सकारात्मक राजनीति के लिए राजनीति में आना होगा

India Electionsवर्तमान लोकसभा चुनावों में तमाम प्रयासों के बाद भी मतदान का प्रतिशत प्रथम एवं द्वितीय चरण में बढ़ता नहीं दिखा। मतदाताओं की इस नकारात्मक या कहें कि उदासीन स्थिति के कारण प्रत्याशी पशोपेश में हैं। अमेठी के मतदान को लेकर तो प्रियंका ने अपनी स्थिति को स्पष्ट भी कर दिया है। लोकतन्त्र में मतदाताओं की इस स्थिति को कदापि उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
अकसर मतदान को लेकर और प्रत्याशियों को लेकर एक ही सवाल किया जाता है कि क्या करेंगे वोट करके? मतदाताओं की यह स्थिति और सोच लोकतन्त्र के लिए कदापि सही नहीं है। इस प्रकार के कदम जहाँ एक ओर अच्छे लोगों को मतदान से दूर करते हैं वहीं दूसरी ओर गलत प्रत्याशियों का भी चुनाव करवाते हैं। इसको इस प्रकार से आसानी से समझा जा सकता है कि अपने देश में आमतौर पर औसत मतदान प्रतिशत 51-55 तक रहता है। यह भी व्यापक रूप से मतदान के बाद की स्थिति है।
मान लिया जाये कि किसी चुनाव में मात्र 55 प्रतिशत तक मतदान होता है तो यह तो तय रहता है कि मत न देने वालों का प्रतिशत 45 है। अब जीतने वाले को कितने भी मत प्राप्त हों वे अवश्य ही समाज में एक विरोधाभासी स्थिति को पैदा करते हैं। यह स्थिति मतदान में अरुचि रखने वालों के कारण हो रही है। इस बार के चुनावों में प्रत्येक स्तर पर यह प्रयास किये गये कि मतदान का प्रतिशत बढ़े किन्तु सफलता प्राप्त नहीं हो सकी। इधर कुछ तथ्यों की ओर चुनाव आयोग के साथ-साथ नीति नियंताओं को भी गौर करना होगा। मतदान में आती कमी लोकतन्त्र को ही खोखला कर रही है।
जहाँ तक सवाल अच्छे या बुरे लोगों के चयन का है तो यह तो सत्य है कि विधानसभा, लोकसभा को प्रत्येक पाँच वर्ष के बाद अपनी सीटों को भरना है। अब यदि अच्छे लोगों का रुझान इस ओर नहीं होगा तो निश्चय ही इस सीट पर उनके स्थान पर और कोई बैठेगा, अब वह अच्छा होगा या बुरा यह कैसे कहा जा सकता है। गलत लोगों के लिए तो संसद में जाने का रास्ता तो हम लोगों ने ही खोला है। यह सोचना तो नितांत बेवकूफी है कि यदि हम मतदान नहीं करेंगे तो इन राजनेताओं के दिमाग सही रहेंगे। मतदान न करके हम अपने आपको ही सीमित कर ले रहे हैं।
यह बात भी सत्य साबित हो सकती है कि आज राजनीति में माफियाओं का, बाहुबलियों का बोलबाला है। इसके साथ-साथ यह भी बात सत्य है कि तमाम सारे प्रत्याशियों में सभी ही बाहुबली नहीं होते हैं, सभी का सम्बन्ध माफिया से नहीं होता है। हम यह जानते हुए भी कि एक सीधे-सरल व्यक्ति को वोट करने से भी वह नहीं जीतेगा, सम्भव है कि हमारा मत बेकार चला जाये किन्तु क्या उस सही व्यक्ति को मिलता अधिक मत प्रतिशत यह साबित नहीं करेगा कि अब मतदाता एक लीक पर चल कर बाहुबलियों, धनबलियों को ही वोट नहीं करेंगे। मतदान के होने से उन राजनेताओं पर भी दबाव बनता है तो हमारे मत के बिना भी विजयी हो जाते हैं और हमारे मतदान न करने को मुँह चिढ़ाते हैं।
व्यवस्था से दूर रहकर व्यवस्था को सुधारा नहीं जा सकता है, उसे सुधारने के लिए उसी में शामिल होना पड़ेगा। जिस प्रकार से लोगों में मतदान के प्रति नकारात्मक भाव बढ़ता जा रहा है वह ही गलत लोगों को आगे आने को प्रोत्साहन प्रदान करता है। राजनैतिक क्षरण के लिए माफिया नहीं, हम सब जिम्मेवार हैं। सकारात्मक वोट के द्वारा हम राजनैतिक दलों पर भी दवाब बनायें कि वे ज्यादा से ज्यादा उम्मीदवार साफ-सुथरी छवि के लोगों को बनायें। वोट की चोट से ही माफिया को, बाहुबलियों को रोका जा सकता है।
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डा0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
सम्पादक-स्पंदन

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