तीसरे मोर्च के लिए बेचैन मुलायम

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संजय सक्सेना

2014 में राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा,इस बात का अंदाजा लगाना आसान नहीं है।जनता कॉंग्रेस शासन से त्रस्त तो है लेकिन उसे कोर्इ सशक्त विकल्प भी नहीं दिखार्इ दे रहा है।भारतीय जनता पार्टी अपने आप को कॉंग्रेस के विकल्प के रूप में देखती जरूर है लेकिन उसके लौह पुरूष ही जब इस बात पर संदेह व्यक्त कर रहे हों तो उस पार्टी की हालत का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।न कॉंग्रेस, न भाजपा तो फिर कौन ?इसी एक सवाल ने सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के पंख लगा दिए। उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में मिली जबर्दस्त जीत से लबरेज मुलायम बेटे का मुख्यमंत्री बना कर स्वयं प्रधानमंत्री बनने की सपना देख रहे हैं तो इसे अन्यथा नहीं लिया जा सकता है।यह सपना आते ही सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव एक बार फिर तीसरे मोर्चो की वकालत करने लगे हैं।भले ही हालात इतने सहज नहीं है। सपा प्रमुख को लगता है कि 2014 में केन्द्र की सत्ता के समीकरण काफी बिगड़े हुए होंगे।कॉंग्रेस को तो जनता नकार ही देगी,भाजपा भी अपनी हिन्दूत्ववादी छवि के कारण सत्ता के करीब होते हुए भी दूर ही रह जाएगी,जिस तरह से राजग के सहयोगी दल आखें तरेर रहे हैं,उससे इस बात की संभावना को बल मिला है।ऐसे में केन्द्र में गैर भाजपा और गैर कॉंग्रेस की सरकार बनने की नौबत आती है तो समाजवादी पार्टी की लाटरी निकल सकती है,परंतु, इस सपने को पूरा करने के लिए उन्हें उत्तर प्रदेश से कम से कम 60 सीटें जीतनी होंगी,जो मुशिकल नहीं तो आसान भी नही है। सपा प्रमुख जगह-जगह अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच यह बात समय-समय पर दोहराते भी रहते हैं।मुलायम के राजनैतिक कैरियर में यह दूसरा मौका है जब वह प्रधानमंत्री बनने का सपना पाल रहे हैं,इससे पहले 1996 में भी उन्होंने पीएम बनने का सपना सजोया था लेकिन तब उनके पास इतने सांसद नहीं थे कि जिनके सहारे वह तीसरे मोर्चो के सर्वमान्य नेता बन पाते। उस समय तीसरे मोर्चे में शामिल दलों में जनता दल सबसे ताकतवर पार्टी थी,लिहाजा दोनों ही प्रधानमंत्री इसी पार्टी से बने। मुलायम को तब रक्षा मंत्री बन कर ही संतोष करना पड़ा था।वैसे उस समय एक समय ऐसा आया जरूर था जब लगने लगा था कि मुलायम पीएम बन सकते हैं लेकिन ऐन वक्त पर सोनिया गांधी ने उनको झटका देकर एचडी देवगौड़ा की जगह इंद्र कुमार गुजराल को प्रधानमंत्री बना दिया।

