गजल:नसीब-राघवेन्द्र कुमार ‘राघव’

तू  नहीं, बेवफा नसीब मेरा |

मैं पा सका न तुझको, क्या कुसूर तेरा |

तू बेवफा नहीं, बेवफा नसीब मेरा |

दिल की किताब को शायद मैंने पढ़ा नहीं था |

न राँझा मिला था हीर को न मजनू लैला से मिला था |

इन प्यार के किस्सों में न बांधा किसी ने सेहरा |

तू बेवफा नहीं, बेवफा नसीब मेरा |

प्यार इस जहाँ में दौलत से तोलते हैं |

प्रेम खेल यारों अमीर खेलते हैं |

मैं था गरीब यारों ये है कसूर मेरा |

तू बेवफा नहीं, बेवफा नसीब मेरा |

जब रूठा हो रब ही यारों कौन अपनाता हमें |

यादें ही मेरी दफन थीं कौन समझाता हमें |

रुखसती के क्षण में उनको सलाम मेरा |

तू बेवफा नहीं, बेवफा नसीब मेरा |

हर चीज़ बदल जाती है मौसम के साथ में |

तुम भी बदल गए किस्मत के साथ में |

मुबारक हो तुमको चमन का सितारा |

तू बेवफा नहीं, बेवफा नसीब मेरा ||

Previous articleहाथ दुश्मन का थाम लूं कैसे…..
Next articleकैसे बचेगी बेटी
राघवेन्द्र कुमार 'राघव'
शिक्षा - बी. एससी. एल. एल. बी. (कानपुर विश्वविद्यालय) अध्ययनरत परास्नातक प्रसारण पत्रकारिता (माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय जनसंचार एवं पत्रकारिता विश्वविद्यालय) २००९ से २०११ तक मासिक पत्रिका ''थिंकिंग मैटर'' का संपादन विभिन्न पत्र/पत्रिकाओं में २००४ से लेखन सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में २००४ में 'अखिल भारतीय मानवाधिकार संघ' के साथ कार्य, २००६ में ''ह्यूमन वेलफेयर सोसाइटी'' का गठन , अध्यक्ष के रूप में ६ वर्षों से कार्य कर रहा हूँ , पर्यावरण की दृष्टि से ''सई नदी'' पर २०१० से कार्य रहा हूँ, भ्रष्टाचार अन्वेषण उन्मूलन परिषद् के साथ नक़ल , दहेज़ ,नशाखोरी के खिलाफ कई आन्दोलन , कवि के रूप में पहचान |

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here