इस पावन पुनीत मांगलिक बेला पर,
नेता भी आए, अभिनता भी आए,
सज्जन भी आए, अपराधी भी आए ।
अरे देखो वहाँ महफ़िल सजी है,
नए आभूषण, नए परिधान,
नए फैशन, नए रिवाज ,
ऐसा लगता है मनो भव्यता की कुश्ती छिडी है ।
आधुनिकता के रंग में हर कोइ रंगा है ,
कामिनी और कंचन की नशा में हर कोइ धूत पड़ा है,
अपने को बढ चढ़ कर दिखाने का मनो उनपर
भूत सा पड़ा है ।
अरे ! अब देखो ,
मुर्गे की गोश्त और शराब की बोतल
पर ये लोग कैसे टूट पड़े है,
बोतल की नशे में, ये मान मर्यादा तक भूल पड़े है ।
सज्जन अपनी सज्जनता पर शर्माते है ,
सभ्यता संस्कृति की कथा दबे मुहँ सुनाते है
बुजुर्ग अपने जीवन अनुभव
पर पछताते है ।
आखिर शहर के समारोह में इनका
क्या मोल रहा
इस लिए वे भी सज्जनता छोड़ इसी
रंग में रंग जाते है ,
और समारोह की इज्जत बचाते है ।