आज भी मजबूर है मजदूर

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international labours day
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international labours dayअंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस प्रथम मई को प्रतिवर्ष विश्व भर में मनाया जाता है | इस दिन को मनाने का उद्देश्य 4 मई 1886 को शिकागो के हैयमार्केट में हुए मजदूरों के संहार को श्रदांजलि देना व मजदूर एकता को उजागर करना है | 4 मई 1886 को शिकागो के हैयमार्केट में बड़ी संख्या में मजदूर हड़ताल पर जाने की  वजह से एकत्रित हुए थे तथा पुलिस भीड़ को तितर-बितर करने में लगी थी कि अचानक भीड़ में से किसी ने भीड़ पर एक बम फैंक दिया जिस कारण पुलिस ने मजदूरों पर गोलियां चलाना शुरू कर दी जिसमें चार मजदूरों ने अपनी कुर्बानी दी | चश्मदीद गवाहों का कहना था कि मजदूरों की तरफ से कोई गोली नही चलाई गयी अलबत्ता गोलियां पुलिस की तरफ से मजदूरों पर चलती रही | इसलिए 1889 में रेमंड लेविगने के प्रस्ताव पर पैरिस में हुई बैठक में यह फैसला लिया गया कि प्रतिवर्ष इस नरसंहार की याद में मजदूर  दिवस मनाया जाए | अत: 1891 में अधिकारिक तौर पर द्वितीय कांग्रेस अधिवेशन में इसे प्रतिवर्ष प्रथम मई को अंतर्राष्ट्रीय मई दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई |

 

अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस अर्थात् मई दिवस को मनाने के पीछे मजदूरों के शोषण को खत्म करना व आठ घंटे मजदूरी की प्रणाली को सुनिश्चित करना मजदूर संगठनों का उद्देश्य रहा है | पूर्व में मजदूरों की हालत बहुत खस्ता रही है तथा मजदूरी के घंटे दस से सोलह तक निश्चित हुआ करते थे और वो भी असुरक्षित हालातों में | ऐसे में काम करते समय मजदूरों को चोट आना या उनकी मृत्यु हो जाना एक आम बात थी तथा उनकी सामजिक व आर्थिक सुरक्षा की कोई गारंटी नही थी | जिस पर पूरे विश्व भर में मजदूरों में आक्रोश बढ़ रहा था जोकि बाद में आठ घंटे मजदूरी निश्चित करने के उपरान्त शांत हुआ | विश्व भर में लगभग सभी देशों में सयुंक्त राष्ट्र संघ की अगुवाई में मजदूरों से सम्बंधित कानून पारित किये गए |

सयुंक्त राष्ट्र संघ की एजेंसी के रूप में 1919 में अंतर्राष्ट्रीय मजदूर संगठन (आईएलओ) की स्थापना की गई जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मजदूरों के विभिन्न मुद्दों पर कार्यवाही करना व उनके मानवाधिकारों की रक्षा करना है | इस संगठन में सयुंक्त राष्ट्र संघ के कुल 193 सदस्य देशों में से 185 देशों ने सदस्यता ली है | यह संगठन मजदूरों से संम्बन्धित  नियमों व कानूनों की उल्लंघना के बारे शिकायते सुनता है जिसका मुख्यालय जनेवा में है | इस संगठन की गवर्निंग बॉडी में 28 सरकारी, 14 नियोजक व 14 कामगार प्रतिनिधि सम्मिलित है | यह संगठन प्रतिवर्ष अंतर्राष्ट्रीय मजदूर कांफ्रेंस का आयोजन जनेवा में करता है जिसमें 2 सरकारी, 1 नियोजकों व 1 कामगारों का प्रतिनिधि भाग लेता है जोकि मजदूरों से संम्बन्धित योजना आदि का निर्धारण करते हैं |

