गजल-वतन महफ़ूज़ रखना है हमें खुद भी फ़ना होकर…..इकबाल हिंदुस्तानी

इसी मिटटी में रहना है खुशी से या ख़फ़ा होकर,

कहां हम जायेंगे बतलाइये तुमसे जुदा होकर।

 

ये है वक़्ती सभी नज़दीकियां धोखा ना खा जाना,

हमारे वोट मांगेंगे ये सब हम पर फि़दा होकर।

 

तुम्हारी भूल को हम 6 दिसंबर याद रक्खेंगे,

हज़ारों साल लिपटेंगी तुम्हें अब ये बला होकर।

 

विरासत क़र्ज़ की हिस्से में मेरे क्यों आर्इ,

किसी दिन आप से पूछेगा ये बच्चा बड़ा होकर।

 

दिया क्या है हमें तुमने बड़ा आसान है कहना,

समझता है हर एक बेटा ये सच्चार्इ पिता होकर।

 

जे़हन रखना खुला गर सेहन में दीवार हो जाये,

कभी शर्मिंदगी होगी नहीं भार्इ सगा होकर।

 

ग़ज़ल जो इश्क़ के पैकर से बाहर आ जाये,

तुम्हारे शेर गंूजेंगे ग़रीबों की सदा होकर।

 

हमारी देशभकित का कोर्इ भी इम्तहां ले ले,

वतन महफूज़ रखना है हमें खुद भी फ़ना होकर।।

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

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