अपनी संवैधानिक सीमाओं, औकातों को भूल गए अब्दुल्ला

प्रवीण गुगनानी
————————————–देश को हाल ही में हुए धारा ३७० के विवाद में यह स्मरण करा दूं कि कश्मीर विषैले अब्दुल्ला वंश का कतई नहीं है! महाराजा हरिसिंह की पवित्र भावनाओं का अवश्य है और श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रजा परिषद् के सपनों का भी है और हम देश के एक दो करोड़ अलगाववादियों को छोड़कर बाकी सब भारतीयों की बपौती तो निस्संदेह है!!
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देश की नवनिर्वाचित सरकार के प्रधानमन्त्री कार्यालय में पदस्थ राज्य मंत्री और कश्मीर के संवेदनशील क्षेत्र ऊधमपुर से सांसद बनें जितेन्द्र सिंह ने कहा कि कश्मीर में लागू धारा ३७० के विषय में देश भर में चर्चा और बहस की आवश्यकता है और इसे हटायें जानें या पूर्ववत रहनें देनें के विषय में देश में व्यापक वायुमंडल तैयार होना चाहिए; इस पर जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट कर कहा कि-
‘मेरे शब्द याद रखें और यह ट्वीट सेव करके रख लें. जब मोदी सरकार सुदूर अतीत में जा चुकी होगी, तब भी या तो धारा 370 बनी रहेगी या फिर जम्मू−कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं रह जाएगा. धारा-370 जम्मू−कश्मीर और भारत के बीच इकलौता सूत्र है. इसे हटाने की बात गैर-ज़िम्मेदाराना है.’
कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने 26 अक्टू. 1947 को अपने राज्य की 36315 व.कि.मी. भूमि का विलय भारतीय गणराज्य में किया था किन्तु आज इस राज्य के पास मात्र 2600 व.कि.मी. भूमि ही क्यों बची है? इस जैसे सैकड़ों प्रश्नों के आलोक में और इस पुरे प्रकरण में ये आठ प्रश्न हैं जो देश भर के मानस में आयेंगे या आनें चाहिए और इनकें उत्तर देशवासी स्वयं ही खोजें यही श्रेयस्कर होगा-
1. दोनों नेताओं ने जो कहा उससे क्या हमारें संविधान की कोई धारा प्रत्यक्ष तौर पर या संविधान की आत्मा अप्रत्यक्ष तौर पर आहत होती है?
2. किस नेता के व्यक्तव्य से देश की अखंडता और संप्रभुता को चुनौती मिली है?
3. जितेन्द्र सिंह और उमर अब्दुल्ला में से किसका अब तक कश्मीर के विषय में जहरीले बयान देनें का ट्रेक रिकार्ड है?
4. कौन सा नेता अपनें व्यक्तव्य पर टिका हुआ है? (यहाँ कश्मीर के स्थानिक और देश के केन्द्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह कमजोर न पड़े यह शुभेक्षा)
5. कांग्रेस के अधिकृत प्रवक्ता ने इस प्रकरण में जो शब्द कहें हैं उनसे देश और सविंधान की आत्मा,राष्ट्रीय एकता,सांघिक ढांचें,जनभावनाओं,नयें जनादेश और लोकतांत्रिक वातावरण का कितना अनादर हुआ है?
6. आखिर धारा 370 पर बहस में अब्दुल्ला वंश का या उसके साथ आशिकी कर रही कांग्रेस का क्या जाता है? सर्वविदित है कि अलगाववादी नहीं चाहते कि देश में 370 पर चर्चा का वातावरण बनें तो यक्षप्रश्न है कि क्या कांग्रेस, अब्दुल्ला वंश और अलगाववादियों की भावनाएं एक मंच पर आ गई हैं??
7. इस विवाद में अपना अधिकृत बयान जारी कर चुकी कांग्रेस भी क्या उमर अब्दुल्ला के इस कथन को स्वीकारती है कि कश्मीर और शेष भारत के बीच धारा 370 ही एक मात्र सम्बन्ध है?
