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शुभ कार्यों और शादियों पर लगेगा ब्रेक, 15 दिसम्बर 2016 से मलमास होगा आरम्भ..

malmass

सूर्य के बृहस्पति की धनुराशि में गोचर करने से 15 दिसम्बर 2016 से खरमास शुरू हो जाएगा। यह स्थिति 14 जनवरी 2017 तक रहेगी। इस कारण मांगलिक कार्य नहीं होंगे। जैसे ही 15 दिसंबर को सूर्य ग्रह धनु राशि में प्रवेश करेगा। मलमास शुरू हो जाएगा और इसी के साथ शादी विवाह पर ब्रेक लग जाएगा। ज्योतिषाचार्य 15 दिसंबर 2016 को ग्रहों का राजा सूर्य रात 8:53 बजे धनु राशि में प्रवेश करेगा। मलमास प्रारंभ हो जाएगा।

मलमास में सूर्य धनु राशि का होता है। ऐसे में सूर्य का बल वर को प्राप्त नहीं होता। 16 दिसंबर से 14 जनवरी 2017 तक मलमास रहेगा। वर को सूर्य का बल और वधू को बृहस्पति का बल होने के साथ ही दोनों को चंद्रमा का बल होने से ही विवाह के योग बनते हैं। इस पर ही विवाह की तिथि निर्धारित होती है।

इस दिसंबर माह में मात्र छह मुहूर्तों में फेरे लिए जा सकेंगे और उसके बाद फिर धनुर्मास (मलमास) शुरू हो जाने से विवाह संस्कारों पर एक माह के लिए रोक लग जाएगी। साथ ही अनेक शुभ संस्कार जैसे जनेऊ संस्कार, मुंडन संस्कार, गृह प्रवेश भी नहीं किया जाएगा। हमारे भारतीय पंचांग के अनुसार सभी शुभ कार्य रोक दिए जाएंगे। मलमास को कई लोग अधिक मास भी कहते हैं। अधिक मास कई नामों से विख्यात है। इस महीने को अधिमास, मलमास, और पुरुषोत्तममास के नाम से पुकारा जाता है। शास्त्रों में मलमास शब्द की यह व्युत्पत्ति निम्न प्रकार से बताई गई हैः—
‘मली सन् म्लोचति गच्छतीति मलिम्लुचः’

अर्थात् ‘मलिन (गंदा) होने पर यह आगे बढ़ जाता है।’

हिन्दू धर्म ग्रंथों में इस पूरे महीने (मल मास/खर मास में) किसी भी शुभ कार्य को करने की मनाही है।जब गुरु की राशि में सूर्य आते हैं तब मलमास का योग बनता है। वर्ष में दो मलमास पहला धनुर्मास और दूसरा मीन मास आता है। सूर्य के गुरु की राशि में प्रवेश करने से विवाह संस्कार आदि कार्य निषेध माने जाते हैं | विवाह और शुभ कार्यों से जुड़ा यह नियम मुख्य रूप से उत्तर भारत में लागू होता है जबकि दक्षिण भारत में इस नियम का प्रभाव शून्य रहता है। मद्रास, चेन्नई, बेंगलुरू में इस दोष से विवाह आदि कार्य मुक्त होते हैं।

अगले वर्ष यानी 15 जनवरी 2017 से फिर विवाह के मुहूर्त शुरू होंगे। सूर्य के मलिन होने से शुभ कार्यों पर विराम लग जाता है। ज्योतिषाचार्य खरमास में सूर्य धनु राशि में प्रवेश करेगा और मकर संक्रांति तक इसी स्थिति में रहेगा। इस बीच 01 फरवरी 2017 (बुधवार) को अबूझ मुहूर्त है क्योंकि उस दिन वसंत पंचमी आएगी। तब किसी चीज का बल नहीं देखा जाता इसलिए सर्वाधिक शादियां और सामूहिक विवाह इसी दिन आयोजित किए जाते हैं।

मान्यता है कि सूर्य जब धनु राशि में विद्यमान होता है तो इस दौरान मांगलिक कार्य शुभ नहीं माने जाते। इस दौरान सूर्य मलिन हो जाता है। चूंकि विवाह के लिए सूर्य एक महत्वपूर्ण कारक ग्रह है, इसलिए मलमास/खरमास में विवाह पर रोक रहेगी।हमारे पंचांग में तिथि, वार, नक्षत्र एवं योग के अतिरिक्त सभी मास के कोई न कोई देवता या स्वामी हैं, परंतु मलमास या अधिक मास का कोई स्वामी नहीं होता, अतर् इस माह में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य, शुभ एवं पितृ कार्य वर्जित माने गए हैं।

