भू-संपदा का अवैध दोहन करते यह ‘बाहुबली देशभक्त’

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-तनवीर जाफ़री

पिछले दिनों गुजरात उच्च न्यायालय के समक्ष दिन दहाड़े अमित जेठवा नामक एक युवा सामाजिक कार्यकर्ता की दो अज्ञात मोटर साईकल सवार युवकों द्वारा गोली मार कर हत्या कर दी गई। अमित जेठवा सूचना के अधिकार के अंतर्गत पर्यावरण एंव अन्य सामाजिक क्षेत्रों में बड़ी ही सक्रियता एंव निर्भीकता से कार्य करते थे। अमित के पिता भीखू जेठवा का आरोप है कि जूनागढ़ से भारतीय जनता पार्टी के सांसद दीनू सोलंकी ने उनके पुत्र अमित जेठवा की हत्या करवाई है। उनका कहना है कि सांसद सोलंकी उन्हें तथा उनके पुत्र अमित को कई बार फोन पर जान से मारने की धमकी भी दे चुके थे। ग़ौरतलब है कि जूनागढ़ के इस बाहुबली सांसद दीनू सोलंकी का गुजरात में बड़े पैमाने पर खनन का व्यापार है। उसके द्वारा किए जा रहे अवैध खनन के विरूद्ध अमित जेठवा ने गुजरात उच्च-न्यायलय में एक जनहित याचिका भी दायर की थी। इसी के बाद कथित रूप से सोलंकी ने अमित जेठवा को धमकाना शुरू कर दिया था। शहीद अमित जेठवा के रूप में एक और देशभक्त, कर्तव्यनिष्ठ पर्यावरण प्रेमी तथा सूचना के अधिकार कानून को अपना शस्त्र बना कर राष्ट्र का कल्याण करने हेतु कार्य करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता ने अपनी कुर्बानी दे दी है। और अति दुर्भाग्यपुर्ण बात यह है कि उसकी हत्या का आरोप उस राजनैतिक दल के सांसद पर लगाया जा रहा है जो देश में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद लाने, राम राज्‍य लाने तथा भय-भूख और भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने की बात करती है। यह भी एक अजब इत्तेंफाक़ है कि यह दर्दनाक व शर्मनाक हादसा उस राज्‍य में हुआ है जहां के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी के कथित सांस्कृतिक राष्ट्र्रवाद के अलमबरदार बन कर आगामी लोकसभा चुनाव में संभवत: प्रधानमंत्री पद के मज़बूत दावेदार के रूप में प्रस्तावित किए जाने वाले हैं।

राष्ट्रीय संपदा के अवैध दोहन का आरोपदेश के अकेले इसी सांसद सोलंकी पर ही नहीं है। पिछले दिनों कर्नाटक राज्‍य में बेल्लारी के रेड्डी बंधुओं का नाम भी इसी प्रकार के अवैध खनन के व्यापार को लेकर सुर्ख़ियों में आया था। कैसी विडंबना है कि कर्नाटक के यह रेडडी बंधु राज्‍य की भाजपा शासित येदुरप्पा सरकार में मंत्री पद को भी ‘सुशोभित ‘कर रहे हैं। कुछ समय पूर्व जब मुख्‍यमंत्री येदुरप्पा से इन रेड्डी बंधुओं ने अपना मुंह मोड़ लिया था उस समय राज्‍य की सरकार गिरने तक की नौबत आ गई थी। सोचा जा सकता है कि राज्‍य के अधिकांश भाजपा विधायकों को रेड्डी बंधुओं का किस प्रकार का ‘संरक्षण’ प्राप्त है। गत् दिनों एक बार फिर इन्हीं रेड्डी बंधुओं के बेल्लारी में कथित रूप से लगातार हो रहे अवैध खनन को लेकर राज्‍य के कांग्रेस विधायकों ने सदन में धरना दिया था तथा इनके विरुद्ध कार्रवाई की मांग की थी। वहां के राज्‍यपाल हंसराज भारद्वाज ने भी इन्हें मंत्रिमंडल से हटाने की भी विवादित रूप से सिंफारिश कर डाली थी। परंतु रेड्डी बंधुओं के नाम से प्रसिद्ध कर्नाटक के पर्यटन मंत्री जनार्दन रेड्डी तथा राजस्व मंत्री करूनाकर रेड्डी की ‘सेहत’ पर इस प्रकार के राजनैतिक भूचालों को न तो पहले कोई प्रभाव पड़ा था न ही इस बार पड़ा। राज्‍यपाल भारद्वाज ने तो साफतौर पर यह कह डाला था कि साठ हजार करोड़ रुपये की सार्वजनिक धन संपत्ति के घोटाले में संलिप्त रेड्डी बंधुओं को मुख्‍यमंत्री येदुरप्पा द्वारा हटा दिया जाना चाहिए। याद रहे कि रेड्डी बंधु बेल्लारी में जिस भू-संपदा का खनन करते हैं उससे पर्याप्त मात्रा में लोहे का अव्यव प्राप्त होता है। इसे ऑयरन कोर भी कहा जाता है। इस माल का निर्यात रेड्डी बंधु चीन देश को करते आ रहे हैं। यह ओबलापुरम माईनिंग कंपनी के स्वामी हैं तथा इनकी माईनिंग का क्षेत्र कर्नाटक व आंध्र प्रदेश दोनों ही रायों की सीमा के अंतर्गत् अर्थात् रॉयल सीमा क्षेत्र में पड़ता है।

