रात भर तेरी याद आती रही
बेवज़ह क़रार दिलाती रही।
जैसे सहरा में चले बादे सबा
सफ़र में धूप काम आती रही।
दमकता रहा चाँद आसमां पे
चांदनी दर खटखटाती रही।
ऊंघता बिस्तर कुनमुनाता रहा
तेरी ख़ुश्बू नखरे दिखाती रही।
कितना मैं अधूरा रह गया था
रात भर तेरी याद आती रही
बेवज़ह क़रार दिलाती रही।
जैसे सहरा में चले बादे सबा
सफ़र में धूप काम आती रही।
दमकता रहा चाँद आसमां पे
चांदनी दर खटखटाती रही।
ऊंघता बिस्तर कुनमुनाता रहा
तेरी ख़ुश्बू नखरे दिखाती रही।
कितना मैं अधूरा रह गया था
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रहा है। ऐसे में मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। प्रवक्ता डॉट कॉम इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।