सत्येंद्र गुप्ता की गजले

love संग बीमार नहीं हुआ जाता
टूटी किश्ती में सवार नहीं हुआ जाता !
हज़ार कयामतें लिपटती हैं  क़दमों से
मगर फिर भी लाचार नहीं हुआ जाता !
बेशुमार धब्बे हैं धूप के तो दामन पर
हम से ही गुनाहगार नहीं हुआ जाता !
रहमतें तो बरसती हैं आसमां से बहुत
रोज़ के रोज़ साहूकार नहीं हुआ जाता !
यह भी सच कहा है किसी ने  दोस्तों
दोस्ती में ही दावेदार नहीं हुआ जाता !
उम्र गुज़र गई फाकामस्ती में ही सारी
अब हम से तो बेकरार नहीं हुआ जाता !
अपने दुश्मन को भी दुआ दे दें दिल से
इतना भी तो दिलदार नहीं हुआ जाता !
अब ये करें की तोड़ लें रिश्ता बेवफा से
हम से और  तलबगार नहीं हुआ जाता !
अब फ़रिश्ते नहीं उतरते हैं  ज़मीन पर
अब किसी का तरफदार नहीं हुआ जाता !
कुछ नहीं बदलेगा यह मालूम है मुझको
फिर भी मगर खबरदार नहीं हुआ जाता !
आख़िर कितनी और हम ख़ाक़ उड़ाते
कभी तो हवा के सुर में गीत मिलाते !
कोई खुशबु तो  हमारे अंदर  भी थी
क्या गज़ब करते अगर हम महक जाते !
ज़रा सी जिंदगी है बस चार दिन की
तमाशे इसमें और हम कितने दिखाते !
आंसुओं  के संग सब बह गया काज़ल
हिसाब दर्द का हम और कितना चुकाते !
वक्त अगर मोहलत हमको और दे देता
यक़ीनन हम भी कुछ क़माल कर जाते !
हुस्न तो ढल गया ग़ुरूर अभी बाकी है
नशा भी उतर गया सरूर अभी बाकी है !
हवाओं ने छेड़खानी की और चली गई
फ़िज़ा में बिखरी गर्देसफ़र अभी बाकी है !
ढूंढते ढूंढते इश्क की नदी तक पहुँच गये
उसमे उतरने का ही हुनर अभी बाकी है !
तेरे बीमार को करार मिल सका न कहीं
उसका भटकना इधर उधर अभी बाकी है !
जो भो मिला बिछड़ने का सबब पूछता है
चेहरे पर जख्मों का नूर अभी बाकी है !
आँख से बहते आंसू थम न सके अब तक
सुनहरा है जख्म शबे हिज्र अभी बाकी है !
दिल को हमारे ही इश्क करना न आया
दिल में एक गम यह जरूर अभी बाकी है !

1 COMMENT

  1. संग बीमार नहीं हुआ जाता

    मिसरा अधूरा सा लगा ग़ज़ल अच्छी लगी बधाई स्वीकारें

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