भारतवर्ष में भी मजदूरों के हक़ सुरक्षित करने के लिए दर्जनों कानून बनाये गये हैं जिसके अंतर्गत प्रत्येक श्रमिक को बिना किसी भेदभाव के अपनी योग्यता व क्षमता के अनुसार अपनी श्रम शक्ति का अपनी जीविका और गरिमा-मय जीवन के लिए उपयोग करने का अधिकार है | प्रत्येक श्रमिक को काम के अधिकार के मार्ग के लिंग, जाति, धर्म, नस्ल, स्वतंत्र रूप से कार्य का चुनाव करने का अधिकार है तथा उसे गुलाम अथवा बेगार श्रमिक के रूप में काम करने के लिए बाध्य नही किया जा सकता | उसे यह भी अधिकार है कि उसके नियोजन की सुरक्षा की जाए तथा उसे बिना किसी उचित कारण के नियोजक की मन-मर्ज़ी से काम से नही हटाया जाए | उसे अधिकार है कि जीवनयापन योग्य वेतन की मांग करे | यह राज्य का कर्तव्य है कि वह श्रमिकों के गरिमा-मय जीवनयापन के लिए न्यूनतम वेतन व उचित वेतन सुनिश्चित करे | इसी उद्देश्य से भारत में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 बनाया गया है | कारखानों में कार्यरत मजदूरों के स्वास्थ्य की सुरक्षा व जीवन की सुरक्षा के लिए फैक्ट्रीज अधिनियम 1948 बनाया गया है |  इससे पहले कामगार मुआवज़ा अधिनियम 1923 मजदूरों व उनके परिवार की सुरक्षा हेतु बनाया गया है जोकि जम्मू-कश्मीर सहित 1971 से पूरे भारतवर्ष में लागू किया गया है | मजदूरों के झगड़ों को सुलझाने हेतु ओद्योगिक विवाद एक्ट 1947 बनाया गया जिसके अंतर्गत मजदूरों की जायज़ मांगों के लिए आंदोलन करना व मजदूर संघ बनाने के अधिकार दिए गये हैं | कुल मजदूरों की संख्या का लगभग 25 प्रतिशत  भाग महिला मजदूरों का है | इसलिए महिला मजदूरों के लिये मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 पारित किया गया जिसके अंतर्गत महिला मजदूरों को गर्भावस्था के दौरान व उसके उपरान्त 80 दिनों की छुट्टी का प्रावधान किया गया है | इसके अलावा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(c) के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति को सभा या संस्था बनाने का मौलिक अधिकार दिया गया है तथा इन संगठनों को नियमित करने के लिए ट्रेड यूनियन एक्ट 1926 (संशोधित 2001) बनाया गया है | राज्य कर्मचारी बीमा अधिनियम 1948 के अंतर्गत मजदूरों को सामाजिक व स्वास्थ्य संम्बन्धी सुरक्षा का प्रबंन्ध किया गया है | बोनस अधिनियम 1965 मजदूरों को बोनस अदा करने के लिए लागू किया गया है | इसके अलावा असंगठित मजदूरों के लिए “असंगठित कामगार सामजिक सुरक्षा अधिनियम 2008” बनाया गया है जिसके अंतर्गत मजदूरों से संम्बन्धित विकलांगता संम्बन्धी लाभ, स्वास्थ्य एवं मातृत्व लाभ व बुढ़ापा सुरक्षा हेतु प्रावधान किये गये हैं | इसके अलावा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14-16, 19(1)(c), 23-24, 38, 41-43A भी मजदूरों को ताकत व अधिकार प्रदान करते हैं | अनुच्छेद 43A में मजदूरों के लिए प्रबन्धन में हिस्सेदारी का प्रावधान किया गया है |

