हर-हर नहीं, मर-मर गंगे

-सुमीत श्रीवास्तव-
ganga

अनादी काल से भारत की सभ्यता, संस्कृति, अध्यात्म और वैराग्य को सींचने वाली नदी का नाम है- गंगा, जिसे हम सब गंगा मां बोलते हैं। गंगा पवित्रता और शुद्धता का श्रोत है। गंगा पतितपावनी है जगतजननी है साथ ही पुण्यदायनी। गंगा भारत के लोगों की जीवनदायनी है। गंगा के किनारे रहने वाले इससे इतना प्यार करते हैं की वो गंगा की कसम खाते और कसम खाने के बाद झूठ बोलना भी नहीं पसंद करते हैं। आज देश की राष्ट्रीय नदी की जो हालत है उसे देखकर बहुत ही चिंता होती है और इस हालत को मैं इसलिए भी समझ रहा हूं क्योंकि मैं गंगा किनारे का रहने वाला हूं और 20 सालों से गंगा को देखता आ रहा हूं और अब गंगा को देखकर महाभारत के वो चीरहरण के खिस्से याद गए उसमे और गंगा में सिर्फ फर्क यह है की वहां द्रौपदी को बचाने के लिए स्वयं साक्क्षात भगवान कृष्ण थे, पर यहां गंगा के लिए प्रधानमंत्री के अगुवाई में बनी अंधी बहरी NGRBA जिसका कोई लाभ आज तक मां गंगा को नहीं मिल पाया है। वैसे गंगा के अविरलता और निर्मलता के लिए जो यह आंदोलन किया जा रहा है, इससे मेरे दिल एक नई अलख जगी है की कोई तो हम गंगा किनारे वालों के लिए सोच रहा है और हमारी माता के अविरलता और निर्मलता के लिए आगे बढ़कर देश को जगा रहा है। पिछले 10 सालों का इतिहास देखें तो गंगा बहुत ही बुरे दौर से गुजरी है। चाहे वो मैया के उद्गम स्थान/राज्य उत्तराखंड हो या बांग्लादेश सीमा पर बना हुआ वह बेवकूफाना फरक्का बांध हो। जब मैंने गंगा के ऊपर रिसर्च करना शुरू किया और बहुत सारे मैगजीन को पढ़ा बहुत सारा डेटा सामने आया कुछ किताब और सर्वे जो सत्य गंगा के किनारे बसने वाले शहर के लोगों ने उस मैगजीन के संवादाता को बताई तो उसे पढ़ने के बाद एक ही बात समझ में आई की जिस तरह की ढील गंगा के विषय पर हमारे राजनेता दे रहे हैं, उससे कुछ और नहीं हम अपनी पतितपावनी मां गंगा को महाविनाश की ओर धकेल रहे हैं। जिस तरह कि हालत आज गंगा की है उसे देखकर तो ऐसा लगता है गंगा जल्द ही धरती से विलीन हो जाएगी। अगर गंगा धरती से विलीन होती है तो मैं और गंगा किनारे रहने वाले करोड़ों लोगों के रोजगार का क्या होगा इतना ही नहीं अगर गंगा विलीन हो गई तो धरती का ग्राउंड वाटर (भू-जल) भी ख़त्म हो जायेगा और तब तबाही कि एक नई कहानी लिखी जाएगी। WWF (World Wildlife Fund) ने गंगा को विश्व के 10 ऐसी नदियों में शामिल किया है, जिनका अस्तित्व खतरे में है, इसपर बनते बांध, इससे निकलती नहरें और इसमें घुलती जहरीले पदार्थ और इसमें होते अवैध खनन की खबर हम सब हर रोज़ मीडिया में देखते हैं। अप्रैल में संपन्न हुई गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (NGRBA) कि बैठक में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने यह स्वयं स्वीकार किया था कि गंगा में समाहित होने वाला 290 करोड़ लीटर गंदे पानी में से केवल 110 करोड़ लीटर पानी का ही परिशोधन किया जाता है। सम्पूर्ण देश ने पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी की उस पहल की प्रशंसा की थी, जब उन्होंने 1985 में “गंगा एक्सन प्लान” की घोसना की थी। इस प्लान के माध्यम से जो आशा बंधी थी और जिस पर हजारों करोड़ रुपये खर्च किये गए, वह सब उपयोगी साबित नहीं हुआ। जब गंगा एक्सन प्लान शुरू किया तो यह कहा गया था की गंगा में अब 42% सीवर का पानी शुद्ध होकर ही गंगा में जाएगा, पर ऐसा हो नहीं पाया और परिणाम आशा से विपरीत था। अब अगर हमलोग कानपुर की ही बात करें, वहां करीब 400 चमड़े का उद्योग से जुड़े हैं और करीब 50 हज़ार ज़िंदगियां गंगा में क्रोमियम समेत तमाम किस्म के खतरनाक केमिकल प्रवाहित करके अपनी ज़िन्दगी को नरक बना रही हैं। अब अगर हम कानपूर से बाहर निकल कर उत्तराखंड, झारखण्ड, बिहार, पश्चिम बंगाल और सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश की करें, जहां-जहां गंगा प्रवाह करती है तो पता चलता है प्रोजेक्ट में खर्चा 360 करोड़ किया गया और सफलता का परिणाम मात्र 20% रहा। इन सब के बीच गौर करनी वाली बात यह है कि गंगा भारत के जिन राज्यों से निकलती है, उन राज्यों में भारत की 40 फीसदी आबादी रहती है और उनमें से 30 फीसदी लोगों का जीवन गंगा नदी पर आश्रित है, पर गंदगी और प्रदूषण से बेहाल गंगा का पानी वाराणसी के बाद उपयोग के लायक नहीं बचा है और पटना में गंगा का पानी तेजाब जैसा हो गया है जिससे खेती बर्बाद हो रही है और कई तरह की बीमारियों को जन्म दे रही हैं। बनारस के बाद भरौली, गाजीपुर से लेकर पटना वाले बेल्ट में गंगा में आर्सेनिक की पट्टी बननी शुरू हो गई है जो यहां के जीवनशैली को और इस बेल्ट के जल में रहने वाले जीव को समाप्त कर रही हैं। मैंने अक्सर गंगा को लेकर बड़ी-बड़ी न्यूज़ चैनल्स में गंगा के ऊपर बहस करते देखा है। बात वहीं घिसी-पिटी टिहरी से शुरू होती और उस बेवकूफाना फरक्का बांध पर जाकर समाप्त हो जाती, पर असल मुद्दे कुछ और होते हैं जिनका जिक्र कभी नहीं किया जाता। अब जब हमलोग पटना से आगे बढ़ेंगे तो सुल्तानगंज से कहलगांव वाली क्षेत्र को भारत सरकार ने सन 1991 विक्रमशिला गंगेटिक डोल्फिन सेंचुरी घोषित किया गया है, जिसे गंगा में रहने वाली डोल्फिन के लिए सबसे सुरक्षित क्षेत्र बताया गया है। डोल्फिन को प्रधानमंत्री के अगुवाई वाली NGRBA ने “राष्ट्रीय जल जानवर” (National Aquatic Animal of India) घोषित किया है| NGRBA के एक सदस्य आर.के.सिन्हा ने बताया भारत में 2,500 ही डोल्फिन बची हैं जिनमें से 1000 या 1200 डोल्फिन सिर्फ गंगा में ही मौजूद हैं और जिस एरिया को हमने डोल्फिन सेंचुरी घोषित की है, वहां के आंकड़े बेहद चौकाने वाले हैं, कई सर्वे और तहलका मैगजीन की माने तो इस बेल्ट में सिर्फ 170 -190 की संख्या में डॉलफिन मौजूद है।

