कब रूकेगा भद्रजनों का अभद्र खेल?

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राजेश कश्यप

लंदन (इंग्लैण्ड) की साउथवर्क कोर्ट ने अगस्त, २०१० को प्रकाश में आए स्पॉट फिक्सिंग मामले की गहन छानबीन करने के बाद पाकिस्तान क्रिकेट टीम के खिलाड़ी सलमान बट और मोहम्मद आसिफ को दोषी ठहराया है। कोर्ट ने पाया कि सलमान बट के कहने पर ही मोहम्मद आसिफ ने नो बॉल फेंकी थीं। इसके बदले में इन दोनों ने सटोरियों से पैसे लिए थे। इससे पूर्व मोहम्मद आमिर ने स्पॉट फिक्सिंग मामले में स्वयं ही अपना गुनाह कबूल कर लिया था। क्रिकेट के इतिहास में इस प्रकरण को कई महत्वपूर्ण सन्दर्भों में देखा जा रहा है।

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आई.सी.सी.) के मुख्य कार्यकारी हारून लोर्गट ने लंदन कोर्ट के निर्णय का स्वागत करते हुए कहा है कि यह उन खिलाड़ियों के लिए एक और चेतावनी है, जो लालच में आकर खेल में भ्रष्टाचार लाने की कोशिश कर सकते हैं। इससे बढ़कर तीखी प्रतिक्रिया पूर्व आस्ट्रेलियाई कप्तान एलेन बार्डर ने देते हुए कहा है कि यदि क्रिकेट को भ्रष्टाचार से मुक्त कराना है तो मैच फिक्सरों को जेल की सजा दिलानी होगी। उन्होंने कहा कि यह मामला क्रिकेट पर एक काले धब्बे की तरह है और इसमें सख्त सजा दिए जाने की जरूरत है।

उल्लेखनीय है कि भद्रजनों का खेल कहे जाने वाले क्रिकेट पर ‘फिक्सिंग’ का कलंक गत २९ अगस्त, २०१० को लगा था, जब पाकिस्तानी खिलाड़ियों की ‘दौलत, औरत और दावत’ की काली मानसिकता ने ‘स्पॉट फिक्सिंग’ के जरिए क्रिकेट पर कालिख पोतकर हर क्रिकेटर और क्रिकेट प्रेमी को शर्मसार करके रख दिया था। क्रिकेट का मक्का कहे जाने वाले लार्ड्स के मैदान पर समाप्त हुए इंग्लैण्ड-पाकिस्तान टेस्ट पाकिस्तान के खिलाड़ियों ने स्वयं को बुकी मजहर माजिद के हाथों १,५०,००० पाउण्ड (लगभग() १ करोड़ १० लाख रूपये) में बेच दिया था और उसके टेस्ट के दौरान जानबूझकर तीन ‘नो बॉल’ फेंकीं। इस काले कारनामे का खुलासा ‘द न्यूज आफ द वल्र्ड’ ने अपने एक स्ट्रिंग आपरेशन के जरिए करके क्रिकेट जगत में कोहराम मचा दिया था। क्योंकि क्रिकेट इतिहास में पहली बार विडियो कैमरे में क्रिकेट-फिक्सिंग को कैद किया गया था।

लंदन में हुई ‘स्पॉट फिक्सिंग’ से क्रिकेट जगत में आए भूकंप से एक बार फिर भद्रजनों के खेल क्रिकेट का अस्तित्व हिलता दिखाई दिया। पाकिस्तान के कुल सात क्रिकेटरों को इस मामले में संलिप्त बताया गया, जिसमें चार के नाम पहले ही उजागर हो चुके थे। उनमें कप्तान सलमान बट, मुहम्मद आसिफ, मुहम्मद आमिर और विकेट कीपर कामरान अकमल शामिल थे। बाकी तीन अन्य संदिग्ध खिलाड़ियों में वहाब रियाज, उमर अमीन और कामरान अकमल के छोटे भाई उमर अकमल के होने की संभावना जताई गई। हालांकि सलमान बट, मोहम्मद आसिफ और मोहम्मद आमिर को ही फिलहाल दोषी करार दिया गया है, लेकिन इसके साथ ही जांच अधिकारियों ने अन्य दो संदिग्ध खिलाड़ियों कामरान अकमल और वहाब रियाज के खिलाफ भी नए सिरे से भ्रष्टाचार की जांच शुरू करने के संकेत दिए हैं।

