गांधीजी के विचार और जलवायु परिवर्तन की चुनौती

नवनीत कुमार गुप्ता

राष्‍ट्रपिता महात्मा गांधी संसार के उन चंद महापुरूषों में से एक हैं जिनके विचार सदैव मानव सभ्यता के विकास में बहुमूल्य साबित होते रहे हैं। गांधी जी ने केवल सामाजिक और राजनीतिक ही नहीं बल्कि जीवन के सभी क्षेत्रों में अपना दृष्टिकोण व्यक्त किया है। आज जबकि मानवीय मूल्यों और पर्यावरण में होते ह्रास के कारण पृथ्वी और यहां उपस्थित जीवन के खुशहाल भविष्य को लेकर चिंताएं होने लगी है, ऐसे समय में उनका विचार हमें इसका समाधान खोजने में काफी हद तक कारगर सिध्द हो सकता है। जलवायु परिवर्तन एवं इससे संबंधित विभिन्न समस्याओं जैसे प्रदूषित होता पर्यावरण, जीवों व वनस्पतियों की प्रजातियों का विलुप्त होना, उपजाऊ भूमि में होती कमी, खाद्यान्न संकट, तटवर्ती क्षेत्रों का क्षरण, ऊर्जा स्रोतों का कम होना और नयी-नयी बीमारियों का फैलना आदि संकटों से धरती को बचाने के लिए गांधीजी के विचार प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं।

वस्तुत: गांधीजी के विचारों का अनुकरण करने पर ही मानव और प्रकृति के साथ प्रेममयी संबंधा स्थापित करते हुए इस धरती की सुंदरता को बरकरार रखा जा सकता है। लाखों-करोड़ों वर्षों के दौरान धारती पर जीवन को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाने वाला पर्यावरण अब मानवीय गतिविधियों द्वारा प्रदूषित होने लगा है। उद्योगों व वाहनों से निकली जहरीली गैसों के कारण वायुमंडल के प्राकृतिक अनुपात में लगातार बदलाव हो रहा है। आज लगभग सभी नदियों का जल प्रदूषित हो चुका है। फैक्टरियों, संयंत्रों आदि से निकले दूषित जल एवं रसायनों के कारण नदियां जीवनदायनी का रूप खो चुकी हैं। अब इनमें स्वच्छ जल की जगह भारी धातुओं जैसे आर्सेनिक, पारा, कैडमियम आदि की मात्रा में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है, परिणास्वरूप विज्ञान को चुनौती देते विभिन्न प्रकार के रोग अपना पांव फैला रहे हैं। दूसरी तरफ हवा और पानी के साथ-साथ मिट्टी की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। जबकि पॉलीथीन का बढ़ता उपयोग पर्यावरण के लिए गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। देखा जाए तो बढ़ती जनसंख्या, बढ़ती जरूरतें और इन सबसे अधिक बढ़ता लालच प्रदूषण रूपी इस समस्या का मुख्य कारण है। बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ उसकी आवश्यकता भी बढ़ जाती है। हमारी बढ़ती मांग का अर्थ, कृषि कार्य का बढ़ना है जिससे ऊर्वरकों, कीटनाशियों, आदि रासायनिक पदार्थों के साथ ही जल एवं ऊर्जा की खपत भी बढ़ती जा रही है।

ऐसे समय में पर्यावरण की शुध्दता को बनाए रखने के लिए हमें गांधीजी की बातों का स्मरण करना चाहिए। पर्यावरण को प्रदूषित करने वाली मानवीय गतिविधियों पर नियंत्रण कर हम इसमें काफी हद तक कमी ला सकते हैं। इसके लिए आधुनिक प्रौद्योगिकियों के साथ पर्यावरण मित्र यानी इको-फ्रैंडली जीवन शैली को अपनाना होगा, तभी प्रदूषण रूपी दानव पर काबू पाया जा सकेगा। गांधाीजी के विचारों के अनुसार सबकी भलाई में ही व्यक्ति की भलाई निहित होती है ऐसे में प्रकृति के साथ मेल बिठाने के लिए कम से कम प्रयोग और ज्यादा से ज्यादा त्याग किए जाएं। उनका मानना था कि सीमित संसाधानों के साथ जीवन बीताने और पर्यावरण संरक्षण के द्वारा ही भावी विनाश से बचा जा सकता है।

