भ्रष्टाचार की गटर गंगा में भाजपा

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प्रमोद भार्गव

उत्तरप्रदेश में भाजपा ने अपराधी और भ्रष्टाचारियों को गले लगाने का जो अंधा दांव खेला है, वह उसे गटर गंगा में डूबोने की ओर ले जाता दिखाई दे रहा है। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन घोटाले में सीबीआई की जांच का सामना कर रहे बाबूसिंह कुशवाहा को तो पार्टी में शामिल कर भाजपा ने मर्यादा की सभी सीमाएं लाघ लीं। क्योंकि बीते साल के आखिरी दिन ही भाजपा नेता किरीट सोमैया ने लखनऊ में पत्रकारों से रूबरू होकर कुशवाहा की 24 फर्जी कंपनियों की जानकारी दी थी। यही नहीं इन्हीं सोमैया ने मायावती और उनकी बसपा सरकार के खिलाफ हजारों करोड़ के घोटालों से जुड़ी दो याचिकाएं भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दायर की हुई हैं। बावजूद भाजपा प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी शर्म-हया को खूंटी पर टांग कह रहे हैं, ‘गंदे नाले भी गंगा में मिलने से पवित्र हो जाते हैं।’ लेकिन गंगा बनाम भाजपा को पवित्र बनाए रखने का यह भ्रम भाजपा के चाल, चरित्र और चेहरे को चटकाने वाला साबित होगा। इसका असर न केवल उत्तरप्रदेश बल्कि उत्तराखण्ड और पंजाब में भी देखने को मिलेगा।

वैसे तो चुनावी माहौल में सियासी दांव चलना कोई खास बात नहीं है, लेकिन भाजपा जैसे राजनीतिक दल को ऐसे दांव खेलने चाहिए, जो उसकी प्रकृति के अनुकूल हों। भाजपा एक के बाद बसपा से गंभीर आरोपों के चलते निकाले गए दागी मंत्रियों को अपनी जाजम पर बिठाने के जिस काम में लगी है, वह उसे अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने वाला है। क्योंकि भाजपा के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कुछ माह पहले ही भ्रष्टाचार के खिलाफ निकाली जन चेतना यात्रा पूरी की है। संसद में भी सुषमा स्वराज और अरूण जेटली के माध्यम से वह भ्रष्टाचार के खिलाफ मुख्य विपक्षी दल के रूप में असरकारी भूमिका निभाती रही है। अन्ना आंदोलन और सशक्त लोकपाल विधेयक के पक्ष में अब तक वह जो समर्थन दिखाती चली आ रही थी, वह भी हाथी के दांत साबित हो रहा है। अब भाजपा कौन सा मुंह लेकर भ्रष्ट-तंत्र के खिलाफ अलख जगाएगी ?

उत्तरप्रदेश में भाजपा ने अपनी पतली हालत को गाढ़ी करने की जो विस्मयकारी मिसाल पेश की है, वह उसे असहज व कमजोर करने वाली है। क्योंकि बसपा के जिस पूर्व परिवार कल्याण मंत्री बाबूसिंह कुशवाहा से भाजपा ने हाथ मिलाया है, भाजपा के राष्ट्रीय सचिव किरीट सोमैया ने इन्हीं कुशवाहा के भ्रष्टाचार का कच्चा चिट्ठा लोकायुक्त को पेश किया हुआ है। इस चिट्ठे में कुशवाहा की 24 ऐसी फर्जी कंपनियों की शिकायतें हैं, जिनके जरिए ‘राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ मिशन’ (एनएचआरएम) के जरिए करोड़ों का चूना तो लगाया ही गया, तीन जिला स्तरीय स्वास्थ्य अधिकारियेां की भी हत्याएं हुईं। किरीट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में भी बसपा सरकार के खिलाफ हजारों करोड़ के घोटाले से संबंधित दो याचिकाएं दायर की हुई हैं। इनमें से एक नोएडा भूमि घोटाले से जुड़ी है, तो दूसरी उत्तरप्रदेश ऊर्जा निगम के घोटाले से। एनएचआरएम घोटाले की जांच कर रही सीबआई ने 4 जनवरी 2012 को ही कुशवाहा एवं उनके सहयोगियों के एक साथ 60 ठिकानों पर छापे मारकर ऐसे दस्तावेज एवं अघोषित संपत्ति हासिल की हैं, जिनकी बिना पर सीबीआई कभी भी कुशवाहा को हिरासत में ले सकती है। ये छापे हाईकोर्ट के दिशा-निर्देश पर डाले गए हैं, इसलिए भाजपा यह भी नहीं कह सकती कि केंद्र की यूपीए सरकार सीबीआई का इस्तेमाल कर रही है।