बाल मजदूरी रोकने के लिए बाल मजदूरी (उन्मूलन एंव नियम) अधिनियम 1948 लागू किया गया है जिसके अंतर्गत बालक उसे माना गया है जिसकी उम्र 14 वर्ष से कम हो | ऐसे बालकों को किसी व्यवसाय या कार्यशाला में केवल मजदूर तभी नियुक्त किया जा सकता है जब वह व्यवसाय या कार्यशाला अधिनियम की सूचि के भाग-अ या भाग-ब (धारा 3) में सम्मिलित न हो | धारा 3 का उल्लंघन करके किसी निषिद्ध व्यवसाय या प्रक्रिया में बाल मजदूर की नियुक्ति करने पर पहली बार एक साल तक का कारावास व रु. 20,000/- तक का जुर्माना हो सकता है | दूसरी बार ऐसा करने पर कारावास दो वर्ष तक का हो सकता है | अधिनियम की अन्य धाराओं का उल्लंघन करने पर 1 माह का साधारण कारावास या 10,000 रूपए तक जुर्माना हो सकता है | इसके अलावा राज्यों में बाल अधिकार सुरक्षा आयोगों का भी गठन किया गया है जोकि बच्चों की सुरक्षा सुनिशिचित करते हैं | बंधुआ मजदूरी समाप्त करने के लिए बंधुआ मजदूरी प्रथा (समाप्ति) अधिनियम, 1976 बनाया गया | इस सम्बंध में उच्चतम न्यायालय ने भी एक जनहित याचिका का फैसला करते समय सुझाव दिया था कि मानव अधिकार आयोग को भी इस कार्य के लिए सम्मिलित किया जाना चाहिए |

उपरोक्त दर्जनों नियमों व अधिनियमों के बनाये जाने के उपरान्त भी आज मजदूर अपने हाल पर मजबूर हैं व उनकी हालत भारतवर्ष सहित विश्व भर में ठीक नही है | कानून का ईस्तेमाल धरातल पर कानून की तरह नही किया जाता तथा कानून को तोड़ने की चीज़ मान कर लागू किया जाता है | मालिकों द्वारा अपने लाभ को बढ़ाने के लिए मजदूरों का शोषण किया जाता है | उन्हें निर्धारित मजदूरी नही दी जाती, अन्य लाभों से वंचित रखा जाता है तथा यदि वे अपने अधिकारों के लिए संघर्ष की बात करते हैं तो उन्हें काम से हटा दिया जाता है | उनकी सुरक्षा या उनके परिवार की रक्षा का ध्यान नही रखा जाता क्योंकि हर कहीं भ्रष्टाचार का बोलबाला है जिस कारण आज भारतवर्ष में गरीबी का आलम यह है कि लोग आत्महत्या करने पर मजबूर हैं | कुछ राज्यों से मजदूर दूसरे राज्यों में मजदूरी करने के लिए जाते हैं जहाँ उन्हें उचित सुरक्षा नही मिल पाती | उनके अपने राज्यों में मजदूरों से सम्बंधित न्यूनतम मजदूरी अधिनियम पर सही अम्ल नही किया जाता | बिहार व उतर प्रदेश इसके ज्व्ल्लंत उदाहरण है | ऊपर से वर्तमान केन्द्रीय सरकार ने कॉर्पोरेट जगत के दबाव में मजदूरों के अधिकारों पर प्रहार करने का प्रयास किया है जो ठीक नही है |

अत: केन्द्रीय व राज्य सरकारों को चाहिए कि मजदूरों की सुरक्षा के लिए बनाये गये नियम व अधिनियमों को धरातल पर सख्ती से लागू करें ताकि मजदूरों का शोषण व पलायन रोका जा सके | आज अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के अवसर पर नियोजकों को भी प्रण लेने की आवश्यकता है कि जो मजदूर उनके कारखानों व संस्थाओं को चलाते, उत्पादन करते व लाभ कमाते हैं, के हितों की रक्षा करना उनका धर्म बनता है | अत: उन्हें अपने धर्म को बखूबी निभाना चाहिए, तभी नियोजकों व कामगारों के बीच में सौहार्दपूर्ण सम्बंध स्थापित होंगे और यदि ये सम्बंध तनावपूर्ण रहे, तो संघर्ष जैसी स्थिति समाज में पनपेगी जिससे न मालिक रहेगा और न मजदूर तथा समाज में अराजकता बढ़ेगी, जोकि किसी भी देश व समाज के लिए ठीक नही है |

बी. आर. कौंडल

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