पृथ्वी जीवन के विविधा रंगों को संजोए हुए है। यहां पाए जाने वाली लाखों तरह की वनस्पतियां इसके प्राकृतिक सौंदर्य का एक अंग हैं। जहां इसकी वनस्पतियों में गुलाब जैसे सुंदर फूलदार पौधों, नागफनी जैसे रेगिस्तानी पौधों, सुगंधित चन्दन और वट जैसे विशालकाय वृक्ष शामिल हैं वहीं यहां जीव-जंतुओं की दुनिया भी अद्भुत विविधाता लिए हुए है। यहां हिरण, खरगोश जैसे सुंदर जीवों के साथ शेर एवं बाघ जैसे हिंसक जीव भी उपस्थित हैं जो पृथ्वी पर जीवन की विविधाता के परिचायक हैं। जबकि मोर, कबूतर और गौरेया जैसे हजारों पक्षी जीवन के रंग-बिरंगे रूप को प्रदर्शित करते हैं। जैव विविधाता मानव के लिए प्रकृति का अनुपम उपहार है। ऐसे में मनुश्यों द्वारा अपने स्वार्थ के लिए पृथ्वी की जलवायु को प्रभावित करने से जीवन के प्रत्येक रूप को प्रभावित हो रहे हैं।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण जैव विविधाता में सर्वाधिक तेजी से परिवर्तन हो रहें हैं। इसके प्रभाव से अब तक अनेक जीव इस धारती से या तो पूरी तरह से विलुप्त हो चुके हैं या हो रहे हैं अथवा होने के कगार पर पहुंच गए हैं। बेलगाम प्रदूषण के कारण जीवन विनाश के स्तर पर पहुंच चुका है। वर्तमान में 30 प्रतिशत से अधिक उभयचर, 23 प्रतिशत स्तनधारी तथा 12 प्रतिशत पक्षियों की प्रजातियां संकटग्रस्त हैं। ऐसी कठिन परिस्थिती में जैव विविधता के संरक्षण के लिए गांधीजी का जीवन दर्षन हमें प्रेरणा दे सकता है। गांधीजी प्राणीमात्र को एक समान मानते थे। वह सभी जीवों के प्रति समान दया भाव रखते थे। उनका मानना था कि जो क्रूरता हम अपने ऊपर नहीं कर सकते वह हमें निम्न स्तर के जीवों के साथ भी नहीं करनी चाहिए। इस तरह की विचारधारा को अपनाने से ही वास्तव में धरती पर जैव विविधता बनी रह सकती है।

पर्यावरण के साथ आत्मीय रिश्ते जरूरी हैं और पर्यावरणीय दशाओं को समझने के लिए हमें प्रकृति के साथ मधुर संबंधा कायम करने होंगे। पर्यावरण संरक्षण के संबंध में गांधीजी की अवधारणा नई नहीं है अपुति भारत के प्राचीन सभ्यता में इसकी झलक मिलती है। वह छीन-झपट या झगड़े का तरीका नहीं, बल्कि त्याग यानी बिल्कुल छोड़ देने के तरीके पर अमल करते थे। यही कारण है कि उनकी विचारधारा केवल भारत ही नहीं, बल्कि समस्त मानव सभ्यता पर लागू होती है। जिसे हर युग में जीवन में उतार कर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया जा सकता है। इस समय गांधीजी के ”सादा जीवन उच्च विचार” वाली विचारधारा के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण में अमूल्य योगदान ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। (चरखा फीचर्स)

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