रिश्तों में प्यार का व्यापार नहीं होता
तराजू से तौलकर भी तो प्यार नहीं होता।
दिल की ज़ागीर को मैं कैसे लुटा दूं
हर कोई चाहत का हक़दार नहीं होता।
उजाड़ शब की तन्हाई का आलम न पूछिए
मरने का तब भी तो इंतज़ार नहीं होता।
चमकते थे दरो-दीवार कभी मेरे घर के भी
अब शोखियों से भी दिल गुलज़ार नहीं होता।
बिछड़ते हुए उन आँखों का बोलना देख लेता
तो गया मैं कभी समन्दर पार नहीं होता।
मुझे देखते ही वो खिलखिलाकर हंस दिए
अदावत का कभी कोई मेयार नहीं होता।
ऐसा लगा दिल तुमसे, फिर कहीं और न लगा
घर में,किसी महफ़िल में, किसी ठौर न लगा।
मिलनसार,खुश सोहबत ,शादबाश होकर भी
दिल तन्हाई में तो लगा,फिर कहीं और न लगा।
तुमको तो मिलते रहे ,चाहने वाले हर क़दम
हमारे हाथ मुहब्बत का फिर वो दौर न लगा।
अपना अफ़साना ख़ुद की तरफ मोड़ दिया मैंने
तुमसे मिलने का जब कोई फिर तौर न लगा।
मेरे ज़हान में ख़ुदा बन्दों में ही तो बसता है
यह समझने में मुझे वक्त फिर और न लगा।
वक्त ही था जो मुझे बाख़बर कर गया
तश्नगी से मगर तर ब तर कर गया।
ज़िस्म का शहर तो वही रहा मगर
दिल को मेरे रख्ते-सफ़र कर गया।
मैंने जिस के लिए घरबार छोड़ा था
अपने घर से मुझे वो बेघर कर गया।
फ़िराक में गुज़र रही थी ज़िन्दगी मेरी
मेरे हाल की सबको खबर कर गया।
गमों से मेरे ताल्लुकात बना कर
हर शब को मेरी बे-सहर कर गया।
माना तस्सवुर तेरा मेहरबान रहा
पर दुआ को मेरी बे-असर कर गया।
शराब का रंग किस क़दर सब्ज़-ओ- ज़र्द है
छिपाए ज़िगर में जैसे कोई गहरा दर्द है।
बांहे फैलाए फिर भी बुलाती है सबको वो
लगता है ,हर दिल की बड़ी ही वो हमदर्द है।
आसाँ नहीं है दुनिया-ए मुहब्बत का सफ़र
आलम बड़ा ही बेज़ान और पुर-ज़र्द है।
मुहब्बत कुदरत है ,अहद-ए-वफ़ा नहीं
जिसे पाने की कोशिश में हर एक फ़र्द है।
चलाकर तीर मुसलसल पूछते हो क्यों
बताओ तो सही होता तुम्हे कहाँ दर्द है।
बन्दगी की अब कहीं मिसाल नहीं मिलती
यही सोचकर परेशान अब अक्लो-खिर्द है।
जाने दिल को किसकी नज़र लग गई
दर्द को मेरे किसी की उम्र लग गई।
धूप शाम तलक मेरे आँगन में थी
सब को ही इस की खबर लग गई।
मैं तो चल रहा था संभल कर बहुत
मुझ को ही ठोकर मगर लग गई।
वारदात तो कोई बड़ी ही हो जाती
अच्छा हुआ जल्दी सहर लग गई।
मां से कहूँगा , मेरी नज़र उतार दे
मुझ को भी हवाए-शहर लग गई।
पर्दे के पीछे की असलियत देखता है वो
हाथ मिलाते हुए हैसियत देखता है वो।
वज़ूद कैसा है ,पहनावा कितना उम्दा है
गले लगते हुए शख्शियत देखता है वो।
ख़ुद तो फिरता है, गली गली मारा मारा
सब की मगर मिल्कियत देखता है वो।
गरूर है उसका या फितरत आदमी की
हर नज़र में अपनी अहमियत देखता है वो।
वाह वाह गुप्ता जी क्या बात है ‘‘रिश्तों में प्यार का व्यापार नहीं होता’’ ‘‘ ऐसा लगा दिल तुमसेए फिर कहीं और न लगा’’ गजले क्या है आप के दिल से निकले हुए वो अरमान है जो न जाने कब से आपने अपने दिल में दबा और हम लोगो से छुपा रखे थे। सच आज आप का मन हल्का हो गया होगा खूबसूरत गजलो के लिये पुनः बधाई