अपराधियों को शरण देने का भाजपा का सिलसिला कुशवाहा तक ही नहीं ठहर गया है, बसपा से निष्काषित बादशाह सिंह, ददन मिश्र और अवधेश कुमार वर्मा को भी पार्टी की आनन-फानन में सदस्यता दे दी गई है। ददन मिश्र और अवधेश कुमार को तो भाजपा ने टिकट से भी नवाज दिया है। जाहिर है भाजपा की भ्रष्टाचार विरोधी तंत्र-स्थापना में अब तक जो भूमिका स्वीकार की जाती रही है, उसे पलीता लगने जा रहा है। उसका दो मुंहा चेहरा और दोहरे मानदण्ड उजागर हो गए हैं। इस दोगली राजनीति का असर पंजाब और उत्तराखण्ड में भी दिखाई देगा। वैसे भी इन दोनों राज्यों में से उत्तराखण्ड में भाजपा स्वतंत्र रूप से तो पंजाब में अकाली दल के साथ सत्ता में है। इस राज्य की वैसे भी मिसाल रही है कि यहां सत्तारूढ़ दल कभी दोबारा से चुनाव जीतकर बहुमत में नहीं आया। फिर इस गठबंधन के कार्यकाल में दफन हो चुके उग्रवाद की भी फिर से अंगड़ाई लेने की खबरें आ रही हैं। ‘बब्बर खालसा अंतरराष्ट्रीय आंतकवादी संगठन’ की गतिविधियां पैर पसार कर पंजाब की शांति को चुनौती बन रही हैं। पंजाब के किसान संकट में हैं। जिस हरति क्रांति के बूते एक समय पंजाब कृषि के लिए उदाहरण बन गया था, वहां से भी किसान आत्महत्याओं की खबरें आ रही हैं। बाजिव दाम न मिलने के कारण हाल ही में पंजाब के शीत-गृहों से लाखों टन आलू सड़कों पर उड़ेला गया है। ऐसे विपरीत हालातों में उत्तप्रदेश का संदेश कांग्रेस को बल देगा।

उत्तराखण्ड में तो भाजपा और भी बुरे हाल में है। भ्रष्टाचार के छींटों से भाजपा की कमीज रंगी है। इन्हीं आरोपों के चलते, चुनाव नजरिए से भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने यहां के मुख्यमंत्री को बदलकर यह संदेश देने की कोशिश की थी कि वह भ्रष्टाचार मुक्त शासन-प्रशासन चाहती है। वैसे भी भाजपा विकास की बजाए उत्तराखण्ड के शैल-शिखरों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लीज पर देकर, उत्खनन से मिलने वाली धन-राशि से राज्य खर्च चलाती रही है। दवा कंपनियों के अंधाधुंध दोहन से यहां के बेशकीमती खनिज और बहु-उपयोगी जड़ी-बूटियां संकट में हैं। भाजपा यहां बुनियादी विकास को बीते पांच सालों में विस्तार देने में नाकाम रही है। नए रोजगार सृजन के भी सत्तारूढ़ दल ने कोई उपाय नहीं किए। ऐसे में भाजपा की अन्य दलों की तुलना में कमोबेश जो बेहतर छवि थी, उसे दागियों को शामिल करके और पलीता लगा लिया।

हालांकि भ्रष्टाचार के हमाम में सभी राजनीतिक दल गले-गले डूबे हैं, इसकी पुष्टि खुद राजनीतिक दलों ने अपराधियों को टिकट देकर कर दी है। अब तक उम्मीदवारों की जो घोषणाएं की गई हैं, उनमें कांग्रेस के 26, भाजपा के 20, समाजवादी पार्टी के 24 और राष्ट्रीय लोकदल के एक प्रत्याशी की किसी न किसी रूप में आपराधिक पृष्ठभूमि रही है। इससे यह स्थिति आपने-आप बन गई है कि राजनीति के स्तर पर कोई भी दल स्वच्छ छवि का पैरोकार नहीं है। यहां यह भी साबित हो गया है कि अन्ना आंदोलन के असर से भी सभी दल बेअसर हैं। लिहाजा बजट सत्र में भी सशक्त लोकपाल की उम्मीद बेमानी है। भाजपा ने भी उत्तरप्रदेश चुनाव के मद्देनजर भ्रष्टाचारियों को शामिल होने के लिए जो खिड़की खोली है, वह कालांतर में परनाले का रूप लेगी और भाजपा खुद गटर गंगा में डूबकी लगाती दिखाई देगी। इस कार्रवाई से भाजपा शीर्ष नेतृत्व मं भी दो फाड़ होते दिखाई देने लगे हैं।

 

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  1. आपका यह लेख आँख खोलने वाला(आई ओपेनर) तो है,पर सत्ता मद में अंधे लोगों की आँखे कैसे खुलेगी?तुर्रा यह कि बीजेपी तो अहंकार में इतना डूब गया है कि इसके कुछ नेता अपनी पार्टी की तुलना गंगा से करने लगे हैं.उन अहंकारियों को पहले तो यह ज्ञात होना चाहिए कि कोई भी पार्टी गंगा जैसी पावन नहीं है.दूसरे गंगा की पवित्रता भी जब गंदगियों की अम्बार में दम तोड़ती नजर आ रही है तो उनका क्या हाल होगा जो पहले से ही गंदे हैं ,फिर भी अपनी गंदगी बढाने में लगे हुए हैं.

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