केजरीवाल जी भ्रष्टाचार के समंदर की सफाई नीचे से करनी होगी!

इक़बाल हिंदुस्तानी

समाज में जागरूकता लाये बिना सिर्फ मीडिया से यह कैसे संभव?

अपनी टीम के मास्टरमाइंड रहे अरविंद केजरीवाल को अन्ना हज़ारे का यह कहना कि कल केजरीवाल भी सत्ता के लिये भ्रष्ट या लालची हो सकते हैं सरासर उनकी ईष्या और अपरिपक्वता को दर्शाता है। बहरहाल उनकी टीम से अलग होकर पक्ष विपक्ष के नेताओं की पोल खोलनेे के बाद अगर अरविंद केजरीवाल यह समझते हैं कि इसके बाद उनकी भविष्य में बनने वाली राजनीतिक पार्टी को जनता सर आंखों पर बैठायेगी और वह अपना जनलोकपाल बिल और मिशन व्यवस्था परिवर्तन का लक्ष्य हासिल करने में पहले चुनाव में ही कामयाब हो जायेंगे तो वह भ्रम का शिकार माने जा सकते हैं। यह ठीक है कि केजरीवाल ने अन्ना से भी दो क़दम आगे बढ़कर ना केवल बड़े बड़े नेताओं के घोटालों की पोल खोलने का सीधा साहस दिखाकर एक दुस्साहसी पहल की है बल्कि राजनीतिक दल बनाने का ऐलान करके उन्होंने लोगों के सामने सही विकल्प रखने का भी दूरअंदेशी वाला निर्णय लिया है।

जिसके लिये पहले तैयार होकर अन्ना पीछे हट चुके हैं। सवाल यह है कि अगर यह मान लिया जाये कि हमारे सारे नेता भ्रष्ट हैं तो उनकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिये और निष्पक्ष जांच इन नेताओं के पद पर रहते हो नहीं सकती। पुलिस, सीबीआई और सभी जांच एजंसियां सरकार के दबाव में काम करती रहीं हैं जिसका जीता जागता नमूना मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव और मायावती हैं जिनसे यूपीए सरकार आय से अधिक मामले में जांच के बहाने ब्लैकमेल करके केंद्र सरकार के लिये एक तरह से जबरन समर्थन लेती रही है। जहां तक न्यायिक जांच का सवाल है अव्वल तोेे सरकार की नीयत में खोट होने और पोल खुल जाने के डर से वह इसके लिये किसी कीमत पर तैयार ही नहीं होती और अगर ऐसी मजबूरी आ भी जाये तो वह ऐसे जजों को जांच के लिये चुनती है जिनको अपने पक्ष में झुकाया जा सके।

इसका कारण यह माना जाता है कि अब उच्च न्यायपालिका में भी ऐसे जज बड़े पैमाने पर नियुक्त होने लगे हैं जो सेवानिवृत्ति के बाद सरकार से किसी आयोग का मुखिया बनने या उपभोक्ता फोरम आदि में नियुक्ति के लिये अपनी ईमानदारी का सौदा करने में परहेज़ नहीं करते। सरकार की बेईमानी और पक्षपात की पराकाष्ठा यह है कि वह राबर्ट वाड्रा पर लगे आरोपों पर तो उनके सरकार या कांग्रेस से बिना जुड़े ही क्लीनचिट देकर जांच तक नहीं कराती और ऐसे ही आरोपों से घिरे भाजपा अध्यक्ष नितिन गटकरी की जांच तत्काल शुरू करा देती है। ऐसे ही वह योगगुरू बाबा रामदेव और अन्ना की टीम के एक एक सदस्य की बदले की भावना से बिना किसी के आरोेप लगाये और जांच की मांग के ही अनेक एजंसियों से जांच करानी शुरू कर देती है। यह भी सोचने की बात है कि सारे भ्रष्ट नेताओं को अगर बाहर का रास्ता दिखाकर जेल भेज दिया जाये तो सारी व्यवस्था चौपट हो सकती है।

