गृहणी से उद्धयमी बनी गीता देवी

0
199

सरस्वती अग्रवाल

“व्यवसाय करने के लिए ज़्यादा पढ़ा लिखा होना जरुरी नही है बल्कि रुची होना ज़रुरी है” ये वाक्य है उत्तराखण्ड़ राज्य जनपद चमोली ग्राम भटोली के एक साधारण परिवार की गृहणी गीता देवी का  जिन्होने केवल 5वीं तक शिक्षा ग्रहण की है। बावजुद इसके वो एक सफल उद्धमी हैं और हर महीने 3500 से 4000 तक कमा लेती हैं।

दरअसल गीता देवी को घरेलू महिला से सफल उद्धमी स्थिति ने बनाया और गीता देवी ने स्थिति से भागने के बजाय साथ चलना पसंद किया। आपको बता दें कि गीता देवी के परिवार में पति- पत्नी 3  बेटियों और 2 बेटो को मिलाकर कुल 7 सदस्य हैं। सम्पूर्ण परिवार पूर्ण रूप से पति दरवान लाल पर निर्भर था ,जो राज मिस्त्री का कार्य करते है इसके अतिरिक्त आय का और कोई साधन नहीं था। मजदूरी से केवल तीन हजार की मासिक आय प्राप्त होती थी। इसके अतिरिक्त आय का और कोई साधन नहीं था। उनका एक कच्चा मकान है जिसमें दो कमरे व एक किचन है। गीता कृषि एवं पशुपालन का कार्य करती थी उनके पास 2 नाली सिंचित( आधा एकड़ से कम) व 20 नाली (एक एकड़) असिंचित भूमि है, एक बैल तथा 1 गाय है जिससे परिवार की दूध की आवश्यकता पूरी हो जाती है। इसके अतिरिक्त गीता कभी कभी घर के काम के साथ साथ फटे पुराने कपड़े भी सिल लेती थी।

एक दिन उद्योगिनी संस्था के कार्यकर्ताओं ने उनके गांव में ग्राम स्तरीय बैठक का आयोजन किया तथा ग्रामीणों को  देहरादून  स्थित “दी हंस फाउन्डेशन” के वित्तीय सहयोग से चलाये जा रहे उद्यमिता एवं कौशल विकास प्रशिक्षण की जानकारी दी। इस बैठक में गीता ने भी भाग किया तथा अपनी रूचि के अनुसार सिलाई के लिए आवेदन किया और 10-11-2016 से 10-01-2017 तक 60 दिन का सिलाई प्रशिक्षण प्राप्त किया।

15 दिन के प्रशिक्षण के दौरान ही गीता को लगा कि उनके कपड़ों की सिलाई में सफाई नही आ रही है और प्रशिक्षण में भी दो प्रतिभागियों पर एक मशीन उपलब्ध थी। इसीलिए उन्होंने सोंचा कि यदि वह अपनी मशीन से प्रशिक्षण प्राप्त करे तो वह जल्दी ही सफाई से कपड़े सिलने लगेगी। क्योंकि वो अब इस हुनर को अपनी जीविका का साधन बनाना चाहती थी। कारणवश गीता नें जो पैंसे बैंक में जमा किये थे उसका प्रयोग कर सिलाई मशीन खरीद ली और प्रशिक्षण के दौरान अपनी मशीन से प्रशिक्षण प्राप्त करने लगी। तत्पश्चात् उनकी सिलाई में सफाई आने लगी तब गीता ने आस पास की महिला से सीधे संपर्क कर कपड़े सिलवाने का प्रस्ताव रखा ताकि उन्हे अपना हुनर दिखाने के एक मौका मिल सके। धीरे धीरे उनके पास कपड़े सिलवाने की डिमांड भी आने लगी थी तो घर पर कपड़े सिलने का कार्य शुरू कर दिया।

डिमांड बढ़ने पर दुकान खोलने का फैसला लिया और बाजार जाकर दुकान के लिए कमरा ढूंढा जिसका किराया 500 रूपये मासिक देना तय हुआ। इसमें उनके पति ने उनका सहयोग किया। फिर भी पैसे कम पड़ने पर गीता ने 3500 रूपये में अपने बैल बेच दिये, 5000 अपने भाई से लिये और 1400 उसने सिलाई से कमाये थे। इसके अतिरिक्त 1500 स्वयं से लगाये। मशीन में व्यय कीमत को जोडकर गीता देवी ने लगभग 15000 में अपना उद्यम स्थापित किया। गीता ने अपने लिए 2500 का पैडल खरीदा और 14-02-2017 को भटोली में उद्यम स्थापित किया। दुकान खोलने के पश्चात् गीता देवी ने कुल 15 सूट, 10 ब्लाउज(5 सादे, 5 अस्तर वाले)व 6 पेटीकोट सिले जिनसे कुल 3860 रूपये प्राप्त किये। गीता के इस प्रयास के कारण न सिर्फ घर की आर्थिक स्थिति अच्छी हुई है बल्कि उनमें भी एक आत्मविश्वास पैदा हुआ है।

गीता के इस काम के कारण जीवन में क्या बदलाव आया है पूछने पर उनके पति दरवान लाल कहते हैं कि “पहले घर की पूरी जिम्मेदारी मुझ पर थी कभी काम न मिलने पर घर चलाना काफी मुश्किल होता था लेकिन गीता के कारण थोड़ा सहारा हो गया है अब कभी काम न भी मिल पाए तो ज़्यादा चिंता नही होती। गर्व है कि गीता ने कुछ कर दिखाया है”।

गीता के ग्राहक गीता के काम से कितने खुश है इस बारे में बात करने पर 26 साल की सतेश्वरी देवी ने बताया “गीता बहुत अच्छे कपड़े सिलती है। महिला होने के कारण किसी भी प्रकार के कपड़े सिलवाने में झिझक भी नही होती”।

एक अन्य ग्राहक रौशनी देवी कहती हैं “गीता की सिलाई में काफी सफाई है फिटिंग बहुच अच्छा देती है और नए नए डिज़ाईन भी बनाती है इसलिए हम गीता के पास ही अपने कपड़े देते हैं”।

स्वंय गीता अपने काम से कितनी खुश और संतुष्ट है इस सवाल के जवाब में वो कहती हैं “ सिलाई प्रशिक्षण के दौरान अन्य लोगों से बातचीत का अवसर प्राप्त हुआ और घर से बाहर आने का भी। इस काम के कारण मुझे अपनी क्षमता का अंदाज़ा हुआ और अब मैं रुकुंगी नही बल्कि भविष्य में अपनी दुकान में लेडिज़ के कपड़ो की थान, कुछ जरुरत के सामान भी रखुंगी। साथ ही धीरे धीरे एक सिलाई सेंटर भी स्थापित करुंगी ताकि हमारे गांव की लड़कियां के हाथों में भी सिलाई का हुनर आए। अगर हाथ में कोई हुनर हो तो बुरे समय में वही काम आता है और आप मेहनती हैं तो फिर आपको आगे बढ़ने से कोई नही रोक सकता। मैं उद्योगिनी संस्था व दी हंश फाउण्डेश का आभार व्यक्त करती हूं जिसने मुझे ये अवसर प्रदान किया”।

निसंदेह गीता देवी ने मेहनत और लगन के बल पर ये साबित कर दिखाया है कि कम पढ़ा लिखा होने के बाद भी सफल होकर एक अच्छा जीवन जिया जा सकता है। ये आप पर निर्भर करता है कि आप किसी के आगे हाथ फैला कर जीना चाहते हैं या मेहनत कर अपना भाग्य अपने हाथों लिखना चाहते हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here