जगमोहन फुटेला
कुछ भी कहो, सयानी या चतुर, अन्ना टीम ने हिसार में इस बार प्रचार के हथियार से काफी समझदार तरीके से प्रहार किया है. हिसार में उस ने अपनी गोटी चली बहुत सही समय पर है. देखभाल और सोच विचार के. अधिकतम लाभ और न्यूनतम हानि का राजनीति गणित मिलान करने के बाद.
हिसार जिले के किसी भी गाँव के किसी भी खेत में काम कर रहे मजदूर से लेकर खुद सरकार के ख़ुफ़िया तंत्र तक सबको पता है कि कांग्रेस का हिसार में क्या हाल होने वाला है. अरविन्द केजरीवाल के पास हिसार में निश्चित ही इन दोनों से ज्यादा समझ वाले लोग होने चाहियें. उनकी फीडबैक दुरुस्त है. उन्हें लगा कि जो होना है वो होने जा ही रहा है तो क्यों न एक लात वो भी मार ही लें हिसार में ढहती हुई दीवार पर. कहने को आसान हो जाएगा कि उन्हें जन लोकपाल बिल पे जनता का फतवा मिल गया है. जन लोकपाल बिल से अपना कोई लम्बा चौड़ा सैधांतिक विरोध नहीं है. मगर ये मान लेना गलत होगा कि हिसार में चुनाव जन लोकपाल के मुद्दे पर हुआ या कि कांग्रेस अगर हारी तो वो सिविल सोसायटी की वजह से हारी. कांग्रेस को अगर हारना है तो उसकी वजह और कोई भी हो कम से कम हिसार में उसकी वजह जन लोकपाल बिल नहीं है. हिसार के चुनाव को प्रभावित करने वाले कारण और हैं, वे पहले से थे और सिविल सोसायटी को मालूम भी थे. तभी वो आई. मान के चलिए कि अगर एक परसेंट भी शक होता सिविल सोसायटी को कांग्रेस के जीत सकने का तब तो कतई न आती वो किसी भी तरह का प्रचार करने हिसार में. जीत जाने की हालत में अगर कहीं कांग्रेस ही कहने लगती कि चलो हो गया जन लोकपाल बिल पे जनमत संग्रह, चलो समेटो अब अपना आन्दोलन और अभियान तो लेने के देने पड़ जाते. सो, सिविल सोसायटी आई हिसार में प्रचार करने तो खूब सोच समझ कर आई. सोच के कि, बह ही रही है गंगा तो धो ले हाथ वो भी.
हिसार में जीत हार के कारणों में हो सकती है अन्ना की मुहीम भी एक वजह. लेकिन चुनावी राजनीति के हिसाब से जानकारों की समझ से असल कारण इस मुहीम के बहुत पहले से कुछ और ही हैं. मसलन पहले संगोत्र विवाह को लेकर खापों का सरकार से मतभेद और फिर आरक्षण को लेकर जाटों का आन्दोलन. ऊपर से मिर्चपुर काण्ड के बाद दलितों के रुख में आया बदलाव. इसके बाद काग्रेस के पास ले दे कर उसके परंपरागत वोटर रहे होंगे. कुछ जाटों समेत. तो यहाँ रही सही चौटाला ने पूरी कर दी. उन्होनें अपनी तरफ से अपनी पार्टी के सबसे मज़बूत कहे जा सकने वाले उम्मीदवार को उतारा. ये मान कर कि वो जीत गया तो बल्ले बल्ले और अगर कहीं हार भी गया तो भी कांग्रेस और उसमें मौजूदा मुख्यमंत्री की किरकिरी तो वो बड़े आराम से कर ही देगा.
भाजपा तो कुलदीप के साथ आई ही इस लिए थी कि भजन लाल के प्रति सहानुभूति वाले वोटरों को साथ ले वो हिसार में मतदाताओं के हो चुके ध्रुवीकरण का फायदा उठाएगी. देख पा रही थी वो कि दलित लान्ग्रे के साथ नहीं, जाट भी नाराज़. ऐसे में ‘वेव’ जो बनेगी उसका फायदा भी उसे मिलेगा ही. कुलदीप लड़ेंगे, ये सब को पता था. मगर इनेलो से अजय आ सकते हैं इसका अंदाजा कांग्रेस को नहीं था. दो कारणों से. एक कि अजय विधायक हैं और कल नहीं तो परसों मुख्यमंत्री पड़ के दावेदार और दुसरे पार्टी महासचिव होने के नाते उनका हार जाना इनेलो शायद बर्दाश्त नहीं करना चाहेगी. लेकिन चौटाला दूसरे तरीके से सोचते हैं. उनका अनुभव अलग है. उनके तो चौधरी देवी हुड्डा के गढ़ रोहतक में जा के हारते, फिर जीतते और देश के उप प्रधानमन्त्री भी हो जाते हैं. जनहित कांग्रेस और उसकी सहयोगी भाजपा के हिसार में कोई बहुत मज़बूत संगठन के न रहते उनके अजय के जीत सकने की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता. मगर वो हार भी जाते हैं तो कांग्रेस ये सीट, हुड्डा से मुख्यमंत्री की कुर्सी और प्रदेश से कांग्रेस की सरकार का चैन सुकून तो जा सकता है. कामनसेंस ये कहता है कि दिल्ली, यूपी, उत्तराखंड और पंजाब के चुनावों से ऐन पहले ये कांग्रेस की अच्छी खासी किरकिरी होगी और ऐसे में कांग्रेस के भीतर हड़बोंग और हुड्डा को हटाना ज़रूरी हो सकता है. हिसार में कभी न जीते अजय की हार से भी अगर इतना हो जाए तो सियासी नज़रिए से इसमें चौटाला का फायदा ही फायदा है.