नेताओं के बारे में तो यह माना जाता है कि वे कम पढ़े लिखे और तरह तरह की ख़राब और संकीर्ण सोच की जनता से जुड़े होने की वजह से भ्रष्ट होना उनकी मजबूरी होती है लेकिन देश का टॉप ब्रेन समझे जाने वाले अधिकारी ही नेताओं को भ्रष्टाचार के नित नये नुस्खे बताते हैं। मीडियम क्लास का दावा है कि लोकतंत्र भ्रष्टाचार की एकमात्र वजह है इसलिये देश को फौज के हवाले कर देना चाहिये लेकिन अगर गहराई से छानबीन की जाये तो यही मीडियम क्लास जहां मौका मिलता है वहां भ्रष्टाचार करने से बाज़ नहीं आता। मिसाल के तौर पुलिस, उद्योगपति, व्यापारी, पत्रकार, शिक्षक, वकील, इंजीनियर और डाक्टर आदि जिस पेशे में देखो आपको भ्रष्टाचार खूब फलता फूलता मिलेगा। भ्रष्टाचार के समंदर की सफाई उसकी तली यानी नीचे से करनी होगी और इसके लिये समाज में जनजागरण अभियान चलाना होगा जिससे मतदाताओं को जाति, क्षेत्र और धर्म जैसे मुद्दों से हटाकर मतदान के समय नैतिकता और चरित्र के एजंेडे पर लाया जा सके।

कम लोगों को पता होगा कि विकसित लोकतांत्रिक देशों में आम जनजीवन में भ्रष्टाचार ना के बराबर होने के बावजूद राजनीतिक भ्रष्टाचार खूब होता है। तानाशाही से भ्रष्टाचार खूब बेरोकटोक फलता फूलता है। लोकतंत्र के विकास में सभी देश इस तरह के दौर से गुज़रते हैं। लोकतंत्र के परिपक्व होने के बाद ही लोग सुविधाओं और अधिकारों के प्रति जागरूक होकर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते हैं। अभी लोगों को यह तक अहसास नहीं है कि साफ सुथरा और जवाबदेह शासन प्रशासन उनका संवैधानिक और बुनियादी हक है। यह कहना भी एक तरह का भ्रम ही है कि आर्थिक उदारीकरण और निजीकरण से भ्रष्टाचार बेतहाशा बढ़ा है। वास्तविकता यह है कि इससे भ्रष्टाचार का केवल आकार और प्रकार बढ़ा है। हमारी अर्थव्यवस्था का आकार ही कई गुना बढ़ चुका है तो भ्रष्टाचार का क्षेत्र भी विस्तृत होना ही था।

कहने का मतलब यह है कि तेज़ रफ़तार विकास और बड़े बड़े बजट से भ्रष्टाचारियों के हाथ और मोटी रक़म लगने लगीं है। जिस तरह से एक चपरासी करोड़ों का घोटाला नहीं कर सकता और वह भ्र्र्र्र्र्रष्टाचार के नाम पर आप से दस बीस रु. ही ऐंठ सकता है उसी तरह मंत्री अरबों रु. की योजना में करोड़ों रु. आराम से डकार सकता है। भ्रष्टाचार की एक बड़ी वजह नियंत्रित व्यवस्था यानी लाईसेंस परमिट सिस्टम भी होता है। आपको याद होगा पहले सिमेंट, स्कूटर और टेलिफोन की बुकिंग में कितना लेनदेन चलता था आज ये चीज़ें खुले बाज़ार में आराम से उपलब्ध हैं तो कोई रिश्वत नहीं देनी पड़ती। रेलवे का टिकट आरक्षण नेट पर आने और हर हाथ में मोबाइल फोन आने से अब आपको सुविधा शुल्क दिये बिना दोनों सरकारी सुविधायें तकनीक के कारण आसानी से भ्रष्टाचार से मुक्ति दिला चुकी हैं।

थाने में जिस दिन रपट ईमेल से जाने लगेगी उस दिन आपको पुलिस एफआईआर के भ्रष्टाचार से भी आज़ादी मिल जायेगी। मानव नियंत्रित व्यवस्था में आवश्यक वस्तुएं या तो वास्तव में ज़रूरत से कम होती हैं या फिर उनका बनावटी अभाव पैदा करके ब्लैक का बाज़ार बनाया जाता है। ऐसे ही टैक्स और रजिस्ट्री स्टाम्प की अधिक दरें रखने या अधिकारियों के विवेक पर छोड़ने से भ्रष्टाचार को पर लगते हैं। सच यह है कि समाज का हर वर्ग कमोबेश भ्रष्टाचार में डूबा है क्योेंकि हमने पद, पैसा और ताकत़ को ही सबकुछ मान लिया है इसलिये धर्म, कानून और समाज का डर ख़त्म हो जाने से बच्चो को शुरू से ही नैतिकता, मानवीयता और समानता का सबक सिखाने की ज़रूरत भी उतनी ही है जितनी पारदर्शी और जवाबदेह व्यवस्था बनाने की है।

कलेजा चाहिये दुश्मन से दुश्मनी के लिये,

जो बेअमल है वो बदला किसी से क्या लेगा।।

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

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  1. अच्छा लेख है,मै पूर्ण रूप सेआपके विचारों से सहमत हूँ।

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