आधुनिकता की चमक और रिश्तों की मर्यादा

सुरेश हिंदुस्थानी

भारतीय संस्कृति के संवाहकों में जिस प्रकार से पाश्चात्य जीवन शैली की झलक की घुसपैठ हुई है, उससे यह तो सवाल पैदा हुआ है कि हम भारतीय आखिर कौन से मार्ग पर जा रहे हैं ? क्या यह मार्ग भारत की जीवंतता को प्रदर्शित करता है, अगर नहीं तो हम सब जाने अनजाने में अपने देश के खिलाफ बहुत बड़ा षड्यंत्र कर रहे हैं। यह षड्यंत्र भारतीयता को समाप्त करने का प्रयास है। ऐसी बातों से यह सवाल भी मन में आता है कि क्या हम भारतीय रिश्तों की मर्यादा पर कुठाराघात तो नहीं कर रहे ? अगर यह सही है तो इसके लिए हम ही दोषी हैं। शीना बोरा हत्याकांड ने एक बार फिर से रिश्तों की मर्यादा को तार तार कर दिया है, आधुनिकता के नाम पर जिस प्रकार से हमारे देश में संस्कारों का क्षरण किया जा रहा है, उससे जीवन के उज्ज्वल पृष्ठों पर कालिख पोतने का ही काम हो रहा है। इस आधुनिकता के नाम पर संस्कारो में जो खोखलापन आ रहा है, उसका प्रभाव भारत की युवा पीढ़ी पर पड़ रहा है। इन्द्राणी मुखर्जी उस प्रभाव की जीती जागती झलक है। ऐसा नहीं है कि केवल इन्द्राणी मुखर्जी ही रिश्तों का गला घोंट रही है, बल्कि आज समाज का बहुत बड़ा हिस्सा इस आधुनिकता की आंधी में अपने पुरातन संस्कारों से दूर होता जा रहा है। इन्द्राणी मुखर्जी जैसी महिला ने आधुनिकता के नाम पर रिश्ते बनाये हैं तो तोड़े भी हैं। लेकिन सवाल यह भी है कि रिश्ते वे नहीं होते, जो टूट जाएं। रिश्ते तो वे होते जो आजीवन पुष्ट बने रहें। इन्द्राणी मुखर्जी जैसी महिलाएं रिश्तों की परिभाषा को समाप्त करने का काम कर रहीं हैं। इन्द्राणी मुखर्जी जैसी आधुनिक महिला रिश्तों की मर्यादा क्या जाने। उसने विवाह से पूर्व ही शीना बोरा को जन्म दिया, ऐसी बातें भारतीय समाज में किसी भी रिश्ते के तहत न तो कभी स्वीकार की गईं हैं और न कभी स्वीकार की जाएंगी। लेकिन सवाल फिर से खड़ा होता है कि हमारे देश में आधुनिकता के नाम पर जो खेल खेला जा रहा है, उसका दायरा दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। अगर इसके बढ़ने की यही गति रही हो वह दिन दूर नहीं होगा जब भारत की वास्तविकता किसी गहरी खाई में समा जाएगी।

indraniहम जानते हैं कि इन्द्राणी मुखर्जी जैसी महिलाओं के लिए रिश्तों का कोई मूल्य नहीं है। इन्द्राणी ने अपने जीवन में केवल पैसे को महत्व दिया और पैसे की खातिर ही अपने संबंध बनाती चली गई। पैसों की चकाचौंध में इन्द्राणी ने जो गुनाह किया है, वह उसकी नजर में एक खेल है। जिस माँ पर अपने बच्चों के भविष्य बनाने का दारोमदार होता है, वही माँ जब बच्चों की दुश्मन बन जाती है, तब बच्चे का भविष्य क्या होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है। शीना बोरा ने जो किया वह इन्द्राणी की ही देन है। इन्द्राणी ने भले ही यह बात सार्वजनिक नहीं की की शीना उसकी बेटी है, लेकिन शीना को तो पता ही होगा की इन्द्राणी मेरी माँ है। माँ के चरित्र को देखकर शीना ने जो कुछ किया, वह लाजिमी ही था। क्योंकि उसे भी संबंधों की मर्यादा का आभास शायद नहीं होगा। हम जानते हैं कि लड़की पर माँ के रूप की छाया होती है, माँ जैसी होगी वैसी ही उसकी संतान होगी। कुल मिलाकर इन्द्राणी और शीना ने जो कृत्य किया है वह भारतीय समाज की मर्यादा के प्रतिकूल ही है। वास्तव में भारतीय जीवन मूल्य की अनमोल धरोहर के रूप में स्त्री का चरित्र का बहुत महत्व है।

भारत में रिश्तों की मजबूत बुनियाद समस्त विश्व के लिए एक अचम्भा है। भारतीय संस्कृति में परिणय बंधन एक संस्कार है, लेकिन बार बार शादी करना जीवन का विकार ही कहा जाएगा। हम जानते हैं कि भारतीय जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु तक सोलह संस्कारों का महत्व होता है। जिस व्यक्ति के जीवन में यह सोलह संस्कार होते हैं, वह जीवन की पूर्णता को तो प्राप्त करता ही है, साथ ही जीवन की सार्थकता को भी चरितार्थ भी करता है। आज पैसों की खनक के बीच जिस प्रकार से रिश्तों की बलि दी जा रही है, उसकी उपज है इन्द्राणी मुखर्जी।

हमारे देश में शादी विवाह कोई मजाक नहीं बल्कि एक मजबूत संस्कार है। विदेशों में भले ही रिश्ते मजाक होते हों, लेकिन भारत में ऐसा नहीं है।

