शिक्षा छोड़ने को मजबूर हैं सरहद की बेटियाँ

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सिद्दीक अहमद सिद्दीकी
Poonch-civilians
भारतीय वायुसेना ने एक नया इतिहास रचते हुए अवनी चतुर्वेदी, भावना कंठ, और मोहना सिंह को प्रथम महिला फायटर पायलटो के रुप मे औपचारिक रुप मे जगह दी गई है। सशस्त्र बलो में लैंगिक समानता के प्रयासो को आगे बढ़ा रहे रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने हैदराबाद के बाहरी इलाके डुंडीगल मे स्थित वायुसेना अकादमी मे आयोजित संयुक्त ग्रेजुएशन समारोह मे मुख्य अतिथि के रुप मे भाग लेते हुए कहा कि “यह पहली बार है कि महिलाओ को युद्धक भूमिका दी गई है, यह एक स्वर्णिम दिन है कदम दर कदम आने वाले बरसो मे सशस्त्र बलो मे पूर्ण लैंगिक समानता हासिल की जाएगी”। स्पष्ट है सिर्फ वायुसेना के क्षेत्र मे ही नही बल्कि प्रत्येक क्षेत्र मे लैंगिक समानाता को बनाए रखने के लिए बेटियों को बचाना औऱ फिर उन्हे पढ़ाना ही एकमात्र रास्ता है लेकिन संयुक्त राष्ट्र के विश्व जनसंखया कोष (World Population Fund) की रिपोर्ट बताती है कि हमारे देश में पिछले 20 सालों में लगभग 10 करोड़ बेटियों को गर्भ में ही मार दिया गया। बात अगर शिक्षा के क्षेत्र की भी करें तो 2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार भारत मे कुल शिक्षा दर 74.04 प्रतिशत है।
जिला पुंछ की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार यहां की कुल जनसंख्या 372613 है, जिसमें महिलाओं की जनसंख्या 178400 जबकि पुरुषों की संख्या 194213 है। शिक्षा के क्षेत्र मे जिले की कुल साक्षरता दर 156398 है जिसमें साक्षर पुरुषों की संख्या 104051 और महिलाओं की कुल संख्या 52347 है, अगर इस संख्या को ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बांट दिया जाए तो शहरी क्षेत्रों में साक्षर महिलाओं की कुल संख्या 7269 है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 45078 है। जिला पुंछ तहसील सूरनकोट के गांव मरहोट में लड़कियों की शिक्षा छोड़ने के कारणो को जानने की कोशिश करें तो मालुम होता है कि यह एक घनी आबादी वाला क्षेत्र है। लगभग 15,000 आबादी वाले इस गांव में केवल एक ही हाई स्कूल है। जहां नौंवी और दसवीं कक्षा में 100 से 150 छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। यही कारण है कि अक्सर बच्चे दसवीं की परीक्षा में फेल हो जाते हैं। लड़के तो फिर से कोशिश करते हैं, मगर लड़कियों के माता पिता इंतजार नहीं करते औऱ उनकी शादी कर दी जाती है। जो छात्राएँ दसवीं पास हो जाती हैं उनके लिए भी आगे का रास्ता आसान नहीं है। इस संबंध में अपर मरहोट के सरपंच हाजी खादिम हुसैन का कहना है ”एक तो पूरे गांव में एक ही हाई स्कूल है। हालांकि हमने बार बार सरकार से मांग की कि लड़कियों के लिए एक अलग उच्च विद्यालय बनाया जाए लेकिन इस पर किसी ने ध्यान नही दिया, दूसरा बड़ा मुद्दा यहाँ से उच्च माध्यमिक स्कूल जाने के लिए लगभग पंद्रह किलोमीटर का रास्ता तय करना होता है जिसमे आधे रास्ते में सही सड़क नही है जबकि बाकी के रास्ते मे सड़क ही नही है। स्कूल का समय तो सभी के लिए एक ही है, लेकिन सड़क सही न होने के कारण एक ही समय मे बड़ी संख्या मे वाहन उपलब्ध नहीं होते ताकि सारी बच्चियां समय पर स्कूल पहुंच सकें और नौबत यहां तक पहुंच जाती है कि बच्चियों को आम सवारी के साथ भेड़-बकरियों की तरह धकेल दिया जाता है। वो आगे कहते हैं “रोज इस प्रकार की असुविधा के कारण कई बार बच्चियाँ खुद ही पढ़ाई छोड़ देती है औऱ कई बार माता पिता उन्हे पढ़ाई छोड़ने को कहते हैं ताकि रास्ते मे उनके साथ किसी प्रकार की कोई घटना न हो”। गांव के लोगों के अनुसार इस मुद्दे को बार बार सरकार और प्रतिनिधि के सामने रखा, लेकिन कान पर जूं तक न रेंगी। मरहोट से सूरनकोट तक केवल दो ही मेटाडोर (लोकल गाड़ी) उपलब्ध है, जबकि बाकी छोटे वाहन चलते हैं जिसकी वजह से ड्राइवरों को ओवरलोड करना पड़ता है जिससे हादसा होने का खतरा हमेशा बना रहता है। अगर यहाँ के रास्ते पर चलने वाली गाड़ियों को स्कूल जाते समय देखा जाए तो गाड़ियों की छत के अलावा जहां कहीं भी पैर रखने की जगह मिलती है मधुमक्खियों की तरह स्कूल के बच्चे नजर आते हैं। आपको बता दें कि सूरनकोट विधानसभा क्षेत्र से किसी भी उम्मीदवार के भाग्य का फैसला इसी गांव की जनता के हाथों होता है। यही कारण है कि इस क्षेत्र को राजनीतिक भाषा में “वोट बैंक” के नाम से भी जाना जाता है बावजुद इसके गांव मे शिक्षा व्यवस्था की जो हालत है उसे सुधारने के लिए अगर जल्द ही क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर तक प्रयास न किया गया तो इस क्षेत्र की बेटियाँ कभी किसी क्षेत्र मे अपनी काबिलियत का सबूत नही दे पाएगी।

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