हिसार में इस सब के साथ खुद कांग्रेसियों का रवैया भी कांग्रेस के संभावित परिणाम का एक बड़ा कारण होगा, सब को पता है. ओपी जिंदल और भजन लाल दोनों के न रहने के बाद हिसार पे अपना खूंटा हर कोई गाड़ना चाह रहा था. और अब वो हुड्डा के किसी बन्दे का गड़े ये कोई नहीं चाहता. ये पार्टी के भीतर राजनीति का प्रतिफल है. बिरेंदर को पिछले विधानसभा चुनाव में करवाई गई अपनी हार नहीं पची है और हिसार के इस लोकसभाई क्षेत्र में उनका उचाना भी है. उन्हें भी राजनीति करनी है. दलित महत्वपूर्ण हैं, इसके बावजूद शैलजा हिसार में झोली पसार के कहीं वोट मांगती दिखी नहीं हैं. चार बड़े राज्यों में चुनावों से पहले हिसार की इस जीत हार का एक महत्त्व होने के बावजूद दिल्ली से भी कोई नहीं आया. दिग्विजय ने तो कह ही दिया कि हिसार चुनाव का कोई राष्ट्रीय महत्त्व नहीं है. सब के सब पल्ला झाड़े बैठे हैं. ज़िम्मेवारी से भी. परिणाम से भी.
सो, सिविल सोसायटी ने दांव सही समय और सही सोच के साथ लगाया है. हांसी के सट्टेबाजों की तरह. उसे पता है कि जाना कुछ नहीं, जो है वो आना ही है. ऊपर से जो कहना है, वे कहते रहे. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उन्हें इसकी इजाज़त देती है. मगर भीतर से पता उन्हें भी है कि हिसार में होने क्या वाला था, होने क्या वाला है. जो होना ही है वो और जिसपे भी हो उनके लोकपाल बिल पे कोई फ़तवा नहीं है. अन्ना के आन्दोलन का श्रेय लेने का कोई अधिकार, बकौल केजरीवाल, अगर आर.एस.एस. को नहीं है तो फिर हिसार के परिणाम का कोई श्रेय, इसी सिद्धांत के तहद, सिविल सोसायटी को भी नहीं लेना चाहिए.
स्नेह धारा पूछ रही है की
रामलीला मैदान में भारत के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने आरती उतारने से मना किया …. मोदीके एक टोपी न पहनने पर ‘SECULARISM ‘ का शोर मचाने वाला मीडिया इस पे चुप है… क्या आप मानते हो कि मीडिया ‘DOUBLE STANDARD” अपना…ता है????
क्योकि मीडिया रात दिन मेहनत करता है पिज्जा ,बर्गेर ,जंक फ़ूड में गाय और सूअर का मांस खाता है ….सरकारी भ्रष्टाचारियो से करोडो रूपया खाता है …कांग्रेस सरकार का पालतू कुत्ता है …..इसलिए उनपर नहीं भोकेगा ….. शुद्ध हिंदी में कहे तो रखेल, लौंडी,वैश्यायो , को जब तक सच्चा असली पैसा और झूठा प्यार बिस्तर पर मिलता रहे वह मुह नहीं खोलती है ..जब एक से ज्यादा खसम हो तो डबल नहीं मल्टी स्टेंडर्ड अपनाना पड़ता है …….
हे मेरे सच्चे भारतीय भाइयो और बहनों इस बात को समझो और जागो ….सेकुलर क्या है?
चोरी+चुगली+कलाली+दलाली+छिनाली के व्यापारी+भ्रष्टाचारी+कालाबाजारी+घुस्पेठिये पाकिस्तानी/बंगलादेशी +पाकिस्तानी जेहादी विचारधारा वाले लुच्चे मुसलमान +लुच्चे कांग्रेसी हिन्दू,सिक्ख,इसी,जैन,पारसी =सेकुलर
सेकुलर मतलब लुच्चे देश द्रोही भारतीय ……
क्या आप जानते है ६५ वर्षो में कांग्रेस ने २.७ करोड़ पाकिस्तानी /बंगलादेशी आतंकवादियों को देश में बसा दिया आज ये १३ करोड़ हो गए है इनमे से करोडो तो नाना नानी दादा दादी बनकर जन्नत में मजे कर रहे है और हमारे देश की लाखो गज जमीन इनकी कब्रों ने घेर रखी है… और हमारा सेकुलर सरदार प्रधान मंत्री १००० एकड़ जमीन बंगलादेश को दान कर आया….जिसकी कीमत पीछे के दरवाजे से अमेरिका से ले ली ….अब अमेरिका अपना एशिया का मिलिट्री हेड क्वाटर इसी जमीन पर बनाएगा … .४०% इंडियन मुहाजिरो की रिशतेदारी पकिस्तान और बंगलादेश में है….पकिस्तान ने ६५ वर्षो में देश के ९०% शहरी पैसे वाले मुसलमानों पाकिस्तानी जेहादी विचारधारा का समर्थक बना लिया है ….अब यह आपको देखना है की आपके आस पास कौन है सच्चा भारतीय या लुच्चा सेकुलर भारतीय …….आज नहीं तो कल मेरे ये शब्द हिन्दुस्तानी आकाश में गुन्जेंगे …..
सरकारी व्यापार भ्रष्टाचार
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