गिलगित बल्तीस्तान में पाकिस्तान की चुनावी चाल

-डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री-

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जम्मू कश्मीर प्रदेश का जो इलाक़ा पाकिस्तान के क़ब्ज़े में है, उसमें से सबसे बड़ा और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इलाक़ा गिलगित बल्तीस्तान का ही है। गिलगित तो पूरे का पूरा ही पाकिस्तान ने क़ब्ज़े में किया हुआ है । बल्तीस्तान की एक तहसील कारगिल को छोड़ कर बाक़ी सारा इलाक़ा उसने दबा रखा है । यह क्षेत्र अफ़ग़ानिस्तान, चीन और रुस की सीमा के साथ लगने के कारण सामरिक लिहाज़ से अत्यन्त महत्वपूर्ण है । पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर के क़ब्ज़ाए गये हिस्से को दो भागों में बाँट रखा है। एक हिस्से को वह आज़ाद कश्मीर कहता है , जिसमें जम्मू संभाग के पंजाबी बोलने वाले इलाक़े और पंजाबी बोलने वाला मुज्जफराबाद है । इस इलाक़े में मुसलमानों का पूर्ण बहुमत है । गिलगित बल्तीस्तान को पाकिस्तान सरकार तथाकथित आज़ाद कश्मीर में शामिल नहीं करती ।

गिलगित बल्तीस्तान में शिया समाज का बहुमत है और बह पिछले कुछ अरसे से पाकिस्तान के मुसलमानों के निशाने पर है। शिया समाज के अनेक लोगों की हत्या आतंकवादी मुसलमानों द्वारा होती रहती है ।  गिलगित बल्तीस्तान का नाम , कुछ साल पहले , पाकिस्तान सरकार ने उत्तरी क्षेत्र कर दिया था । लेकिन यहाँ के शिया समाज द्वारा इसका ज़बरदस्त विरोध करने के कारण , सरकार को एक बार फिर पुराना नाम ही बहाल करना पड़ा । पाकिस्तान के संविधान में देश के जिन इलाक़ों का नाम शामिल किया हुआ है , उसमें गिलगित बल्तीस्तान शामिल नहीं है । पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय ने भी निर्णय किया है कि गिलगित और बल्तीस्तान पाकिस्तान का हिस्सा नहीं है ।

पिछले कुछ सालों से पाकिस्तान अपने देश के मुसलमानों को लाकर गिलगित बल्तीस्तान में बसा रहा है । शिया समाज को ख़तरा है कि पाकिस्तान की इस साज़िश के कारण , वे अपने इलाक़े में ही अल्पसंख्यक होकर रह जायेंगे ।  जिसके कारण शिया समाज और पाकिस्तानी मुसलमानों में झगड़े होते रहते हैं । लेकिन पाकिस्तान सरकार पर शिया समाज के इस विरोध का शायद कोई असर नहीं हुआ । पाकिस्तान ने निर्माण कार्य के नाम पर इस पूरे क्षेत्र में चीनी सेना को ही बुला लिया है । चीन ने पूर्वी तुर्किमिनस्तान के कशागार से लेकर इस्लामाबाद को जोड़ने बाली सड़क बना ली है । सह क गिलगित में से होकर जाती है और कराकोरम मार्ग या सिल्क रूट रोड कहलाती है । अब अनेक स्थानों पर चीनी सैनिकों और यहाँ के स्थानीय शिया समाज से भी झगड़े होते रहते हैं ।

