बोफोर्स का जिन्न फिर हुआ प्रकट

सिद्धार्थ शंकर गौतम

इंदिरा गाँधी के पुत्र राजीव गाँधी के राजनीतिक जीवन को लील जाने वाले बोफोर्स घोटाले के पिटारे से इस बार ऐसा खुलासा हुआ है जिससे सरकार और कांग्रेस दोनों सकते में हैं| स्वीडन के पूर्व पुलिस प्रमुख और मामले की जांच से जुड़े रहे स्टेन लिंडस्ट्रोम ने २५ वर्ष बाद इस मामले में जुबान खोली है। स्टेन का कहना है कि बोफोर्स तोप (१५५ मिमी होवित्सर) खरीद सौदे में हुए ६४ करोड़ के घोटाले में राजीव गांधी (तत्कालीन प्रधानमंत्री) के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं है। राजीव ने इस सौदे में घूस तो नहीं ली थी, लेकिन पर्याप्त साक्ष्यों के बावजूद मुख्य आरोपी और इतालवी व्यापारी अट्टावियो क्वात्रोची को कानूनी फंदे से बचाया। उन्होंने यह भी खुलासा किया कि फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन का इस मामले से कोई लेना देना नहीं था लेकिन भारतीय जांच अधिकारियों ने जबरन उनका नाम इसमें घसीटा।

८० के दशक के आखिरी वर्षो में बोफोर्स घोटाला उजागर करने वाले स्टेन लिंडस्ट्रोम ने एक बेबसाईट को दिए साक्षात्कार में कहा है कि राजीव गांधी ने बोफोर्स एबी कंपनी से कोई घूस नहीं ली। इस बात के साक्ष्य नहीं हैं कि १५०० करोड़ रुपये के सौदे में राजीव ने रिश्वत ली, लेकिन उन्होंने क्वात्रोची को बचाने की कोशिशों पर कोई रोक नहीं लगाई और मामले की लीपापोती के प्रयासों को मूकदर्शक बन कर देखते रहे। क्वात्रोची के खाते में धन हस्तांतरण के पुख्ता सबूतों के बाद भी उन्होंने इस मामले में कुछ भी नहीं किया। लिंडस्ट्रोम ने आगे कहा कि बोफोर्स तोप सौदे में दलाली के मामले में बहुत से भारतीय संस्थानों का बचाव किया गया, निर्दोष लोगों को सजा दी गई, जबकि दोषियों को जाने दिया गया। क्वात्रोची के खिलाफ पुख्ता सबूत थे फिर भी स्वीडन या स्विट्जरलैंड में किसी को उनसे पूछताछ की अनुमति नहीं दी गई। गौरतलब है कि २४ मार्च १९८६ को भारत सरकार और स्वीडन की हथियार बनाने वाली कंपनी के बीच ४०० होवित्ज़र फ़िल्ड्गन की आपूर्ति के लिए १५ अरब अमेरिकी डॉलर का कांट्रेक्ट हुआ था| स्वीडिश रेडियो के इस खुलासे के बाद कि बोफ़ोर्स खरीद में घूस के तौर पर एक बड़े भारतीय नेता और सेना के अधिकारियों को बिचौलियों के माध्यम से भारी रकम दी गयी है, भारतीय राजनीति में भूचाल ला दिया था| राजीव गांधी की राजनीति बोफ़ोर्स कांड की बलि चढ़ गयी| तब से लेकर अब तक बोफ़ोर्स घोटाले की गूँज राजनीति में गूंजती रही है और यह सिलसिला अनवरत जारी है|

२० दिसम्बर २००० को क्वात्रोची को मलेशिया में गिरफ्तार भी किया गया, लेकिन वह जमानत पर छूट गया| भारत सरकार तथा सी.बी.आई. ने कभी गंभीरता से क्वात्रोची के भारत प्रत्यर्पण तथा उस पर मामला चलने का यत्न नहीं किया| २००८ में तो क्वात्रोची के खिलाफ रेड-कॉर्नर नोटिस तक वापस ले लिया गया| सीबीआइ की इस मामले में निष्क्रियता से एक सवाल यह भी उठा कि क्या क्वात्रोची का बचाव कर सी.बी.आई. राजीव-सोनिया को क्लीन चिट देना चाहती है? अब जबकि स्टेन लिंडस्ट्रोम ने खुद ही इस सच से पर्दा उठा दिया है कि राजीव ने ही क्वात्रोची को बचाने के यत्न किए तो प्रथम दृष्टया तो राजीव इस मामले के सहभागी बनते हैं| देश के प्रधानमंत्री से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वह किसी भी घोटाले-घपले में मूल दर्शक बन देश की अस्मिता के साथ खिलवाड़ करे| राजीव गाँधी की इसी परंपरा को शायद वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी कुशलतापूर्वक निभा रहे हैं| दोषी न होते हुए भी दोषी का साथ देना नैतिकता के आधार पर दोष साबित करता है और इस वजह से देश राजीव गाँधी को बोफोर्स घोटाले का दोषी मानता रहेगा|

६४ करोड़ के घोटाले के लिए आम जनता के २५० करोड़ खर्च करने के बाद भी यदि कांग्रेस यह कहती है कि राजीव इस मामले में बेदाग़ थे तो यह इस देश का न केवल दुर्भाग्य है अपितु जनता के साथ एक भद्दा मज़ाक भी है| जहां तक बात राजीव के मित्र और फिल्म सितारे अमिताभ बच्चन की है तो उनपर लगा दलाली का दाग तो धुल गया किन्तु उनके दिल में जो कसक बाकी है उसे कौन मिटाएगा? कांग्रेस में गाँधी परिवार की राजनीति इतनी ओछी निकली की दोस्ती को भी दागदार कर दिया| अमिताभ ही क्या इस वाकये से तो अच्छे से अच्छा दोस्त भी शक का शिकार होता रहेगा| कांग्रेस लाख दलीलें दें किन्तु बोफोर्स घोटाला राजीव गाँधी के माधे पर लगा ऐसा दाग है जिसे कभी नहीं मिटाया जाएगा| देश इस घोटाले की याद हमेशा कांग्रेस को दिलाता रहेगा|

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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

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