इन रेड्डी बंधुओं की ताकत का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह जब चाहें तब न केवल येदुरप्पा सरकार को गिरा सकते हैं बल्कि राज्‍य के अनेक प्रशासनिक अधिकारियों को इधर से उधर करना भी इनके चुटकी बजाने केखेल जैसा है। कर्नाटक के मुख्‍यमंत्री के प्रिंसीपल सेक्रेटरी पी वी बालगिरी को इन्हीं के दबाव में येदुरप्पा को हटाना पड़ा था। यह वही रेड्डी बंधु हैं जिनके निमंत्रण पर भाजपा नेता सुषमा स्वराज बेल्लारी से सोनिया गांधी के विरुद्ध लोकसभा का चुनाव लड़ी थीं। अब यहां यह बताने की आवश्यकता नहीं कि उस पूरे चुनाव का खर्च किसने उठाया होगा। कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी बेल्लारी बंधुओं की इसलिए भी हमेशा न केवल ‘शुक्रगुजार’ बल्कि ‘ताबेदार’ भी रहेगी क्योंकि अपने धनबल के द्वारा ही इन्होंने दक्षिण भारत के किसी राज्‍य में पहली बार भाजपा को सत्ता का स्वाद चखाया है। अन्यथा एक ही व्यवसायिक परिवार के दो सगे भाईयों को एक ही मंत्रिमंडल में मंत्री बनते बहुत ही कम अथवा शायद कहीं नहीं देखा गया होगा।

रेड्डी बंधुओं की दौलत का प्रभाव केवल भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं, राज्‍य के मुख्‍यमंत्री अथवा विधायकों तक ही सीमित नहीं है। बल्कि आंध्र प्रदेश की सीमा के अंतर्गत् पड़ने वाली अपनी खदानों में बेरोक-टोक तथा मनमानीपूर्ण दोहन निर्बाध रूप से चलने देने हेतु इन्होंने आंध्र प्रदेश राज्‍य के तमाम कांग्रेस नेताओं को भी ‘प्रभावित’ किया हुआ है। खबर तो यह भी है कि आंध्र प्रदेश के स्वर्गीय मुख्‍यमंत्री वाई एस राजशेखर रेड्डी का भी इन्हें संरक्षण प्राप्त था। उनके सांसद पुत्र जगनमोहन से भी इन रेड्डी बंधुओं के गहरे रिश्ते बताए जा रहे हैं। हालांकि नवंबर 2009 में आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले के अंतर्गत पड़ने वाली उनकी तीन खदानों में खनन करने पर रोक लगा दी गई थी। इन पर आरोप है कि इस राज्‍य में भी अवैध खनन द्वारा इन्होंने सैकड़ों करोड़ रुपये का चूना लगाया है। इन रेड्डी बंधुओं ने आंध्र प्रदेश में पट्टे से अधिक के क्षेत्र में न केवल खनन कार्य किया था बल्कि अपने धन बल व बाहुबल के द्वारा अन्य कंपनियों को खनन हेतु आबंटित की गई जमीनों पर भी कब्‍जा जमा लिया था। यदि तेलगू देशम पार्टी प्रमुख चंद्र बाबू नायडू के आरोपों को माना जाए तो पूर्व मुख्‍यमंत्री स्वर्गीय वाई एस आर रेड्डी के पुत्र जगनमोहन तथा रेड्डी बंधुओं के मध्य खनन व्यापार में सांझेदारी भी है। कहना गलत नहीं होगा कि इन शक्तिशाली रेड्डी बंधुओं का न केवल इनके गृह राज्‍य कर्नाटक में बल्कि आंध्रप्रदेश में भी एक समान ही रुतबा है।