सामरिक दृष्टि से पाकिस्तान और चीन मिल कर हिन्दोस्तान की घेराबन्दी कर रहे है , जिसके लिये हिन्दोस्तान के ही इलाक़े गिलगित बल्तीस्तान का दुरुपयोग किया जा रहा है । लेकिन इसके कारण इस पूरे इलाक़े में शिया समाज की पहचान और महत्व संकट में पड़ गया है । पाकिस्तान ने अब इसी गिलगित बल्तीस्तान में 8 जून 2015 को स्थानीय विधान सभा के लिये चुनाव करवाने की घोषणा कर दी है । इससे वहाँ के श्थानीय शिया समाज में ग़ुस्से की लहर है । उसका कारण यह है कि पूरे चुनाव में स्थानीय लोगों या फिर उनकी समस्याओं का कोई स्थान नहीं है । चुनाव व्यवहारिक रुप से सेना की देखरेख में ही करवाये जा रहे हैं । दरअसल क़ानून क़ायदे से यहाँ का शिया समाज भारतीय नागरिक है । परन्तु पाकिस्तान ने यहाँ इतने पाकिस्तानी मुसलमान बसा दिये हैं कि अब अनेक स्थानों पर उन्हीं का बर्चस्व हो गया है । विधान सभा की जिन चौबीस सीटों का चुनाव हो रहा है , उनमें पाकिस्तानी नागरिकों के चुनें जाने की भी संभावना है । वैसे भी ये चुनाव कहने के लिए सिविल चुनाव कहे जाते हैं , अन्यथा इन का पूरा नियंत्रण पाकिस्तानी सेना का रहता है । सेना जैसा चुनाव परिणाम चाहेगी , परिणाम वैसा ही निकल आयेगी । स्थानीय लोगों का इस चुनाव से इतना ही ताल्लुक़ है कि उसे इन चुनावों में , यदि वोट डालने का अवसर दिया जाये तो वह सेना के जवानों की देखरेख में मतदान केन्द्र पर जा सकता है । दूसरे, चुनाव करवाने का समय भी महत्वपूर्ण है । पाकिस्तान भारतीय सीमा का लगातार उल्लंघन कर रहा है । इस समय जम्मू कश्मीर के भीतर कुछ लोग पाकिस्तान के समर्थन में सभाएँ आयोजित कर रहे हैं । चाहे इन सभाओं में आम जनता की भागीदारी सीमित ही होती है और गुप्तचर एजेंसियों का ऐसा भी मानना है कि कुछ लोग सभी सभाओं में जाकर संख्या बढ़ाने का काम कर रहे हैं । लेकिन जम्मू कश्मीर की सीमा पर हो रही पाकिस्तानी सेना की गतिविधियाँ , प्रदेश के भीतर पाकिस्तान समर्थकों की गतिविधियाँ और मीडिया के एक हिस्से द्वारा इन दोनों को प्रसारित करने की संधियाँ , इन सी को एक साथ देखने पर एक पूरी योजना आसानी से समझा जा सकता है । ऐसे समय में पाकिस्तान गिलगित बल्तीस्तान में विधान सभा के चुनाव करवा रहा है । एक ऐसे इलाक़े में चुनाव करवाना जिसे पाकिस्तान का संविधान भी पाकिस्तान का हिस्सा नहीं मानता , निश्चय ही एक बड़े षड्यन्त्र का हिस्सा कहा जा सकता है ।