1996 जैसी गलती अबकी से मुलायम नहीं करना चाहते हैं।समय भी उन्हें अनुकूल लग रहा है।कॉंग्रेस से उनके रिश्ते भी मधुर हो गए हैं।बात आज के संद्रर्भ में की जाए तो बेटे अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कमान सौंपते ही लोहिया के राजनैतिक वारिस मुलायम ने अपने प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश जगजाहिर कर दी थी।वह यह सपना तीसरे मोर्चे के सहारे पूरा करना चाहते हैं,इसी लिए उनके द्वारा तीसरे मोर्चे की वकालत की जा रही है।उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भी इसमें कोर्इ बुरार्इ नहीं लग रही है।वैसे तीसरे मोर्चे का प्रयोग देश की राजनीति में पहली बार होने नहीं जा रहा है।इससे पूर्व भी ऐसे प्रयोग किए जाते रहे हैं,लेकिन तब मुलायम बेहद मुख्य भूमिका में नहीं हुआ करते थे।अबकी मुलायम तीसरे मोर्चे के गठन में बड़ी भूमिका निभाना चाहते हैं।कॉंग्रेस और भाजपा के सत्ता से दूर रहने की भविष्यवाणी करने के साथ ही सपा प्रमुख ने तीसरे मोर्चे के गठन की पहल कर दी है।वह उन नेताओं से मिल रहे हैं जिनके सहारे तीसरे मोर्चे को खड़ा किया जा सकता है तो समाजवादी पार्टी का उत्तर प्रदेश से बाहर के राज्यों छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र,राजस्थान,बंगाल,बिहार उत्तराखंड आदि में अपना संगठात्मक ढांचा मजबूत किया जा रहा है,जिससे सपा प्रमुख की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा परवान चढ़ सके।सपा को तीसरे मोर्चे के माध्यम से ही केन्द्र में कुछ हासिल हो सकता है,यह बात किसी से छिपी नहीं है लेकिन बिना वामदलों के तीसरा मोर्चा खड़ा होना मुशिकल जान पड़ता है।अभी तक वामदलों ने इसमें कोर्इ रूचि भी नहीं दिखार्इ है।मुलायम और वामपंथी दलों के बीच तल्खी किसी से छिपी नहीं है।एटमी करार के समय जिस तरह से मुलायम वामपंथियों का साथ छोड़कर कॉंग्रेस के पाले में चले गए थे,उससे वामपंथी मुलायम से नाराज चल रहे अपनी तरफ से अभी तक मुलायम ने वामपंथियों की नाराजगी कम करने की कोर्इ गंभीर कोशिश नहीं की है।न ही वामपंथी दल में हरकिशन सुरजीत जैसे मुलायम हितैषी नेता मौजूद हैं जो दोनों को करीब ले आएं।इसी लिए वामपंथी तीसरे मोर्चे का कोरी कल्पना बता कर मुलायम के अरमानों की खिल्ली उड़ाने में लगे हैं। इस हकीकत से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि मुलायम अपने आप को चाहें जितना बड़ा नेता माने लेकिन उनका कद वीपी सिंह जैसा नहीं है और न ही हरिकिशन सुरजीत जैसी सवर्मान्य हस्ती मौजूद है,जो तीसरे मोर्चे के लिए छोटे-छोटे दलों को एकजुट कर सके।तीसरे मोर्चे के गठन के लिए अगर कोर्इ नेता विभिन्न दलों के बीच एकजुटता का काम कर सकता है तो उसमें एबी वर्धन,प्रकाश करात,शरद पवार, और करूणानिधि जैसे कुछ नाम हैं। तीसरे मोर्चे की कल्पना इस लिए भी दुर्भाग्यूपर्ण लगती हैं क्योंकि एक तरफ इसके लिए एकजुटता बढ़ाने वाले नेता मौजूद हैं तो दूसरी तरफ प्रधानमंत्री पद की हसरत पाले कुछ नेता इसमें रोड़ा भी बन सकते हैं।मुलायम सिंह यादव तीसरे मोर्चे की जो शक्ल और सूरत देख रहे हैं उसमें तीसरे मोर्चे के पुराने घटकों की भूमिका अहम होगी।कर्इ राज्यों में गैर कांगे्रसी,गैर भाजपा सरकारें हैं।दक्षिण में तमिलनाडु को लेें तो वहां द्रमुक या अन्नाद्रमुक में से एक हर हाल में तीसरे विकल्प के साथ खड़ा हो सकता है।इसी तरह महराष्ट्र से राष्ट्रवादी कॉंग्रेस के शरद पवार और बंगाल से तृणमूल कॉंग्रेस की ममता बनर्जी (जो अभी कॉंग्रेस के साथ हैं),उड़ीसा से बीजू जनता दल अहम भूमिका में दिखार्इ दे रहे हैं तो राजनीति के चतुर खिलाड़ी लालू यादव,प्रधानमंत्री बनने का सपना पाले बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार तीसरे मोर्चे की राह में फूल और कांटे दोनों बोने की हैसियत रखते हैंं।

बात मुलायम की इच्छाशकित की कि जाए तो वह बाहर से कुछ भी कहें लेकिन तीसरे मोर्चे को लेकर अंदर ही अंदर कमजोर दिख रहे हे। मुलायम तीसरे मोर्चे की वकालत तो कर रहे हैं लेकिन उनकी बातों पर इस लिए विश्वास नहीं किया जा सकता है क्योंकि बार-बार उनका नजरिया बदलता रहता है।उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के नतीजे आने के बाद 11 मार्च 2012 को मुलायम ने तीसरे मोर्चे की बातों को अपरिपक्व अव्यवहारिक करार दिया था तो 20 मार्च 2012 को यूपीए सरकार में शामिल होने से इंकार करते हुए कहा था कि इस समय किसी और राजनैतिक गठजोड़ की संभावना नहीं दिख रही है।यह बात मुलायम ने उस समय कही थी जब उनसे पूछा गया था कि क्या तृणमूल कॉंग्रेस के केन्द्र सरकार से अलग होने पर मनमोहन सरकार पर कोर्इ खतरा आ सकता है। मुलायम तीसरे मोर्चे के गठन की बात पर एक कदम आगे तो दो कदम पीछे चल रहें हैं तो उन्हें इस बात का अच्छी तरह से अहसास है कि प्रधानमंत्री पद की दौड़ में वह अकेले ही शामिल नही हैं।गैर कांग्रेसी और गैर भाजपा के करीब आधा दर्जन नेता प्रधानमंत्री बनने की रेस में हैं।कर्इ नेता ऐन मौके पर छुपे रूस्तम के रूप में भी सामने आ सकते हैं।मुलायम की हसरत पर अगर सबसे बड़ा ग्रहण नजर आ रहा है तो वह है बसपा सुप्रीमों मायावती।मायावती किसी भी हालत में नहीं चाहेंगी उनके कटटर विरोधी मुलायम प्रधानमंत्री बन सकें।इसके लिए वह किसी से हाथ मिलाने को भी गुरेज नहीं करेंगी।वह भाजपा से भी हाथ मिला सकती हैं।लोकसभा चुनाव के समय मुलायम के पास विधान सभा चुनाव की तरह मायावती सरकार की खामियां गिनाने का मौका नहीं होगा,उल्टे उन्हें अपनी ही प्रदेश सरकार की खामियों और सवालो से जूझना होगा।उत्तर प्रदेश में जिस तरह से अराजकता में इजाफा हुआ है और साम्प्रदायिक मौहाल बिगड़ा है उससे कुछ माह के भीतर ही सत्ता विरोधी हवा चलने लगी है,समय रहते सपा नहीं चेती तो लोकसभा चुनाव आते-आते यह हवा आंधी का रूप ले सकती है।इसका फायदा किसी को भी हो लेकिन नुकसान समाजवादी पार्टी को ही उठाना पड़ेगा।

