लोकगायक बालेश्वर: ‘माटी के देहियां माटी में’

प्रदीप चन्द्र पाण्डेय

लोकगायक बालेश्वर को शायद यह पता नहीं था कि ‘ माटी के देहिया माटी में’ जिस गीत को वे डूबकर गाया करते थे उनका भी अंतिम समय इतना करीब आ गया है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के कला प्रेमियों के लिये बालेश्वर का निधन हतप्रभ कर देने वाला है। अरे रे, रे रे रे रे के माध्यम से दुनियां के अनेक देशों में छा जाने वाले बालेश्वर का माटी से निकट का रिश्ता था। मऊ जनपद के बदनपुर गांव में 1 जनवरी 1942 को जन्मे बालेश्वर ने भोजपुरी लोक गीतों को ऐसे समय में ऊंचाई दिया जब कोई इसकी कल्पना भी नहीं कर पाता था। आज देश के साथ ही विदेशों में भी भोजपुरी की जो धूम दिखायी पड़ती है इस नये अध्याय के वे कर्णधार थे। ‘बालम कै चिट्ठी आइल, ‘गवनवा लइजा राजा जी’ सहित अनगिनत गीतों के माध्यम से बालेश्वर ने लोगों के दिलों में जो जगह बनाया वह वर्षों तक याद रहेगा। गीतों के माध्यम से मिली सफलता के बाद मऊ के अपने पैतृक गांव से उनका रोज का रिश्ता भले टूट गया हो किन्तु लखनऊ के हजरतगंज इलाके के संजय गांधी नगर में रहते हुये भी वे अपने गांव, खेत खलिहान और नायक, नायिका की वेदना, परदेशिया, विदेशिया के दंश को विविध रूपों में जीते रहे। भोजपुरी गीतों का यह आकाश 9 जनवरी 2011 को माटी में समाहित हो गया। मधुमेह की चोर बीमारी ने आखिर जिन्दगी की दूरी को निगल लिया।

सहजता, विनम्रता और फक्कडपन के साथ ही यारबाज रहे बालेश्वर की कमी भोजपुरी क्षेत्र के वासियों को हमेशा खलेगी। उनका असमय जाना भोजपुरी गीतो के प्रेमियों को खल गया। उनसे बड़ी उम्मीद थी। अब तो वे शोर से अलग निर्गुण परम्परा की ओर बढ रहे थे। नियति को शायद यह मंजूर नहीं था और माटी का यह पुतला पंच तत्व में समा गया। अब बालेश्वर के मुख से रे रे रे रे, की गूंज तो नहीं सुनाई देगी किन्तु कैसेट सहित अन्य माध्यमों से उनके प्रेमी बालेश्वर के गीतों में अपने अंचल का सुख, दु:ख, वेदना उछाह तलाशते रहेंगे। उन्होने अपने गीतों के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों पर भी प्रहार किया और उनके गीत सीधे जन मानस में धंस जाते थे। बालेश्वर को इस रूप में विनम्र श्रध्दांजलि कि उनके गीत सदा अमर रहे और इस अंचल की ख्याति और संत्रास को शब्द और स्वर देते रहें।

(लेखक दैनिक भारतीय बस्ती के प्रभारी सम्पादक हैं)

2 COMMENTS

  1. भोजपुरिया संस्कृति की एक अपूरणीय क्षति,
    भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें……….

  2. बालेश्वर जी का निधन लोककला मंच और समाज के लिए अपुणय छतिहै जिसकी भरपाई करना
    मुश्किल है /प्रभु से प्रार्थना करते हैं आप के परिवार वालों को सबल दें …….
    आप को सत..सत नमन …………………………………………………………………………………………
    ………………………………………………………………………………………………………………………..
    लक्ष्मी नारायण लहरे कोसीर छत्तीसगढ़

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