्मेदार नहीं माने जाएंगे। हादसे का दंश अकेला भारत झेलेगा, जिसे हम भोपाल गैस कांड की पुनरावृत्ति भी मान सकते हैं।
वस्तुत: बराक ओबामा देश की कुल 108 लाख करोड़ की अर्थव्यवस्था वाले भारत की 20 प्रतिशत जीडीपी की शक्ति रखने वाले 22 लाख करोड़ रुपए के सामर्थ्यवान 13 उद्योगपतियों को अपने से हाथ मिलाने के लिए लाइन में खड़ा कर उनसे नमस्ते करके अमेरिका वापिस जा चुके हैं। वास्तव में यही है अमेरिका की असली ताकत, वह जब चाहे जिससे जो अपने हित में करवाना चाहता है, आखिर वह करवा ही लेता है।
आज अच्छी बात यह है कि भारत जिसे कर्मकाण्ड का हिस्सा मानकर अभी तक अपनाता आ रहा था, उसे उसने व्यवहार में मानना और स्वीकारना आरंभ कर दिया है। हमारे प्रधानमंत्री और उनकी सरकार के साथ हमारे वैज्ञानिक इन दिनों सीधे तौर पर शक्ति की आराधना करते हुए देखे जा सकते हैं। अग्नि ही शक्ति है और ऊर्जा ही प्राण है इसे जानकर एवं समझकर काम करने के अब सफल परिणाम आना भी शुरू हो गए हैं। आज हम पुनश्च भारतीय वांग्मय में दी गई अग्नि की स्तुति को आधुनिक संदर्भों में जुड़ता देख रहे हैं। पांच हजार किलोमीटर की मारक क्षमता वाले अन्तर्महाद्वीपीय मिसाइल अग्नि -5 का उड़ीसा के बालेश्वर से सफलतापूर्वक परीक्षण कर हम भी अमेरिका,रूस, फ्रांस और चीन के बाद ऐसे पांचवें देश बन गए हैं, जिसने इस तरह का अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल को प्रक्षेपित किया है।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने पचास करोड़ की लागत के साथ चार साल की कड़ी मेहनत के बाद तैयार इस मिसाइल का सफल परीक्षण कर बता दिया है कि हमने भी अब तन्मयता से अमेरिका की तरह ताकतवर देश बनने की दिशा में ऊर्जा-शक्ति की आराधना शुरू कर दी है। अग्नि-5 मिसाइल की लंबाई 17.5 मीटर और वजन पचास टन है। अग्नि-5 करीब एक टन के परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है। यह महज बीस मिनट में ही करीब पांच हजार किलोमीटर की दूरी तक वार कर सकती है, अर्थात् यह मिसाइल चीन और यूरोप के सभी ठिकानों तक निशाना लगाने की ताकत रखती है।
 agni 5को एक खास तरह के कनिस्तर के सहारे प्रक्षेपित किया गया है। इससे पहले प्रक्षेपित की गई सभी अग्नि मिसाइलों से यह मिसाइल आधुनिक तकनीकी से लैस है। इससे पहले अग्नि मिसाइल का दो बार 19 अप्रैल 2012 और 15 सितंबर 2013 को परीक्षण किया जा चुका है। वस्तुत:  अग्नि प्रक्षेपास्त्र (संस्कृत: अग्नि), मध्यम से अंतरमहाद्विपीय दूरी तक मार करने में सक्षम प्रक्षेपास्त्रों का समूह है, जो भारत के एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम द्वारा स्वदेशी तकनीक से विकसित की गईं हैं। भारत, 2008 तक इस प्रक्षेपास्त्र (मिसाइल) समूह के तीन संस्करण प्रक्षेपास्त्र तैनात कर चुका है।
अग्नि-1 मध्यम दूरी का बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र है, जिसकी मारक क्षमता सात सौ से एक हजार दो सौ पचास किलोमीटर है। इसी प्रकार अग्नि-2 मध्यवर्ती दूरी का बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र है, जिससे दो हजार से तीन हजार किलोमीटर तक वार किया जा सकता है। इस श्रेणी में अग्नि-3 मध्यवर्ती दूरी का बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र एक ऐसी मिसाइस है, जिसकी मारक दूरी 3,500 – 5,000 किलोमीटर तक रखी गई है। वहीं, अग्नि-4 मध्यवर्ती दूरी का बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र अपने से 3,000 – 4,000  किलोमीटर दूरी तक के लक्ष्य को भेदने में सक्षम है। अब हमारे वैज्ञानिकों ने अग्नि-5 अंतरमहाद्विपीय बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र का सफल परीक्षण किया है, जिसकी मारक क्षमता पूर्ववर्ती अग्नि प्रक्षेपास्त्रों की तुलना में दुगुने से भी ज्यादा है। यह मिसाइल पांच हजार से आठ हजार किलोमीटर तक अपने लक्ष्य को भेद सकती है। इसके बाद अब हमारे वैज्ञानिक अग्नि-6 अंतरमहाद्विपीय बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र बनाने की तैयारियों में जुट गए हैं, जो कि इससे भी आगे 8,000 – 10,000 किलोमीटर तक दुश्मन पर अटैक करने में सक्षम होगी।
फिलहाल, अभी पूरे तरीके से अग्नि -5 के सेना में शामिल किए जाने के बाद ये मिसाइल भारत की परमाणु निरोधक क्षमता को कई गुना बढ़ा देगी, यह एक तय बात है। आज अग्नि से भारत को जिस प्रकार की ताकत मिल रही है। उसे देखकर यही कहना होगा कि हम भी अमेरिका जैसे ताकतवर बनने में अब बहुत पीछे नहीं रह गए हैं। यदि भारत के प्रयास चहुंदिशाओं में इसी प्रकार आगे बढ़ते रहे, तो कहना होगा कि ये 21वीं सदी हमारे लिए स्वर्णिम सदी अवश्य बनकर उभरेगी।

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