मन लगा यार फ़कीरी में
क्या रखा दुनियादारी में !
धूल उड़ाता ही गुज़र गया
तो क्या रखा फनकारी में !
वो गुलाब बख्शिश में देते हैं
जब भी मिलते हैं बीमारी में !
फिर हिसाब फूलों का लेते हैं
वो ज़ख्मों की गुलकारी में !
किस किस को समझाओगे
कुछ नहीं रखा लाचारी में !
मैं झुककर सबसे मिलता हूँ
कुछ तो है, मेरी खुददारी में !
ख़ुशबू उनकी जाफ़रानी है
चेहरे पर अज़ब नदानी है !
गालों पर दहकते हैं पलाश
शबाब उनका बे बयानी है !
चरचा पहुंचा चाँद पे उनका
लगा चाँद रु ब रु बेमानी है !
शब् ने चाँद से कहा हंसकर
तेरी चांदनी तो ये पुरानी है !
चाँद बोला,मेला दो घडी का है
यह माना रुत बड़ी सुहानी है !
उम्र तो रवानी है मौजो की
नहीं रहती हर पल जवानी है !
शबाब हर रात मेरा नया है
फिर कैसे चांदनी पुरानी है !
ज़ाम हो, शीशा हो या दिल
टूट जाना सबकी कहानी है !
अंधों के शहर में आइना न मिलेगा
पत्थरों के शहर में शीशा न मिलेगा !
जितनी भी पीनी है पी ले तू ओक़ से
यहाँ तुझको कोई पैमाना न मिलेगा !
जाने क्या सोचा करता है, हर वक्त
किसी पल भी वो अकेला न मिलेगा !
देख ली तुमने अगर तस्वीर हमारी
दिल कहीं और फिर लगा न मिलेगा !
हाथ थामलूँ या तेरी पेशानी चूमलूं
बार बार ऐसा तो मौका न मिलेगा !
अज़ब आलम है मेरी बेचारगी का
मुझ जैसा कोई बावला न मिलेगा !
मन कर रहा है, तुझे शुक्रिया कहूं
तुझ जैसा शख्स दूसरा न मिलेगा !
जिंदगी के दिन थोड़े से ही बचे हैं