वैज्ञानिक वीरभद्र मिश्र और यू.के. चौ0धरी ने तहलका मैगजीन में दिए हुए अपने बयान में कहा है कि बात हर वक़्त टिहरी बांध की होती है, लेकिन फरक्का को कभी ऐसी दृष्टि से नहीं देखा जाता। यह दोनों वैज्ञानिक कहते हैं कि फरक्का का आकलन जरूरी है। उन्होंने यह बताया कि फरक्का बराज नदी के साथ प्राकृतिक रूप से बहने वाले बालू और मिट्टी को रोकता है, जिस वजह से गंगा में कई रेत के टापू बनते जा रहे हैं। एक आंकड़े में पता चलता है की सन् 1975 में जब फरक्का बराज बना तब वहां 72% पानी था और वहां अब सिर्फ 10% से 12% ही नदी की गहराई रह गई है। बराज के कारण करीब 5 लाख से अधिक लोगों की जमीन छीन चुकी हैं। “पश्चिम बंगाल के मालदा और मुर्शिदाबाद जिले कि 600 वर्ग उपजाऊ जमीन गंगा में विलीन हो गई है। तहलका से बातचीत के दौरान वैज्ञानिक यू.के. चौधरी कहते हैं कि बेवकूफाना अंदाज़ में एक ऐसा बराज बना दिया गया है जो सिर्फ और सिर्फ तबाही और विनाश का ही कारण बनता जा रहा है, और फरक्का में उन्होंने बताया कि 110 फूट से ऊंचा बालू जमा हो रहा है, जिससे वहां साल भर बाढ़ का खतरा बना रहता है। वह यह भी कहते हैं कि अपने देश में तो बस सारा जोर किसी निर्माण करने पर ही रहता है। बाद में कोई एसेसमेंट नहीं होता है, न आजतक टिहरी का एसेसमेंट हुआ न फरक्का का। अगर हम बात करे गंगा के उद्गम राज्य उत्तराखंड की तो यहां भी गंगा की हालत ख़राब है। अगर हमलोग बात करें तो गंगा की मैदानी इलाकों की तो पता चलता है की पहाड़ से उतरते हरिद्वार में गंगा को अवैध खनन की गंभीर समस्या से ग्रस्त है। यहां मैं एक बार फिर तहलका मैगजीन के सर्वे को कोट करता हूं जिसमे उन्होंने टिहरी बांध से हो रही समस्याओं का जिक्र किया है। टिहरी बांध दुनिया का आठवां सबसे ऊंचे बांधों में से एक है, आज से साढ़े तीन दशक फले विस्थापन की जो कहानी शुरू हुई थी, वो आज तक ख़त्म नहीं हुई।