वैसे इतिहास के पिछले पन्ने पलटकर देखा जाए तो पता चलता है कि इस भद्रजनों के खेल क्रिकेट का जन्म ही सट्टेबाजी, बेईमानी एवं षड़यंत्र की नींव पर हुआ। क्रिकेट का इतिहास बताता है कि ६०० साल पहले जब १० मार्च, सन् १२९९ में पहला मैच खेला गया तो राजघराने के एक सदस्य समेत दो लोगों ने सट्टेबाजी से छह पौण्ड की रकम अर्जित की थी। यह मैच वेस्टमिनिस्टर में खेला गया था और इस मैच के आयोजक थे वेल्स के राजा के बेटे प्रिंस एडवर्ड जो कि उस समय केवल पन्द्रह वर्ष के थे। मैच से पहले उन्होंने अपने दोस्त से हार-जीत पर छह पौण्ड की राशि दाँव पर लगाई थी। संयोगवश ये सट्टा राजा के बेटे प्रिंस एडवर्ड ने ही जीता। क्रिकेट के खेल में सट्टेबाजी का विषैला बीज रोपा था। लेकिन, क्रिकेट के इतिहास में फिक्सिंग को लेकर पहली बार तीखी प्रतिक्रिया और विवाद सन् १८१७ में सबके सामने आया। नाटिंघम के बल्लेबाज विलियम लैंबार्ट को मैच फिक्सिंग का दोषी पाया गया था और मामले के व्यापक तूल पकड़ने के उपरांत उन्हें प्रतिबंधित कर दिया गया था। इसके बाद क्रिकेट पर फिक्सिंग का कलंक सन् १८७३ में तब लगा, जब सरे के खिलाड़ी टेड पूली ने यार्कशायर से हारने के लिए ५० पौंण्ड की धनराशि ली थी। तब टेड पूली को निलंबन की सजा का सामना करना पड़ा था।

इसके बाद तो क्रिकेट में सट्टेबाजी व बेईमानी के विषैले बीज अंकुरित होकर समय के झकोरों में अच्छी तरह लहलहाने लगे थे। इस दौरान जितने भी क्रिकेट मैच हुए, वो सभी राजघरानों के बीच ही हुए और कोई भी ऐसा मैच नहीं खेला गया, जिसमें कोई दांव न लगा हो अर्थात् प्रत्येक मैच का प्रारूप सट्टेबाजी पर आधारित था। इस दौरान खेले गए मैचों की एक अन्य विशेषता यह भी रही कि जिस किसी भी राजा ने मैच आयोजित करवाया, सट्टेबाजी में जीत उसी की हुई।

सन् १९४५ तक क्रिकेट राजघरानों की दीवारों को फांदकर भाग निकलने में सफल हो गया। तब क्रिकेट पूरी तरह स्वच्छ एवं ईमानदारी के सामाजिक प्रवाह में जा मिला और १५-२० वर्षों तक उन्मुक्त भाव से बहता रहा। इस समय काफी देश क्रिकेट में रूचि लेने लगे थे और इसके कारण प्रतिस्पद्र्धा का दौर शुरू हुआ। राजघरानों से मुक्ति पाए क्रिकेट को मात्र दो दशक ही हुए थे। पहली बार सन् १९६६ में सट्टेबाजी व बेईमानी का विवाद उभरा था। उस समय वेस्टइंडीज की टीम भारत के दौरे पर थी और जिसका नेतृत्व कर रहे थे गैरी रोबर्स। गैरी रोबर्स की तीन मुख्य कमजोरियां थीं शराब, शबाब और रेस। इस समय गैरी रोबर्स का अच्छा प्रदर्शन चल रहा था। मैचों से पहले एक मेहमान पार्टी के दौरान गैरी रोबर्स के सामने ही सट्टा लगाया गया कि जो इन टेस्ट मैचों में शतक ठोंक देगा, उसे दो हजार रूपये मिलेंगे और अगर गैरी रोबर्स शून्य पर आउट होते हैं तो वे दस हजार रूपये देंगे। गैरी रोबर्स तो शून्य पर आउट होने का फैसला लगभग कर ही चुके थे। लेकिन ऐन वक्त पर उसे समझाया गया कि अगर इस षड़यंत्र का भेद खुल गया तो उन सबको लेने के देने पड़ जाएंगे। बेशक यह सट्टेबाजी बाद में टल गई हो, लेकिन यहीं से क्रिकेट में सट्टेबाजी व बेईमानी ने फिर से अपना परचम लहराना शुरू कर दिया था। इसके बाद तो क्रिकेट में सट्टेबाजी का मानों भूचाल सा आ गया। सट्टेबाज लाखों-करोड़ों रूपये दांव पर लगाने लगे। इस दौरान क्रिकेट की एक प्रमुख हस्ती पर भी दो बार गंभीर आरोप लगे।