भारत सरकार ने पाकिस्तान के क़दम का सख़्त विरोध ही वहीं किया बल्कि उसके राजदूत को विदेश मंच्रालय में बुला कर अपना विरोध दर्ज करवाया । यह पहली बार है कि दिल्ली ने पाकिस्तान की गिलगित बल्तीस्तान में असंवैधानिक गतिविधियों पर अपना विरोध दर्ज करवाया है । यह पहली बार है कि भारत सरकार ने गिलगित बल्तीस्तान को लेकर अपनी चिन्ता ज़ाहिर की है । अन्यथा आज तक यह क्षेत्र जम्मू कश्मीर का हिस्सा होने के बाबजूद भारत सरकार की सक्रिय कूटनीति का हिस्सा नहीं रहा । जम्मू कश्मीर के महाराजा हरि सिंह , जिन्होंने इस रियासत को भारत सरकार अधिनियम १९३५ के प्रावधानों के तहत भारत की सांविधानिक व्यवस्था का हिस्सा बनाया था , १९४७ में ही गिलगित बल्तीस्तान को लेकर दिल्ली की इस निष्क्रिय नीति पर सख़्त ऐतराज़ करते हुये उस समय के प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा था । लेकिन शायद साउथ ब्लाक गिलगित बल्तीस्तान को लेकर सोया ही रहा । २००९ में जब पाकिस्तान ने इस क्षेत्र को स्वायत्त क्षेत्र कहना शुरु तर दिया था , भारत सरकार को तभी विरोध दर्ज करवाना चाहिये था । पाकिस्तान की यह चाल इस क्षेत्र को जम्मू कश्मीर से अलग दिखाने और मनवाने की थी । लेकिन उस समय दिल्ली सोई रही । दरअसल गिलगित बल्तीस्तान को लेकर भारत सरकार की नीति १९४७ से ही इसी प्रकार की ढुलमुल वाली रही है । १९४७ में ब्रिटिश सरकार को आशा थी कि जम्मू कश्मीर रियासत को महाराजा हरि सिंह पाकिस्तान में शामिल करेंगे । इसके लिये स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल लार्ड माऊंटबेटन ने उन पर काफ़ी दबाव भी डाला । लेकिन जब ब्रिटिश सरकार को लगा कि महाराजा जम्मू कश्मीर रियासत को पाकिस्तान का हिस्सा नहीं बनायेंगे बल्कि उसे हिन्दुस्तान की सांविधानिक व्यवस्था का हिस्सा ही रखेंगे , तो उसने रियासत के सर्वाधिक महत्वपूर्ण हिस्से गिलगित को रियासत में से निकालने का षड्यंत्र रचा । गिलगित के राज्यपाल घनसारा सिंह को मेजर ब्राऊन की अध्यक्षता में गिलगित स्काऊटस के सिपाहियों ने नज़रबन्द कर लिया । छावनी में ब्राउन ने पाकिस्तान का झंडा फहरा दिया । तभी से गिलगित बल्तीस्तान पाकिस्तान के क़ब्ज़े में है , लेकिन आश्चर्य की बात है कि भारत सरकार ने इस इलाक़े का प्रश्न कभी पाकिस्तान के साथ नहीं उठाया ।

इतना ही नहीं अरसा पहले पाकिस्तान ने इसी इलाक़े का एक हिस्सा चीन के हवाले कर दिया । अब भारत में चीन-पाक लाबी ने कहना शुरु कर दिया है कि जम्मू कश्मीर के प्रश्न पर चीन भी स्टेकहोल्डर है इसलिये उसे भी बातचीत में शामिल किया जाना चाहिये । चीन के सैनिकों को गिलगित में पाकिस्तान ने बुला ही रखा है । ऐसी पृष्ठभूमि में पाकिस्तान इस इलाक़े में चुनाव करवा कर विवाद को बढ़ाना चाहता है। दरअसल पाकिस्तान स्वयं भी अच्छी तरह जानता है कि इस क्षेत्र में ये चुनाव अन्तर्राष्ट्रीय क़ानून के हिसाब से भी ग़लत है। जिस संयुक्त राष्ट्र संघ की पाकिस्तान बार बार दुहाई देता रहता है, उसने भी साफ साफ़ कहा है कि क़ानूनी रुप से पूरा जम्मू कश्मीर प्रदेश भारत का हिस्सा है । लेकिन इस प्रदेश का जो हिस्सा पाकिस्तान के अवैध क़ब्ज़े में है , उसमें इस्लामाबाद दो अलग अलग सांविधानिक व्यवस्थाएँ लाद रहा है। भारत सरकार को इस बात की बधाई देनी होगी कि उसने गिलगित बल्तीस्तान को भी गंभीरता से अपने सक्रिय एजेंडा में शामिल किया है । लेकिन ध्यान रखना चाहिए कि गिलगित बल्तीस्तान को लेकर भारत की यह कूटनीति लम्बे समय तक चलनी चाहिए , तभी इसका लाभ होगा

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