8. क्या कश्मीर और उसके सूदूर आगे तक के भूभाग से जम्बू द्वीप और भारत का समृद्ध और तथ्यों से अटाटूट भरा पड़ा सांस्कृतिक, सामाजिक,भौगोलिक,आर्थिक, नागरिक और राष्ट्रीय इतिहास कांग्रेस और अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस विस्मृत कर गई है या यह कोई षड्यंत्र है?
इस देश के नागरिक के नातें और इस विस्तृत नोट के लेखक के रूप में मेरे लिए जो आहत होनें का विषय है है वह है जितेन्द्र सिंह का अपनें बयान से बचते फिरना. यद्दपि आर एस एस की प्रथम पंक्ति की ओर से उमर अब्दुल्ला की सख्त लानत मलामत कर दी गई है और संघ की इस अभिव्यक्ति और नसीहत में सम्पूर्ण देश का स्वर समावेशित समझा जाना चाहिए कि “कश्मीर को उमर अब्दुल्ला अपनी बपौती न समझें!! तथापि जितेन्द्र सिंह को एक मंत्री होनें के अतिरिक्त ऊधमपुर,कश्मीर के स्थानीय नागरिक होनें के नातें 56 इंच के सीनें का निस्संकोच प्रदर्शन कर देना चाहिए था! और जो कहा उस पर मीडिया में विस्तृत दृष्टिकोण के साथ और अधिक मुखर होना चाहिए था!! जी हाँ, जो जनादेश मिला है वह यही कहता है. आखिर जितेन्द्र सिंह ने जो कहा वह हाल ही में संपन्न चुनावी सभा में नरेन्द्र मोदी द्वारा दिसंबर 2013 में दिए गए भाषण का ही शब्दशः अंश है! और प्रधानमन्त्री बनें नरेन्द्र मोदी ने तब जो कहा वह भी कुछ नया नहीं था वह वर्षों से भाजपा और संघ की भावनाओं का शब्दानुवाद ही तो था!! और जितेन्द्र सिंह ने जो कहा वह ही तो गत माह हुए निर्वाचन में भाजपा के घोषणा पत्र में भी लिखा हुआ है!!! देश वासियों और मुझे स्मरण है कि चुनाव अभियान के दौरान इस उमर अब्दुल्ला के अब्बा फारूख अब्दुल्ला ने अलोकतांत्रिक चुनौती देते हुए कहा था कि नरेन्द्र मोदी दस बार प्रधानमन्त्री बन जाएँ तो भी कश्मीर से धारा ३७० नहीं हटा सकते! फिर इसी दौरान उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि नरेन्द्र मोदी प्रधानमन्त्री बनें तो वे पाकिस्तान चले जायेंगे! ये भाषा और ये शब्द जहर नहीं तो और क्या है?? कश्मीर में कांग्रेस के समर्थन से सरकार चला रहे विषैले अब्दुल्ला वंश के सामनें इस देश के सबसे पुरानें किन्तु जर्जर हो गए राजनैतिक दल कांग्रेस को सांप क्यों सूंघ जाता है? अब्दुल्ला और गान्धीयों बीच क्या दुरभि संधियाँ पनप रही है?? पूरा देश देखेगा कि यह प्रश्न ही आनें वाले समय में कांग्रेस के अस्तित्व को समाप्त कर देनें वाला सिद्ध होगा! कांग्रेस को इस देश की लोकतांत्रिक पूंजी मानतें हुए मैं उसके कुछ ऊंगलियों पर गिनें जा सकनें वालें चैतन्य और प्रज्ञा-संज्ञा वान नेताओं को यह परामर्श देना चाहता हूँ कि ऐसे अनेकों काले पन्नों की किताब को साथ लेकर चल रहे अब्दुल्ला वंश के साथ कांग्रेस भारत के पवित्र सविंधान को लेकर न चले यही उचित होगा! मैं राजनीति में शुन्य की ईकाई से कुछ ही ऊपर हूँ किन्तु चुनौती देता हूँ कि यदि कांग्रेस का नेतृत्व कश्मीर के विषय में इस छदम अलगाववादी और इतिहास के दोषी अब्दुल्ला वंश के साथ खड़ा रहा तो कांग्रेस का विघटन हो जाएगा.