देश को बेचकर खाने वालों की वास्तव में एक बहुत लंबी सूची है।इनमें और भी तमाम मंत्री, सांसद तथा विधायकगण शामिल हैं। परंतु इन देश चलाने वाले तथाकथित देशभक्तों का कोई भी कुछ नहीं बिगाड़ पाता। यदि भारत के किसी सच्चे सपूत की ओर से कोई आवाज उठती भी है तो उसे अमित जेठवा की ही तरह ‘खामोश’ कर दिया जाता है। दूसरी ओर छोटे-मोटे अपराध करने वाले अथवा छोटी-मोटी चोरियां करने वाले लोगों के विरुद्ध सरकारी तंत्र आनन फानन में कड़ी कार्रवाई कर देश को यह दिखा देता है कि देश में अब भी कानून का राज्‍य है। परंतु जब हमारे देश के शासन तंत्र तथा व्यवस्था में देश बेचकर खाने वालों का निर्णायक दंखल हो जाए तथा वे इस हद तक शक्तिशाली बन जाएं कि किसी भी राजनैतिक दल के जितने चाहें उतने विधायकों को चुनाव लड़वा कर जितवा दें। जब चाहें स्वयं मुंह मांगे विभाग के मंत्री बन जाएं। जिसे चाहें मंत्री बनवा दें। जब चाहें तब मुख्‍यमंत्री की कुर्सी के नीचे भूचाल पैदा कर दें। ऐसे में आखिर किस नौकरशाह की हिम्‍मत है कि वह इनके विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद करे।

अभी ज्‍यादा समय नहीं बीता है जबकि झारखंड राज्‍य के मेहनतकश लोगों ने मधु कौड़ा जैसे महालुटेरे मुख्‍यमंत्री को झेला है। कांग्रेस के समर्थन से बनाए गए इस 38 वर्षीय मुख्‍यमंत्री पर कई हजार करोड़ रुपये के महाघोटाले का आरोप है। अपने अल्पकालीन मुख्‍यमंत्रित्व काल में इस ऐतिहासिक रूप से महाभ्रष्ट मुख्‍यमंत्री ने राज्‍य में अवैध खनन को भरपूर बढ़ावा दिया। इसने इतनी असीम धन संपदा अर्जित कर ली है कि इसने देश में दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, रांची, लखनऊ, नासिक, चाईबासा तथा जमशेदपुर जैसे शहरों में अरबों रुपये की अवैध संपत्ति ख़रीदी तथा यहां तमाम कारोबारों में भारी निवेश किया। देश के इस महालुटेरे मुख्‍यमंत्री पर संयुक्त अरब अमीरात, थाईलैंड, इंडोनेशिया, सिंगापुर तथा लाईबेरिया में भारी निवेश करने तथा कई देशों में खदानें खरीदे जाने का भी आरोप है। भारी काले धन को सफेद करने वाले इस पहले मुख्‍यमंत्री पर प्रवर्तन निदेशालय द्वारा मनी लांड्रिंग विरोधी अधिनियम के तहत भी मामला चलाया जा रहा है। झारखंड में अर्जुन मुंडा सरकार में यह खनिज मंत्री था। उस समय से मुख्‍‍यमंत्री बनने तक इस व्यक्ति ने धन उगाही के सिवा और कोई दूसरा कार्य ही नहीं किया।

मधु कौड़ा जैसे देश को बेचकर खानेवाले लुटेरे व्‍यक्ति को झारखंड के मुख्‍यमंत्री की कुर्सी पर बिठाने में महाराष्‍ट्र के पूर्व गृहमंत्री तथा मुंबई कांग्रेस कमेटी के वर्तमान अध्‍यक्ष कृपाशंकर सिंह की महत्‍वपूर्ण भूमिका बताई जा रही है।

खबर है कि 2006 में जब झारखंड की राजनीति में भूचाल आया था उस समय कांग्रेस आलाकमान ने कृपाशंकर सिंह को राज्‍य का पर्यवेक्षक नियुक्‍त किया था। उस समय कृपाशंकर सिंह ने कांग्रेस अध्‍यक्षा सोनिया गांधी से यह सिफारिश की थी कि राज्‍य में भाजपा को पीछे धकेलने के लिए मधुकौड़ा को मुख्‍यमंत्री बनाना ही सर्वोत्तम होगा और इस प्रकार कौड़ा को मुख्‍यमंत्री बना दिया गया।

अब आरोप यह लग रहा है कि कृपाशंकर सिंह ने भी मधुकौड़ा से अपनी इस सिफ़ारिश की भरपूर क़ीमत वसूल की है। गोया भ्रष्‍टाचार के इस हमाम में सभी नंगे हैं। क्‍या सांस्‍कृतिक राष्‍ट्रवाद का ढिंढोरा पीटनेवाले तो क्‍या गांधीवाद की हुंकार भरने तथा सफ़ेदपोश बन कर खादी को बदनाम करनेवाले नेतागण। ऐसे में ऐसा प्रतीत तो नहीं होता कि इस देश को राजनीति का वर्तमान भ्रष्‍ट से भ्रष्‍टतम होता जा रहा ढांचा बचा सकेगा। परंतु इस देश के हित में तो बहरहाल यही होगा कि हम और आप आशावादी बने रहें तथा भविष्‍य की युवा नस्‍ल पर भरोसा करते हुए एक उज्‍जवल राष्‍ट्र के निर्माण की कल्‍पना संजोए रहें।

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