दिसंबर के छह मुहूर्त में यदि ब्याह संस्कार नहीं किए गए तो खरमास के कारण एक माह तक फिर इंतजार करना पड़ेगा। इस अवधि में सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करने के कारण विवाह जैसे शुभ संस्कार संपन्न नहीं किए जा सकेंगे। मकर संक्रांति के बाद जब सूर्य उत्तरायण की स्थिति में आएगा तब तिल, गुड़ का दान करने के बाद पुनःशुभ संस्कार शुरू होंगे।

सूर्य के मलीन होने से नहीं होते शुभ कार्य—

खरमास में सूर्य जो है वह धनु राशि में प्रवेश करेगा और मकर संक्रांति तक इसी स्थिति में रहेगा। मान्यता है कि सूर्य जब धनु राशि में विद्यमान होता है तो इस दौरान मांगलिक कार्य शुभ नहीं माने जाते। इस दौरान सूर्य मलीन हो जाता है। चूंकि विवाह के लिए सूर्य एक महत्वपूर्ण कारक ग्रह है इसलिए धनुर्मास में विवाह पर रोक रहेगी।

दिसंबर में होंगें केवल छह विवाह मुहूर्त—

दिसंबर 2016 में 4, 7, 8, 12, 13 व 14 दिसंबर को फेरे लिए जा सकेंगे। इसके बाद फिर जनवरी 2017 में 15, 21, 28 व 29, फरवरी में 4, 17, 24 और संवत्सर 2072 के आखिरी महीने मार्च 2017 (फाल्गुन) में मात्र दो मुहूर्त 5 व 10 मार्च ही है।

15 जनवरी 2017 को होगा पहला सावा—
15 जनवरी 2017 से 22 जनवरी 2017 के बीच शादी विवाह के लिए शुभ मुहूर्त होने के कारण शहनाइयों की गूंज 23 जनवरी से शुरू होगी। इसके बाद पूरे साल शादी विवाहों की धूम रहेगी |

मलमास हटने के बाद पहला सावा जनवरी में 15, 21, 28 व 29, फरवरी में 4, 17, 24 और संवत्सर 2072 के आखिरी महीने मार्च फाल्गुन में मात्र दो मुहूर्त 5 व 10 मार्च ही हैं।
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महात्‍म्‍य से भ्‍ारा है मलमास—

मलमास में मांगलिक कार्य नहीं किए जाते। फिर भी, धार्मिक साधना,दान, पुण्य के लिहाज से इस मास की बहुत महिमा बताई गई है। ऐसी मान्यता है कि इस मास के स्वामी स्वयं भगवान विष्णु हैं। इस माह में पुरुषोत्तम की उपासना से सभी पापों का क्षय हो जाता है।

शास्त्रानुसार-
यस्मिन चांद्रे न संक्रांतिर् सो अधिमासो निगह्यते
तत्र मंगल कार्यानि नैव कुर्यात कदाचन्।।
यस्मिन मासे द्वि संक्राति क्षयर् मासर् स कथ्यते
तस्मिन शुभाणि कार्याणि यत्नतर् परिवर्जयेत।।

अर्थात जिस माह में सूर्य संक्रांति नहीं होती वह अधिक मास होता है। इसी प्रकार जिस माह में दो सूर्य संक्रांति होती है वह क्षय मास कहलाता है। इन दोनों ही मासों में मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं, परंतु धर्म-कर्म के कार्य पुण्य फलदायी होते हैं।
शास्त्रों के अनुसार पुरुषोत्तम मास में किए गए जप, तप, दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। सूर्य की बारह संक्रांति होती हैं और इसी आधार पर हमारे चंद्र पर आधारित 12 माह होते हैं। हर तीन वर्ष के अंतराल पर अधिक मास या मलमास आता है।

धर्म ग्रंथों में ऐसे कई श्लोक भी वर्णित है जिनका जप यदि पुरुषोत्तम मास में किया जाए तो अतुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है। अगर अतुल्य पुण्य की प्राप्ति चाहते हैं तो श्रीकौंडिन्य ऋषि के इस मंत्र का जप करें-

गोवर्द्धनधरं वंदे गोपालं गोपरूपिणम्।
गोकुलोत्सवमीशानं गोविंदं गोपिकाप्रियम्।।

धर्म ग्रंथों में लिखा है कि इस मंत्र का एक महीने तक भक्तिपूर्वक बार-बार जप करने से अतुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है और व्यक्ति का जीवन सुख -समृद्धि से भर जाता है। इस मंत्र का जाप पीले वस्त्र पहनकर ही करना चाहिए।

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