धारा 370 के अस्थायी होनें के तथ्य की संवैधानिक संस्थापना, पंडित नेहरु की इस धारा के अस्थायी होनें की स्वीकारोक्ति को भूलनें की और धारा 370 के मर्म को न समझ पानें के दर्द को सहते रहनें की आदत छोड़ने के युग में प्रवेश करते हुए हम भारतीय कुछ अधिक नहीं बल्कि पिछले एक वर्ष 2013 की घटनाओं का ही यदि विश्लेषण करें तो पायेंगे कि; इस शांत घाटी में युवको की मानसिकता को जहरीला किसना बनाया? किसने इनके हाथों में पुस्तकों की जगह अत्याधुनिक हथियार दिए है?? किसने इस घाटी को अशांति और संघर्ष के अनहद तूफ़ान में ठेल दिया है ??? इस क्रम में हम यह पायेंगे कि कश्मीर घाटी से बेदर्दी से खदेड़े गए कश्मीरी पंडितों के प्रश्नों से पर चुप्पी साधे रहे विषैले अब्दुल्ला वंश ने कश्मीर के सन्दर्भ में कम से कम छः बार देश के संघीय ढांचें और आत्मा को अपनी मुखरता से चोटिल किया है. चीन अलगाववादियों को बढ़ावा देते हुए कश्मीर के युवकों को को भारतीय दूतावास द्वारा जारी दस्तावेज पर नहीं बल्कि एक अन्य प्रकार के स्थानीय कागज़ के आधार पर वीजा आदि सुविधाएं देनें जैसे सैकड़ों राष्ट्र विरोधी मुद्दों से मूंह छुपाते रहे उमर अब्दुल्ला ने गत दिनों विदेश राजदूतों के एक मंडल के सामनें कश्मीर के भारत विलय को अपूर्ण बताया था. उन्होंने एन नवाज शरीफ और भारत के प्रधानमन्त्री की न्यूयार्क में हुई भेंट के समय अलगाव वादी बयान दिए थे, उन्होंने उस समय दुर्भावना व्यक्त की थी जब पाकिस्तान ने अचानक अमेरिका से कश्मीर मामलें में मध्यस्थता की मांग की थी.
आज जबकि भारत के स्पष्ट जनादेश धारी नए प्रधानमन्त्री ने नवाज शरीफ को भारत बुलाकर अपनें गूगली दांव में फंसा लिया था तब यह सही अवसर है कि पुरे देश में धारा 370 पर बहस हो और देश का विपक्ष रचनात्मक भूमिका निभातें हुए कश्मीर से कन्याकुमारी की संवैधानिक भावना को आत्मसात करें. उमर अब्दुल्ला को भी चाहिए कि वे कश्मीर के हित को अपनें सत्ता मोह से ऊपर उठकर देखें और यह विचार करें कि कश्मीर को पाकिस्तान से कितनें अनगिनत घाव मिलें हैं. पाकिस्तानी धन बल और मदद से कश्मिर में विध्वंस कर रहे अलगाव वादी संगठन अहले हदीस के हुर्रियत और आई. एस. आई. से सम्बन्ध और इसकी 600 मस्जिदों और 120 मदरसो से पूरी घाटी में अलगाव फैलाने जैसे सैकड़ों अन्य तथ्यों को उमर और पूरा देश पूर्व से ही जानता है किन्तु अब जो नया है वह यह कि हम इस दर्द से छूटकारा पानें और कुनैन पीनें की मानसिकता में आते जा रहें हैं.

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