गाँधी और हिन्दुत्व-1

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गाँधी का जन्म हिंदू धर्म में हुआ, उनके पुरे जीवन में अधिकतर सिधान्तों की उत्पति हिंदुत्व से हुआ. साधारण हिंदू कि तरह वे सारे धर्मों को समान रूप से मानते थे, और सारे प्रयासों जो उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए कोशिश किए जा रहे थे उसे अस्वीकार किया. वे ब्रह्मज्ञान के जानकार थे और सभी प्रमुख धर्मो को विस्तार से पढ़तें थे. गाँधी जी कहते हैं ”  हिंदू धर्म के बारें में जितना मैं जानता हूँ यह मेरी आत्मा को संतुष्ट करती है, और सारी कमियों को पूरा करती है जब मुझे संदेह घेर लेती है, जब निराशा मुझे घूरने लगती है, और जब मुझे आशा की कोई किरण नजर नही आती है, तब मैं भगवद् गीता को पढ़ लेता हूँ और तब मेरे मन को असीम शान्ति मिलती है और तुंरत ही मेरे चेहरे से निराशा के बादल छंट जातें हैं और मैं खुश हो जाता हूँ.मेरा पुरा जीवन त्रासदियों से भरा है और यदि वो दृश्यात्मक और अमिट प्रभाव मुझ पर नही छोड़ता, मैं इसके लिए भगवत गीता के उपदेशों का ऋणी हूँ.”
गाँधी ने भगवद गीता की व्याख्या गुजराती में भी की है.महादेव देसाई ने गुजराती पाण्डुलिपि का अतिरिक्त भूमिका तथा विवरण के साथ अंग्रेजी में अनुवाद किया है गाँधी के द्वारा लिखे गए प्राक्कथन के साथ इसका प्रकाशन १९४६ में हुआ था .
गाँधी का मानना था कि प्रत्येक धर्म के मूल में सत्य और प्रेम होता है ( संवेदना, अहिंसा और स्वर्ण नियम ढोंग, कुप्रथा आदि पर भी उन्होंने सभी धर्मो के सिधान्तों से सवाल किए और वे एक अथक समाज सुधारक थे.उनकी कुछ टिप्पणियां विभिन्न धर्मो पर है ;
यदि मैं ईसाई धर्म को आदर्श के रूप में या महानतम रूप में स्वीकार नहीं कर सकता तो कभी भी मैं हिन्दुत्व के प्रति इस प्रकार दृड़ निश्चयी नहीं बन पाता. हिंदू दोष दुराग्रह्पुर्वक मुझे दिखाई देती थी यदि अस्पृश्यता हिंदुत्व का हिस्सा होता तो वह इसका सबसे सडा अंग होता.सम्प्रदायों की अनेक जातियों और उनके अस्तित्व को मैं कभी समझ नहीं सकता इसका क्या अर्थ है कि वेद परमेश्वर के शब्द से प्रेरित है? यदि वें प्रेरित थे तो क्यों नहीं बाइबल और कुरान ? ईसाई दोस्त मुझे परिवर्तित करने का प्रयास करते हैं तो मुस्लिम दोस्त क्या करेंगे अब्दुल्लाह शेठ मुझे हमेशा इस्लाम का अध्ययन करने के लिए प्रेरित करते थे और निश्चित रूप से हमेशा इस्लाम की सुन्दरता का ही बखान करते थे ( स्रोत : उनकी आत्मकथा )
जितना जल्दी हम नैतिक आधार से हारेंगे उतना ही जल्दी हममे धार्मिक युद्ध समाप्त हो जायेगी ऐसी कोई बात नहीं है की धर्म नैतिकता के उपर हो उदाहरण के तौर पर कोई मनुष्य असत्यवादी, क्रूर या असंयमी हो और वह यह दावा करे की परमेश्वर उसके साथ हैं कभी हो ही नहीं सकता.
एक बार जब उनसे पूछा गया कि क्या तुम हिंदू हो, उन्होंने कहा:”हाँ मैं हूँ.मैं भी एक ईसाई, मुस्लिम, बौद्ध और यहूदी हूँ.”

4 COMMENTS

  1. ” एक बार जब उनसे पूछा गया कि क्या तुम हिंदू हो, उन्होंने कहा:”हाँ मैं हूँ.मैं भी एक ईसाई, मुस्लिम, बौद्ध और यहूदी हूँ.”

    पोस्ट को अगर पढ़े होते तो आपको ऊपर दी गयी पंक्ति में उत्तर मिल गया होता परन्तु आप को पढने की फुर्सत नहीं रहती है . पोस्ट में कहीं भी नहीं लिखा है कि गाँधी जी कुरान नहीं पढ़ते थे या कोई ऐसी बात जो किसी धर्म के खिलाफ हो तो जनाब हर बात में धार्मिक बखेडा क्यों खड़ा करते हो ?

  2. गांधी जी सब धर्मों का आदर करते थे, सबके ग्रंथ पढते थे, कुर्आन पढ कर उन्‍हें कितना सकून मिलता था, मुहम्‍मद साहब उन्‍होंने दलित प्रेम सीखा यह तो तुम्‍हें पता ही नहीं होगा, गांधी जी तुम्‍हारी तरह नहीं सोते जागते इस्‍लाम नजर आवे बस, यह नाम की जनोक्ति है बस, वर्ना भाजपा का प्रचार तंत्र है,

    गांधीवादी पहुंचे निम्‍न लेख पर,
    गाँधी जयन्ती पर आओ याद करें उस पोस्ट को जिस में सर्वोधर्म प्रेम देखने को मिला था
    डायरेक्‍ट लिंक

  3. एक बार जब उनसे पूछा गया कि क्या तुम हिंदू हो, उन्होंने कहा:”हाँ मैं हूँ.मैं भी एक ईसाई, मुस्लिम, बौद्ध और यहूदी हूँ.”
    आपके इस कथित महात्मा ने कभी नहीं कबूला कि वह सिद्धांततः असल में जैन धर्म स्वीकार चुका है। ये जैन सिर्फ़ दूसरों को अहिंसा का पाठ पढ़ा कर षंढ बना देते हैं ताकि आप अन्याय और अत्याचार का विरोध अहिंसक तरीके से करने के चक्कर में मारे जाएं और आपका नाम हो जाए साथ ही आततायी का राज्य चलता रहे। इस गांधी की तस्वीर भारतीय मुद्रा पर छाप पर कांग्रेस ने दिमागों में जमा दिया है कि यही सही था और भारत को इसी ने आजाद कराया जबकि सत्य ये है कि लाखों हिन्दू और मुसलमानों की शहादत के बदले में मिली थी आजादी। बहुत कुछ है भीतर जो आपके चिट्टे पर नहीं निकाला जाए तो बेहतर है। आप पत्रकारिता को धर्म मानते हैं तो जरा निष्पक्ष होकर हमारी बात की तह में जाएं कि हमने क्यों सीधे “जैनियों” पर आरोप लगाया। हमारी लड़ाई आज की नहीं सवा सौ साल से चल रही है।

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