वर्तमान में इन्द्राणी मुख़र्जी जैसी महिलाएं रिश्तों के नाम पर कलंक हैं। अपने जिगर के टुकड़े को मारने की कल्पना तो कोई भी माँ नहीं करती, और इन्द्राणी ने अपनी ही लड़की शीना बोरा को मौत के घाट उतार दिया या उतरवा दिया। केवल अपने आपको आधुनिक प्रदर्शित करने के लिए इन्द्राणी शायद यह भूल गई कि वह भी कभी किसी की लड़की थी।

सनसनीखेज शीना बोरा हत्याकांड ने भारतीय समाज को सोचने का अवसर दिया है कि वह किस तरफ आगे बढ़ रहा है। रिश्तों में खोखलापन, झूठ की बुनियाद पर टिके रिश्ते, विवाह को खेल बना देना, रिश्तों में जिम्मेदारी से ऊपर हावी व्यक्तिगत सोच ने हमें कहां लाकर पटक दिया है,  क्या यह आधुनिकता है ? आधुनिक होने के लिए क्या भारतीय मूल्यों को छोडऩा जरूरी है। अपने चिर-पुरातन और जीवन को संयमित करने वाले संस्कारों के साथ हम आधुनिक नहीं हो सकते ? हम आधुनिक तो बनें लेकिन भारतीय संस्कारों के साथ।

विश्व के सारे देशों का अध्ययन करने से पता चलता है कि पाश्चात्य शैली को अंगीकार करने वाले कई देश हैं, जिसमें केवल भौतिक सुख तो मिलता है, लेकिन आंतरिक सुख का नितांत अभाव है। वहां रिश्तों की मर्यादा भी नहीं है। लेकिन हमारा देश मजबूत रिश्ते वाला देश माना जाता है। विश्व के कई देश भारत की इस विशेषता से प्रभावित है। उनके नागरिक भी आज आंतरिक खुशी पाने के लिए भारतीयता की तरफ अपने कदम बढ़ा रहे हैं।

एक बड़ा सवाल है आखिर तथाकथित प्रगतिशीलता की दौड़ में अपने मूल्यों को खोकर हमने क्या पाया है। चमकती दुनिया में रहने वाली इंद्राणी मुखर्जी की कहानी आज बहुत से परिवारों का यथार्थ है। जहां हर कोई अपने कर्तव्य-जिम्मेदारी निभाने में असफल हैं। रिश्ते दिखावटी अधिक हैं। उनमें मिठास नहीं है, संवेदनाएं नहीं हैं, जीवतंता नहीं है। चमकती दुनिया के पीछे कितना गहन अंधकार पसरा रहता है, इसके कई उदाहरण शीना बोरा हत्याकांड प्रकरण से उजागर हो रहे हैं। एक घर में, एक छत के नीचे रहते हुए एक-दूसरे से अजनबी हैं। एक-दूसरे के जीवन की दिशा का पता नहीं है और जब पता चलता है तब रिश्तों को तार-तार कर देने वाला विस्फोट होता है। कितने आश्चर्य और चिंता की बात है कि समाज तो क्या घर में ही किसी को पता नहीं होता है कि शीना बोरा और इंद्राणी मुखर्जी का रिश्ता क्या है। इंद्राणी अपनी महत्वाकांक्षाएं पूरी करने के लिए बार-बार रिश्ते तोड़ती है। खुद के पूर्व विवाह से पैदा हुए बच्चे, पति के पूर्व विवाह से पैदा हुए बच्चे, कौन भाई-कौन बहन? उफ! रिश्तों का मकडज़ाल। ये मकडज़ाल इसलिए क्योंकि जीवन को हमने गंभीरता से लेना छोड़ दिया। भारतीय मूल्य हमने कोरे ढकोसले बताकर छिटक दिए। हम भूल गए कि बरसों से हमारी परिवार व्यवस्था दुनिया के लिए कौतुहल और सीखने का केन्द्र बनी रही है। दुनिया सोचती है कि कैसे भारतीय परिवारों में ‘एक के लिए सब और सबके लिए एक’ का विचार काम करता है। कैसे यहां खुद से अधिक चिंता अपनों की रहती है ? दरअसल, इन सबके पीछे भारतीय मूल्य हैं। आज भी भारतीय मूल्यों को साथ लेकर जी रहे अनेक परिवार हमारे उदाहरण हैं, जहां न रिश्तों में खोखलापन है, न धोखा है और न ही जीवन में तनाव है। भारतीय परिवारों की खूबसूरती है कि वे सुख-दुख में एक दूसरे के साथ खड़े रहते हैं। बहरहाल, आधुनिक होने की कीमत पर हम क्या खो रहे हैं। यह विचार करने का वक्त भी यही है। जीवन को हम संतुलित तरीके से जीना शुरू नहीं करेंगे तो कभी आरुषी, कभी शीना बोरा हत्याकांड सामने आते ही रहेंगे। इंद्राणी की कहानी से हमें सीख लेनी चाहिए कि आखिर हमारे समाज की दिशा क्या हो ? जिस परिवार व्यवस्था का उदाहरण दुनिया में दिया जाता है, उसे कैसे बचाए रखा जा सकता है ? हम कैसे उसे संवद्र्धित करें ? यह भी हमें समझ लेना चाहिए कि आधुनिक होने का मतलब अपने संस्कारों-मूल्यों का त्याग करना कतई जरूरी नहीं है। खून के रिश्तों में अविश्वास की दरार और गहरी हो, उससे पहले खून को फिर से गाढ़ा करना होगा। हमारे मूल्य ही हमें बचाएंगे। मूल्य नहीं होंगे तो मानवीय रिश्तों का तानाबाना खत्म होना तय है।

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