सन् १९८१ में इंग्लैण्ड दौरे के दौरान आस्ट्रेलिया के दो प्रमुख खिलाड़ियों रोडनी मार्श व उडेनिश लिलि को भी सट्टेबाजी प्रकरण ने अच्छी खासी धूल चटाई। सन् १९८१ में ही भारत दौरे पर आई पाकिस्तानी टीम पर भी सट्टेबाजी सट्टेबाजी के गंभीर आरोप लगे, क्योंकि वह मौजूदा सीरिज बुरी तरह हार गईं थीं। जब रिलायन्स कप के सेमीफाईनल में पाकिस्तान, आस्टेªेलिया से हारा तो पाक कप्तान जावेद मिंयादाद पर विशेष तौरपर मैच फिक्सिंग का आरोप लगा था। हालांकि जावेद ने उस मैच में ७० रन ठोंके थे। इससे पहले सन् १९७९ में खेली गई भारत-पाक टेस्ट श्रृंखला में पाकिस्तान कप्तान आसिल इकबाल पर शक की सूई टिकी थी। फिर सन् १९८३ में खेली गई भारत-वेस्टइंडीज एकदिवसीय श्रृंखला के दौरान भी कुछ विशेष खिलाड़ियों पर काफी गंभीर आरोप लगे थे।

फिर सन् १९९३ में मनोज प्रभाकर प्रकरण ने काफी खिलाड़ियों के सट्टेबाजी व बेईमानी के कटघरे में खड़ा कर दिया था। इस दौरान माईक गैटिंग, क्लाइव लायड, एलन बार्डर एवं डेविड गावर जैसी धुरंधर हस्तियां भी बेईमानी की दलदल में धंसने से न रह सकीं इसके बाद अगले ही वर्ष सन् १९९४ में फिर धमाका हुआ। आस्ट्रेलियाई टीम के दो प्रमुख खिलाड़ियों मार्क वॉ और शेन वार्न पर पाकिस्तानी दौरे के दौरान मैच के बारे में महत्वपूर्ण सूचनाएं देने के लिए एक भारतीय सट्टेबाज से दस-दस हजार आस्टेलियाई डॉलर रिश्वत लेने का गंभीर आरोप पाकिस्तानी कप्तान सलीम मलिक द्वारा लगाया गया। वर्ष १९९४ में आस्टेªलिया के श्रीलंका दौरे के दौरान आस्टेलियाई खिलाड़ी शेन वार्न और मार्क वॉ द्वारा सट्टेबाजों को पिच और मौसम की जानकारी देने के मामले ने भी क्रिकेट जगत को बदनाम किया। इसके लिए दोनों खिलाड़ियों को जुर्माना लगाकर दण्डित किया गया।

वर्ष १९९८ में पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड की जांच समिति के प्रमुख जस्टिस कय्यूम ने कप्तान सलीम मलिक और तेज गेंदबाज अता उर रहमान को फिक्सिंग मामले में दोषी पाया और उसके सुझावानुसार दोनों खिलाड़ियों पर आजीवन प्रतिबन्ध लगा दिया गया, जबकि मुश्ताक अहमद, वकार युनुस, वसीम अकरम, इंजमाम उल हक और सईद अनवर पर जुर्माना लगाया गया। वर्ष १९९९ के विश्वकप में पाकिस्तान की टीम बांग्लादेश के खिलाफ हुए लीग मैच में जानबूझ कर हार गई थी। हालांकि मामला काफी सुर्खियों में रहने के बावजूद पाकिस्तानी टीम किसी भी तरह की सजा से बचने में कामयाब रही।