उत्तराखंड में गंगा और उस पर बन चुके या बन रहे बांधों की संख्या 600 है, चिंता की बात यह है कि इनमें से अधीक बांधों पर मनमाने तरह से काम हो रहा है। CAG रिपोर्ट के मुताबिक यहां बन रहे बांधों की क्षमता में 22% से लेकर 329% तक बदलाव किया गया है। उत्तराखंड में ही पवित्र धारी देवी का मंदिर श्रीनगर के निकट अलखनंदा पर बांध बनाये जाने के कारण डूब क्षेत्र में आने के खतरे का सामने कर रहा है और यदि शीघ्रता से कोई उचित प्रयास नहीं हुए तो पवित्र धारी देवी शिला कुछ ही समय में पूरी तरह से जल-निमजिजत हो जाएगी। CAG रिपोर्ट आगाह भी करती है कि यह सारी परियोजनाएं उस क्षेत्र में बनाई जा रही है, जो भूकंप ज़ोन में स्थित हैं।

17 अप्रैल को हुई NGRBA की मीटिंग में प्रधानमंत्री कहते हैं कि अगर गंगा को जल्द से जल्द साफ़ करना होगा। मैं प्रधानमंत्री जी से यह पूछना चाहता हूं कि आपकी अंधी-बहरी दिल्ली कि आंख अब खुली है, मैं पाटलिपुत्र (पटना) में गंगा के किनारे का रहने वाला हूं और मैं गंगा की बदहाली को पिछले 10 साल से देख रहा हूं, मुझे आपके सरकार के रवैये को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आपके फैसले और निर्णय आते-आते हमारी पापनाशिनी मां गंगा धरतीलोक से सदा-सदा के लिए विलीन न हो जाए|

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