हर सवेरा नया और संध्या सुहानी हो!
मां की तस्वीर हो, माथे कश्मीर हो,
धोए चरणों को सागर का पानी हो।
पुरवा गाती रहे, पछुआ गुनगुन करे,
मानसून की सदा मेहरवानी हो।
सावन सूना न हो, भादों रीता न हो,
नाचे वन-वन में मोर- मीठी वाणी हो।
यमुना कल-कल करे, गंगा निर्मल बहे,
कभी रीते ना रेवा का पानी हो।।
बाएं अरुणाचल, दायें कच्छ का रण,
ह्रदय गोदावरी- कृष्णा -कावेरी हो।।
उपवन खिलते रहें, वन महकते रहें,
खेतों -खलिहानों में हरियाली हो।
लूटखोरी न हो, बेकारी न हो,
भ्रष्ट सिस्टम की बाकी निशानी न हो।
डरें पापों के भोग, पलें मेहनतकश लोग,
मिटे शोषण की अंतिम निशानी हो।
फलें फूलें दिग्दिगंत, गाता आये वसंत,
हर सवेरा नया और संध्या, सुहानी हो।
श्री राम जी।
बहुत समय के पश्चात आप का आगमन हुआ।
और ऐसा हुआ, कि, चेतस को झंकृत ही कर गया।
सुंदर प्रास रचे हैं।
ऐसे ही आते रहे।
सहमत हो या ना हो, संवाद भी करते रहें।