वर्ष २००० भला किसे याद नहीं होगा। इस वर्षं क्रिकेट सट्टेबाजी व बेईमानी के रंग में ऐसा रंगा कि भद्रजनों के अभद्र खेल से समस्त क्रिकेट प्रेमियों का दिल टूट गया और ऐसा महसूस होने लगा कि शायद अब क्रिकेट का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। अप्रैल, २००० में दिल्ली पुलिस द्वारा दक्षिणी अफ्रीकी कप्तान हैंसी क्रोनिए व सट्टेबाज के बीच हुई बातचीत का खुलासा होने के बाद एक बार फिर क्रिकेट के काले साम्राज्य पर्दाफाश होता चला गया। इस खुलासे के चार दिन बाद हैंसी क्रोनिए की आत्मा जागी और उन्होंने साफ तौरपर अपना अपराध स्वीकार कर लिया। क्रोनिए ने जून माह में यह राज उगलकर भारतीय खेमे में खलबली मचा दी कि पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरूदीन ने उन्हें सट्टेबाज से मिलवाया था, जिसने उन्हें १९९६ के भारत दौरे पर टेस्ट हारने के लिए धन का प्रस्ताव दिया था। फिक्सिंग की इस काली सूची में खिलाड़ियों का नाम जुड़ना क्या शुरू हुआ, यह सिलसिला वर्ष भर चलता रहा। फिक्सिंग की कालिख से हर्शल गिब्स, पीटर स्ट्रायडम और निकी बोए भी अछूते नहीं रह सके। हर्शल गिब्स ने जून, २००० में आरोप लगाया कि कप्तान क्रोनिए ने उन्हें भारत के दौरे पर एक वन-डे मैच में २० से कम रन बनाने के लिए १५००० डॉलर दिए थे। भारत सरकार मैच फिक्सिंग काण्ड में किसी भारतीय की संलिप्तता की जानकारी जानने के लिए अपै्रल माह में ही सीबीआई को जांच का आदेश दे चुकी थी। अक्तूबर, २००० में एक सट्टेबाज ने सीबीआई के समक्ष ब्रायन लारा, डीन जांेस, एलेक स्टुवर्ट, अर्जुन रणतुंगा, अरविंद डिसिल्वा, मार्टिन क्रो और सलीम मलिक के नाम लिए। सीबीआई की रिपोर्ट नवम्बर में आई, जिसमें अजहरूदीन को अजय जडेजा, मनोज प्रभाकर, अजय शर्मा और टीम फिजियो अली ईरानी को सट्टेबाजों से सम्पर्क करवाने का दोषी पाया गया। जांच के बाद इन सभी भारतीय क्रिकेटरों पर बीसीसीआई द्वारा प्रतिबन्ध लगा दिए गए। हालांकि कुछ वर्ष बाद कोर्ट ने जडेजा पर से प्रतिबंध हटा दिए थे। प्रारंभ में हरफनमौला क्रिकेटर कपिल देव का नाम भी सामने आया, जिसके चलते उन्हें सितम्बर, २००० में भारतीय टीम के कोच पद को अलविदा कहना पड़ा। हालांकि बाद में वे निर्दोष साबित हुए।

मैच फिक्सिंग के इस काले गोरख धंधे में अम्पायरों को भी नहीं बख्शा गया था। जनवरी, २००० में दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैण्ड के बीच सेंचुरियन में खेले गया टेस्ट, बाद में फिक्सिंग के विवादों में घिर गया, जिसके परिणामस्वरूप विवादास्पद टेस्ट की दक्षिणी अफ्रीकी बोर्ड ने अपै्रल, २००० में जाँच के आदेश दिए। दक्षिणी अफ्रीकी अम्पायर रूडी कोएर्तजन और सी. मिचेल ने खुलासा किया कि उन्हें कई बार गलत निर्णय देने के लिए पैसों का प्रस्ताव मिला। अपै्रल, २००० में ही एक समाचार पत्र के इस खुलासे ने भी खूब सनसनी फैलाई कि १९९२ के आस्टेलिया दौरे के दौरान श्रीलंका के तीन खिलाड़ियों रोशन महानामा, असांका गुरूसिंघे और सनथ जयसूर्या को भारतीय सट्टेबाज ने धन का प्रस्ताव दिया था। हालांकि श्रीलंका बोर्ड ने बाद में इस घटना की पुष्टि करते हुए स्पष्ट किया था कि हमारे खिलाड़ियों ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था।

अगस्त, २००४ में केन्या के जबरदस्त खिलाड़ी मौरिस औडुम्बे पर सट्टेबाजी में शामिल होने का आरोप लगा, जिसके चलते उनपर पाँच वर्ष का प्रतिबन्ध लगाया गया। वर्ष २००७ में पाकिस्तानी टीम एक बार फिर विश्वकप के दौरान फिक्सिंग के साए में खेली और आयरलैण्ड की नौसिखिया टीम से बड़ी बुरी तरह से हार गई। इस हार के पीछे के काले कारनामों की जानकारी तत्कालीन कोच बॉब वुल्मर को हासिल हो चुकी थी, जिसके कारण उनकी संदिग्ध परिस्थितियों में हत्या हो गई। अगस्त, २००९ में आस्ट्रेलियाई टीम प्रबन्धन ने किसी संदिग्ध सट्टेबाज द्वारा खिलाड़ियों से सम्पर्क साधने के प्रयास की शिकायत दर्ज करवाई गई। इस दौरान आस्टेलियाई टीम लाडर्स के मैदान पर इंग्लैण्ड से एशेज टेस्ट बुरी तरह हारी थी। वर्ष २००९ में ही चैम्पियंस ट्राफी में बुरी तरह हारने के बाद पाकिस्तानी टीम पर मैच फिक्सिंग के गंभीर आरोप लगे थे और जिसके परिणामस्वरूप कप्तान युनिस खान को कप्तानी से हाथ धोना पड़ा था। मई, २०१० में बांग्लादेश के कप्तान शकीब अल हसन ने खुलासा किया कि मार्च, २००८ में आयरलैण्ड के खिलाफ मैच के दौरान किसी संदिग्ध व्यक्ति ने उनसे सम्पर्क साधन की भरसक कोशिश की थी। अब अगस्त, २०१० में पाकिस्तान के खिलाड़ी ‘स्पॉट फिक्सिंग’ में पकड़े जाने से क्रिकेट की काली कड़ियों में एक और कड़ी जुड़ गई है।

