बेदागियों से सवधान!

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NETA देखो जी, कहे देते हैं अपना कानून अपने पास रखो और हमारे दाग हमारे पास! वरना हमारे से बुरा कोर्इ न होगा! अरे आपको तो समाज के दाग धोने के लिए रखा था और आप हो कि हमारे चेहरे के ही दाग धोने निकल पड़े? आपके पास कोर्इ और काम नहीं है क्या? देखो तो, देश में कितनों  के  झगड़े सुलझाने को पड़े हैं? लोग हैं कि अपने  झगड़े के फैसले के बारे में जानने के लिए  जन्म दर जन्म लिए जा रहे हैं और एक आप हो कि….

बंधु! आपको हमारे दागी चेहरे से  इतनी ही नफरत है तो हमें आपके बेदाग चेहरे से कौनो प्यार है? तुम्हें चौहदवीं का चांद बेदाग पंसद हो तो होता रहे! हमें तो चांद तब ही अच्छा लगता है जब उसका चेहरा ही न दिखे, बस, जिधर भी दिखे दाग ही दिखें!

मित्र! आपको अगर हमारे दागी चेहरे से इतनी ही चिढ़ है तो  मत देखो हमारे दागी चेहरे की ओर! हम कौन सा हर सुबह अपना दागी चेहरा लिए आपके उठने से पहले आपके दरवाजे पर अपना दागी चेहरा लिए खड़े रहते हैं कि जागो, और हमारे दागी चेहरे के दर्शन करो ताकि आपका सारा दिन आराम से बीते! अरे, सच पूछो तो हमको तो आपके ये शरीफ चेहरे ही पसंद नहीं। पर क्या करें?

दोस्तो!  हम कहां कहते हैं कि आप हमारे दागी चेहरे में  देश चेहरा देखो?  हम आइने में अपना चेहरा निहारते रहेंगे तो आप  देश निहारते रहो।

पर ये  गांठ बांध लो  कि ये तो हम दागी चेहरों की ही हिम्मत है कि इत्ते सालों से देश को जैसे कैसे चरा रहे हैं।  कहीं गलती से आपके हाथों में देश एक दिन को भी  चराने दे दिया होता तो आज को तबाह हो चुका होता। इस देश के नागरिक न आज घर के रहे होते न घाट के!   हम इस देश में खाने को लेकर कहां कहां नहीं गए? बद भी हुए  बदनाम भी हुए, पर हमने कभी उफ तक भी की क्या! करेंगे भी नहीं। हम आखिरी दम तक अपने दागदार चेहरे लिए इस देश को खाते, सारी चलाते रहेंगे! आप चाहे हमारा कितना ही विरोध क्यों न करें।

आपको इस देश की चिंता हो या न पर हमें  इस देश की अपने दागी चेहरे से भी अधिक  चिंता है। आप तो जब देखो सपने में भी अपना चेहरा धोते रहते हो, पर हमें देखो! हमें अपना चेहरा धोने तक की फुर्सत नहीं! अरे, हम  तुम्हारी तरह अपना चेहरा संवारने वालों में से नहीं, हम तो देश का चेहरा संवारने वाले नायक हैं। आप हमें खलनायक समझते हो तो हम क्या कर सकते हैं? हमारे लिए हमारे चेहरे के दाग बाद में हैं देश पहले है।  हम वो इंसान है जो मरने के बाद भी सीना चौड़ा कर भगवान के सामने खड़े हो जाएंगे और कहेंगे, हे भगवान! कर लो हमारा  जो करना! तुम हमारे चेहरे  को जिस भी ब्यूटी पार्लर में चाहे ले जाओ! जब तक हमारे देश में लोकतंत्र है हम दागदार चेहरे लिए ही पैदा होंगे, हमने ये कसम खा रखी है।

देखो मियां!  आपको अपने चेहरे से हो या न हो पर हमें तो अपने दागी चेहरे से बेइंतिहा प्यार है। हमें तो अपने चेहरे पर ये दाग लोकतंत्र का वरदान लगते हैं। सच कहें तो जो ये दाग अपने चेहरे पर न होते तो आपकी तरह कहीं हाड़ तोड़ रहे होते और रूखी सूखी खा आपकी तरह पेट भर रहे होते। और खांसी तक होने पर विदेषों में इलाज करवाने के बदले आपकी तरह तपेदिक से बिना डाक्टर वाले अस्पताल की खटमलों से भरी चारपार्इ पर मर रहे होते।

