इसी मिटटी में रहना है खुशी से या ख़फ़ा होकर,
कहां हम जायेंगे बतलाइये तुमसे जुदा होकर।
ये है वक़्ती सभी नज़दीकियां धोखा ना खा जाना,
हमारे वोट मांगेंगे ये सब हम पर फि़दा होकर।
तुम्हारी भूल को हम 6 दिसंबर याद रक्खेंगे,
हज़ारों साल लिपटेंगी तुम्हें अब ये बला होकर।
विरासत क़र्ज़ की हिस्से में मेरे क्यों आर्इ,
किसी दिन आप से पूछेगा ये बच्चा बड़ा होकर।
दिया क्या है हमें तुमने बड़ा आसान है कहना,
समझता है हर एक बेटा ये सच्चार्इ पिता होकर।
जे़हन रखना खुला गर सेहन में दीवार हो जाये,
कभी शर्मिंदगी होगी नहीं भार्इ सगा होकर।
ग़ज़ल जो इश्क़ के पैकर से बाहर आ जाये,
तुम्हारे शेर गंूजेंगे ग़रीबों की सदा होकर।
हमारी देशभकित का कोर्इ भी इम्तहां ले ले,
वतन महफूज़ रखना है हमें खुद भी फ़ना होकर।।