इतिहास गवाह है कि भद्रजनों का खेल क्रिकेट शायद ही कभी ईमानदारी एवं वफादारी के साथ खेला गया हो। क्रिकेट का दामन असंख्य गहरे दागों से भर चुका है कि अब कितना ही गहरा धब्बा इस खेल पर लग जाए, वह अचरज का विषय ही नहीं बन पाता है। क्रिकेट खिलाड़ी न केवल लाखों-करोंडों की अथाह दौलत में खेलते हैं, बल्कि वे लाखों-करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों के दिलों से भी खेलने से बाज नहीं आते हैं। सबसे अजीब बात तो यह है कि बीते दौर में एक नहीं कई बार क्रिकेट की मर्यादा तार-तार हुई और हर बार खेल प्रेमियों के दिल भी।कुछ समय बाद फिर वही क्रिकेट का भूत लोगों के सिर चढ़कर बोला। क्रिकेट ने दूसरे अन्य बड़े-बड़े खेलों को निगल लिया। ‘चियर गल्र्स’ के नाम पर क्रिकेट में सरेआम अश्लीलता परोसी जाने लगी। वैश्विक स्तर पर क्रिकेट खिलाड़ियों की बोली किसी वस्तु, सामान, मकान या पशु की भांति लगाई जाने लगी। बड़ी-बड़ी शख्सियतों को ब्राण्ड एम्बेसडर बनाकर और जोशिले विज्ञापन की चकाचौंध में फंसाकर क्रिकेट को जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाने की कोई भी कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी गई। क्रिकेट का रोमांच जन-जन में इतनी चतुराई से भरा गया कि एक परीक्षार्थी भी अपनी परीक्षा को दांव पर लगाकर क्रिकेट देखने लगा।

जब क्रिकेट का जुनून इस हद तक हर किसी के सिर चढ़कर बोलने लगे कि उसे खाने-पीने की सुध भी नहीं रहे तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि खेल किस चरमोत्कर्ष पर पहुंच चुका है। ऐसे में क्रिकेट से जुड़े हर व्यक्ति, खिलाड़ी, संचालक, प्रचारक, आयोजक, प्रायोजक, प्रबन्धक, समन्वयक आदि का नैतिक दायित्व बन जाता है कि खेल पूरी तरह पाक साफ खेला जाना चाहिए और ऐसी कोई भी गतिविधि नहीं होनी चाहिए जिससे करोड़ों-अरबों प्रशंसकों के दिल से खिलवाड़ न हो सके। जिस तरह से आए दिन क्रिकेट में किसी न किसी रूप में बेईमानी, छलावा, धोखाधड़ी जैसी घटनाएं पहले से भी बढ़कर खतरनाक रूप में बार-बार उभर सामने आ रही हैं, यदि इन पर तत्काल अंकुश नहीं लगा तो कहने की आवश्यकता नहीं है कि क्रिकेट का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा या फिर यह भद्रजनों के खेल की बजाय अभद्रजनों का खेल कहा जाने लगेगा। हालांकि हर कोई उम्मीद जता रहा है कि लंदन कोर्ट द्वारा पाकिस्तानी खिलाड़ियों को स्पॉट फिक्सिंग का दोषी ठहराए जाने के बाद क्रिकेट में फैले भ्रष्टाचार पर कुछ हद तक अंकुश लगेगा। लेकिन, ऐसा कम संभव दिखाई दे रहा है। क्योंकि फिक्सिंग क्रिकेट के लिए नासूर बन चुका है। इसे दूर करने के लिए कई क्रांतिकारी और ठोस कदम उठाने की आवश्यकता होगी और ऐसी सजाएं अमल में लानी होंगी, जिनसे नई मिसाल कायम हो सकें।

 

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