इन दागों की बदौलत ही तो हम मृत्युलोक में भी स्वर्ग सा आनंद ले रहे हैं। और आप कहते हो ये दाग छोड़ दो! देखो तो सही! हमारी मौज मस्ती  को देख देवता तक हसमे कितनी र्इश्र्या करने लगे हैं? वे भी सोचने के लिए विवश हैं कि अगर प्रारब्ध सुअवसर दे तो वे भी देवताओं का चोला फेंक  अपने  महीन चेहरों को दागदार कर  हमारे जैसी मौज मस्ती करें। पर भैया! किस्मत अपनी अपनी! आप सबसे सबकुछ छीन सकते हो,पर किसीसे उसका दागदार चेहरा नहीं छीन सकते!  हे देवताओं! ये दाग ही तो हमारे चेहरे की आन हैं, बान हैं ,शान हैं। अगर विश्वास नहीं तो अपने बेदाग चेहरे से हमारे देश की गली के मरियल से मरियल  कुत्ते तक को डरा कर देख लीजिए। डर जाए तो मान जाएं।

हे साफ चेहरे वालो! ये तो हमारे दागी चेहरे का ही कमाल है कि हम  बिना नामांकन भर भरते ही  चुनाव जीत जाते हैं। और आप? बेदाग चेहरे वाले दिन रात चुनाव में एक करते हैं और उसके बाद भी आपकी जमानत तक जब्त हो जाती है। तो बोलो! किसका चेहरा अच्छा? हमारा या तुम्हारा? कहो! वोटरों को किस क्वालिटि के चेहरे पसद हैं? इसलिए, छोड़ो ये बेकार का दंभ! और अपने चेहरे पर कालिख मल मिला लो हमारे हाथ से हाथ!

देश से दागदार चेहरों को किनारे करने वालो तुम तो कान खोलकर सुन  ही लो! अगर आगे कभी दागदार चेहरों को राजनीति से अलग करने की बात  भी की तो  हमारे से बुरा कोर्इ न होगा! अभी चलो माफ कर देते हैं!  वैसे आपने पहली बार ये साहस नहीं, दुस्साहस किया है।  हम सब मौसरे भार्इ किसी भी मुददे पर सहमत भले ही न हों, पर इस मुददे पर हम सब एक हैं। हमने इसीलिए सर्वदलीय बैठक बुला रखी है और सब बैठक की तारीख तय न होने से पहले ही आने शुरू भी हो गए हैं। वैसे तो हम कानून से बढ़ कर हैं । चलो मान लिया, कानून हमसे सबकुछ छीन सकता है पर कानून हमारे दागी होने के बाद  हमसे देश चलाने का अधिकार  नहीं सकता।

अरे साफ चेहरे वालो! पहले अपना घर  इन चेहरों के साथ चलाकर तो देखो! देश चलाना तो उसके आगे की बात है।

सच कहें तो जब षरीफ  घर तक नहीं चला सकते तो देश क्या खाक चलाएंगे!   डींगे मारनी हैं तो मारते रहो!

हे प्यारे देशवासियो!  देश को  अगर खत्म  करने की ठान ही ली है तो  आपकी मर्जी ! हम तो केवल समझा ही सकते हैं ! देखना, कहीं बाद में पछताना न पड़े!  ये बेदाग चेहरों वाले आपको क्या खिलाएंगे जो अपने आप ही डर डर कर खाते हैं। इसलिए सावधान! ये बेदाग चेहरे आपको बहलाने,  भटकाने से अधिक कुछ नहीं दे सकते! देश चलाना इनके बस की बात नहीं! ये अपने आप ही चल सकें तो ये ही शुक्र मानिए!

अशोक गौतम,

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अशोक गौतम
जाने-माने साहित्‍यकार व व्‍यंगकार। 24 जून 1961 को हिमाचल प्रदेश के सोलन जिला की तहसील कसौली के गाँव गाड में जन्म। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला से भाषा संकाय में पीएच.डी की उपाधि। देश के सुप्रतिष्ठित दैनिक समाचर-पत्रों,पत्रिकाओं और वेब-पत्रिकाओं निरंतर लेखन। सम्‍पर्क: गौतम निवास,अप्पर सेरी रोड,नजदीक मेन वाटर टैंक, सोलन, 173212, हिमाचल प्रदेश

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