गाँव चलें हम

चलो पिताजी गांव चलें हम ,
दादाजी के पास |
बहुत दिनों से दादाजी का,
नहीं मिला है साथ |
वरद हस्त सिर पर हो उनका ,
भीतर मेरे साध |
पता नहीं क्यों ह्रृदय व्यथित है,
मन है बहुत उदास |

दादी के हाथों की रोटी,
का आ जाता ख्याल |
लकड़ी से चूल्हे पर पकती,
सोंधी सोंधी दाल |
अन्न पूर्णा दादी माँ में,
है देवी का वास |

घर के पिछवाड़े का आँगन ,
अक्सर आता याद |
दादाजी पौधों में देते ,
रहते पानी खाद |
गाँव की मिटटी से आती ,
है मीठी उच्छ्वान्स|

जब जब भी हम गांव गए हैं ,
मिला ढेर सा प्यार |
दादा दादी काका काकी,
के मीठे उदगार|
हंसी ठिठोली मस्ती देती ,
खुशियों का अहसास |

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