बहरहाल, सपा प्रमुख मुलायम ने केन्द्र में तीसरे मोर्चे की सरकार की वकालत क्या की,भाजपा और कॉंग्रेस जैसे दल बेचैन हो गए।दोनों दलों ने मुलायम के दावे को सिरे से खारिज तो कर ही दिया,साथ ही अपनी-अपनी सरकार बनने का दावा भी किया।उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव से ठीक पहले सपा छोड़कर कांगे्रसी हुए राज्यसभा सदस्य रशीद मसूद ने कहा ‘ मुलायम कुछ भी कह सकते हैं,लेकिन यह जनता को तय करना है कि वह किसे प्रधानमंत्री बनाती है।सपने देखने पर कोर्इ टैक्स नहीं लगता।सपा छोड़कर कांग्रेसी में मलार्इ मार रहे केन्द्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने तो मुलायम की महत्वाकांक्षा पर अपशब्द कहकर सनसनी फैला दी।उत्तर प्रदेश कॉंग्रेस की अध्यक्षा डा रीता बहुगुणा जोशीे ने मुलायम के बयान को खारिज करते हुए कहा कि केन्द्र में कॉंग्रेस या भाजपा में से ही किसी एक दल की सरकार बनेगी।भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने मुलायम के बयान को हास्यास्पद बताया और कहा,’ प्रदेश में समाजवादी सरकार बना कर जनता जो भूल कर चुकी है,उसे वह केन्द्र में नहीं दोहराएगी।भाजपा नेता ने कहा मुलायम तुष्टीकरण की राजनीति करके केन्द्र की सत्ता हथियाना चाहते हैं,इसी लिए प्रदेश में जगह-जगह साम्प्रदायिक दंगे हो रहे हैं।भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता हदय नारायण दीक्षित ने इस संबंध में कहा कि मुलायम आम जनता का ध्यान प्रदेश की अराजकता से हटाने के लिए इस तरह का बयान दे रहे हैं।संप्रग के रहते तीसरे मोर्चे की बात करना तथ्यहीन ख्वाब है।मुलायम जब स्वयं ही कॉंग्रेस गठबंधन वाली केन्द्र सरकार को समर्थन दे रहे हों तो उनसे ऐसी बात की अपेक्षा नहीं की जा सकती है।पहले वह केन्द्र सरकार से समर्थन वापस लें फिर पता चलेगा।

बात जनता के रूख की कि जाए तो भले ही मुलायम तीसरे मोर्चे के माध्यम से प्रधानमंत्री बनने का सपना पाले हों लेकिन पिछले कुछ वर्षो में देश के मतदाताओं का मिजाज बदला है।अब वह एक दल की सरकार को ज्यादा महत्व दे रहे हैं।अनुभव भी बताता है कि केन्द्र में वो ही सरकार लम्बे समय तक चलती है जिसका नेतृत्व किसी बड़े दल के हाथ में होता है।इस समय राजग की कमान भाजपा और यूपीए की बागडोर कॉंग्रेस के हाथ में है,इसी लिए दोनों गठजोड़ लगातार आगे बढ़ते जा रहे हैं।2009 के लोकसभा चुनाव के नतीजों को भी संज्ञान में लिया जा सकता है। तब उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने प्रदेश में लगभग मरणासन कॉंग्रेस के 21 सांसद जिता कर संकेत दे दिये थे कि उत्तर प्रदेश और केन्द्र के लिए उनकी पसंद और सोच अलग-अलग है।जिन मुसलमानों पर सपा का बेहद भरोसा है वह भी 2009 के लोकसभा चुनाव कॉंग्रेस के साथ खड़े दिखे थे।

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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