गांधी नास्तिक से भी आगे

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

महात्मा गांधी का सर्वधर्म सद्भाव और भारत सरकार की धर्म-निरपेक्षता में जमीन-आसमान का अंतर है। धर्म-निरपेक्षता का जैसा नंगा नाच उत्तर प्रदेश के चुनाव में हो रहा है, यदि गांधी जी उसे देख लेते तो उन्हें चक्कर आ जाते। धर्म-निरपेक्षता के नाम पर हमारे राजनीतिक दल उभय-साम्प्रदायिकता को प्रश्रय देते हैं। वे हिंदू साम्प्रदायिकता और मुस्लिम साम्प्रदायिकता, दोनों की बीन एक साथ बजाते हैं। गांधी का सर्वधर्म सद्भाव उन्हें दूर-दूर तक छूकर भी नहीं गया है।

गांधी की खूबी यह थी कि वे सभी धर्मों को एक ही तराजू पर तोलते हैं। वे तर्क की तुला हैं। वे कहते हैं कि तर्क की कसौटी पर कुरान की बात खरी नहीं उतरती है तो उसे वैसे ही छोड़ दीजिए जैसे कि मनुस्मृति की कोई भी बात छोड़ने लायक हो जाती है। यदि कुरान हिंसा सिखाती है और मनुस्मृति स्त्री को पशु मानती है, तो आप दोनों की बात मत मानिए। हालांकि गांधी कहते हैं कि कुरान ने हिंसा को अनिवार्य घोषित नहीं किया है और मनुस्मृति के स्त्री-अपमान के अंश प्रक्षिप्त हैं। चाहे जो हो, गांधी का दृष्टिकोण क्रांतिकारी है। वह इतना क्रांतिकारी है कि किसी नास्तिक का भी क्या होगा?

गांधी अगर क्रांतिकारी नहीं होते तो वे अस्पृश्यता, दहेज, बाल-विवाह कर्मकांड आदि का विरोध कैसे करते? वे पोंगापंथी हिंदू नहीं थे। वे महर्षि दयानंद की तरह सुधारवादी थे, लेकिन विभिन्न धर्मों (मज़हबों) पर आक्रमण करने की बजाय उन्होंने उनकी समानताओं और श्रेष्ठ बातों पर ही ध्यान दिया। यह उनका समभाव था। दयानंद का भी समभाव था, लेकिन उन्होंने सभी सम्प्रदायों या मतों या पंथों की एक जैसी सफाई कर दी। वे पंडित थे। उन्होंने सारा कचरा साफ कर दिया।

गांधी महात्मा थे। उन्होंने समानताओं को प्रोत्साहित किया। यह समानता ही सार्वदेशिक और सार्वकालिक है। यही धर्म है। यह न तो मजहब है, न सम्प्रदाय, न रिलीजन! यह मानव धर्म है। इसके बिना मानव जीवन चल ही नहीं सकता। इसी के लिए गांधी जी कहा करते थे कि धर्म के बिना राजनीति असंभव है। आजकल तो अधर्म (भ्रष्टाचार) के बिना राजनीति असंभव है।

3 COMMENTS

  1. वैदिक्जी ,गांधीजी को उत्तरप्रदेश के चुनाव मैं,यदि आज वे होते ,तो आने ही नहीं दिया जाता. आप ने सभी दलों की पोल खोल दी है.

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