तमाम आजादी के बीच गूंगा है इंसान

शेली खत्री 

किसी भी प्रकार की अभिव्यक्ति के लिए जो आजादी आज उपलब्ध है, पहले उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। ग्लोबल वर्ल्ड में व्यक्ति की अभिव्यक्ति की आजादी का विस्तार हुआ। पहले अभिव्यक्ति के सार्वजनिक और निजी साधन सीमित थे, वहीं समय के साथ इसका फलक बड़ा होता गया। आस – पास के अलावा तुरंत अपनी आवाज, अपनी बात देश दुनिया के सामने रखने का मौका मिलने लगा है। आज समाचार पत्र, विभिन्न सैटेलाइट चैनल के साथ ही इंटरनेट और मोबाइल आम आदमी की पहुंच के अंदर हैं। आज जिसे देखों वह बोल और लिख रहा है। डेढ दशक पहले अपनी बात कहने साधन अत्यंत सीमित थे और उसका प्रभाव भी सीमित ही था।

मोबाइल फोन ने नई क्रांति की शुरूआत कर दी है। फोन वाले हाथों की संख्या बढ़ रही है, भारत में अगस्त 2011 तक 865,708,379 मोबाइल उपभोक्ता बन चुके हैं। सस्ती कॉल दर और मैसेज पैकेज लोगों को निरंतर कुछ न कुछ अभिव्यक्त करने को उकसा रहे हैं। इसके साथ भी इंटरनेट तक पहुंच में भी वृध्दि हो रही है। विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साइट, ब्लॉग आदि के माध्यम से लोग खुद को अभिव्यक्त कर रहे हैं। जिन्हें नेट सफरिंग की लत लग जाती है वे पूरी पूरी रात ऑन लाइन रहते हैं। अभी भारत में फेसबुक यूजर्स की संख्या 640,000,000, गुलल प्लस यूजर्स -1000000005000000000000050,000,000, ऑरकूट यूजर्स 100,000,000 और ट्विटर यूजर्स -10000000175000000000000175,000ए000 के लगभग है। इनके अलावा अन्य साइट के यूजर्स भी लाखों में हैं। ब्लॉग और खुद का बेवसाइट बनाने का चलन भी तेजी से बढ़ रहा है।

ये आंकडे सिर्फ जानकारी देते हैं कि अभिव्‍यक्ति के कितने रास्ते हो गए हैं। इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि इस आजादी का सदुपयोग की जगह दुरूपयोग जारी है। ब्लॉग हो या मेल या फिर कोई नेटवर्किंग साइट ही क्यों ना हो, इनके माध्यम से होनेवाली अभिव्यक्ति अधिकतर सकारात्म, रचनात्मक न होकर बेकार होती हैं। किसी की भावना का कोई ख्याल नहीं रखा जाता। यह सिर्फ निजी उपयोगकर्ता की बात नहीं है। अखबार, पत्र पत्रिकाएं, टेलीविजन चैनल्स सभी की स्थिति कमोबेस एक सी है। प्रेस को अभिव्यक्ति की आजादी के साथ ही कुछ नियम भी दिए गए हैं। आम जनता के प्रति पूरी तरह जवाबदार प्रेस भी आए दिन नियमों का उल्लंघन करता रहता है। खबर बेचने के लिए किसी भी हद तक जाता है।

बड़ी तेज है धार

अभिव्यक्ति आजादी का जो हथियार हमें प्राप्त हुआ है उसकी धार बड़ी तेज है। वो कहते हैं न तेज हथियार का उपयोग संभलकर करना चाहिए यह जिस तेजी से चीजों के टुकड़े करता है असावधानी की स्थिति में उतनी ही तेजी उपयोगकर्ता को भी काट लेता है। हर किसी के पास हर समय, हर प्रकार से अभिव्यक्त करने की छूट का एक परिणाम यह भी है कि लोग अपनी भाषा, संस्कार, संस्कृति के सब की सीमाओं को तोड़-मरोड़कर उनके मूल स्वरूप को नश्ट कर रहे हैं। नेट पर लोग हिन्दी भी देवनागरी की जगह रोमन में लिखते हैं, मोबाइल मैसेज में तो हिन्दी, अंग्रेजी सभी की वर्तनी की धज्जियां उड़ रही है। किसी की भावनाओं का खयाल नहीं रखा जाता। इसका सही और सकारात्म उपयोग न बहुत मुश्किल है और न ही असंभव। सही तरीके का प्रयोग बड़ी सफलता दिला सकता है। हाल में घटित अन्ना हजारे का भ्रश्टाचार विरोधी आंदोलन अभिव्यक्ति की आजादी और अभिव्यक्ति के लिए बने तमाम संसाधनों की ताकत, प्रयोग के फायदे और प्रयोग करने के सही तरीके का बड़ा ही सटीक उदाहरण है। अन्ना के आंदोलन को आगे बढ़ाने में अभिव्यक्ति के संसाधनों का बड़ा हाथ रहा। पर ऐसे प्रयोग कम देखने को मिलते हैं। इन संसाधनों के दुरूपयोग का ही नतीजा है कि एक व्यक्ति के सोशल अकाउंट में फ्रेंड की संख्या एक हजार से अधिक होती है पर अपने दिल का राजदार बनाने, मुसीबतों के समय पुकारने के लिए एक भी दोस्त समझ में नहीं आता। इन दोस्तों से सिर्फ इधर उधर की बातें होती हैं, एक दूसरे को अपने बारे में तमाम गलत जानकारियां देते हैं, इसलिए जरूरत के समय गूंगा बनना पड़ता है।

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