मुस्लिमों पर मेहरबान यूपी सरकार

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संजय सक्सेना

उत्तर प्रदेश में समाजवादी सरकार बनते ही काम का एक अलग कल्चर नजर आने लगा है।फैसले प्रदेश की जनता को ध्यान में रखने की बजाए कौमों को खुश करने के लिए जा रहे हैं।सब कुछ राजनीति के चश्में से देखा जा रहा है।बात प्रदेश की जनता की नहीं कौमों की हो रही है।अगर मुस्लिम बच्ची है तो उसे तीस हजार रूपए का अनुदान मिलेगा चाहे उसके परिवार की माली हालत जैसी भी हो।मुस्लिम बच्चियों को अनुदान देते समय यह भी नहीं सोचा गया कि किसको इसकी जरूरत है और किसको नही।झोपड़ी से लेकर आलीशान कोठियों में जीवनयापन करने वाली मुस्लिम बच्चचियों को बिना भेदभाव के सरकारी अनुदान दिया जा रहा है। तंगहाली में जीवनयापन कर रही हिन्दू लड़कियों के लिए सरकारी भेदभाव अभिशाप बन गया है।बात यहीं तक सीमित नहीं है, अखिलेश सरकार हिन्दू-मुसलमानों के बीच की खाई को चौरा करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है।अब तो यही लगता है कि हिन्दुस्तान में न सही उत्तर प्रदेश में तो हिन्दू होना अभिशाप बन ही गया है।यह सब तब हो रहा है जबकि हिन्दू-मुस्लिम-दलित आदि सभी ने मिलकर समाजवादी सरकार बनवाई थी।लगता है कि पिता मुलायम की राह पर चलते हुए अखिलेश यादव भी मुल्ला अखिलेश की छवि हासिल कर लेना चाहते हैं।

राजनैतिक जानकार कहते हैं कि पूरे प्रदेश के मतदाताओं ने एकजुट होकर मायावती की तानाशाही सरकार के खिलाफ समाजवादी पार्टी के पक्ष में मतदान किया था।जानकार ही नहीं यह बात सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और मौजूदा मुख्यमंत्री और सपा के प्रदेश अध्यक्ष ने भी चुनावी नतीजे आने के बाद कही थी।हकीकत में भी देखा जाए तो ऐसा ही हुआ था।समाजवादी पार्टी जो कारनामा अपने पूरे जीवन में नहीं कर पाई थी,वह उसने 2012 के विधान सभा चुनाव में कर दिखाया। मुस्लिमों और यादवों की पार्टी समझी जाने वाली सपा को अबकी से ठाकुरों,ब्राहम्णों,कायस्थों, वैश्य समाज,पिछड़ों सभी ने गले लगाया।उम्मीद यही थी कि युवा मुख्यमंत्री की सोच का दायरा बढ़ा होगा,वह सभी वर्गो को साथ लेकर चलेगें,लेकिन जिस तरह से एक कौम विशेष के कुछ नेता अपने हित साधने में लगे हैं उससे तो यही लगता है कि समाजवादी सरकार एक कौम विशेष की सरकार होकर रह गई है।

अभी तक अखिलेश सरकार ने जितने भी बड़े फैसले लिए हैं उसमें मुसलमानों के हितों का ही ध्यान रखा गया है।चाहें मुस्लिम बच्चियों को अनुदान देने की हो या फिर वक्फ की सम्पति को सुरक्षित रखने के लिए सरकारी खर्च पर बांउड्री वाॅल के निर्माण का फैसला सब कुछ वोट बैंक की राजनीति को ध्यान में रखकर लिया जा रहा है।चर्चा यह भी है कि सीरियल ट्रेन बम धमाकों के आरोपियों सहित अन्य कई माममों में बंद दहशतगर्दा को भी सरकार क्लीन चिट दिलाने की फिराक में है।मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में उर्दू माध्यम के स्कूल खोलने जाने की योजना को अमली जामा पहनाने का काम शुरू हो गया है।सभी सरकारी कमीशनों ,बोर्डो और कमेटियों में कम से कम एक अल्पसंख्यक प्रतिनिधि को सदस्य नियुक्त किए जाने के आदेश भी हो चुके हैं। पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को पुनः राष्ट्रपति भवन पहुंचाने के लिए भी समाजवादी पाटी्र आगे आ गई है।डा कलाम की निष्ठा और ईमानदारी पर कोई सवाल नहीं खड़ा किया जा सकता है लेकिन उनको भी मोहरा बनकर सपा सरकार मुसलमानों को लुभाने की कोशिश में है। ऐसे ही तमाम फैसले आगे भी देखने को मिलेगें,इसमें कोई संदेह नहीं है।

अखिलेश सरकार जिस तरह से फैसले ले रही है उससे तो यही लगता है कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी नहीं कौमी सरकार काम कर रही हो।जब इस संबंध में समाजवादी नेताओं से पूछा जाता है तो सपा नेता कहते हैं कि मुस्लिम हितों से जुड़े फैसलों का जिक्र समाजवादी पार्टी ने अपने घोषणा-पत्र में कर दिया था,लेकिन उनका घोषणा पत्र कितने लोगों के हाथों में पहंुचा होगा यह भी सोचने वाली बात है।बताते हैं कि समाजवादी पार्टी ने अपने घोषणा पत्र की मात्र पांच लाख प्रतियां छपवाईं थी।इसमें आम मतदाता के पास कितनी प्रतियां पहुंची यह कोई नहीं जानता,लेकिन यह संख्या एक लाख भी नहीं होगी,बाकी प्रतियां तो समाजवादी कार्यकर्ताओं और नेताओं ने अपने ही पास रख ली थीं।

समाजवादी पार्टी ने मुस्लिम हितों के नाम पर तुष्टिकरण का जो रास्ता चुना है,उससे भले ही पार्टी को फायदा हो जाए,लेकिन प्रदेश का इससे भला नहीं होने वाला है।एक तरफ अखिलेश सरकार मुस्लिम हितों के नाम पर अन्य कौमों को छल रही हैं,वहीं दूसरी तरफ उस पर फिरकापरस्तों का दबाव भी बढ़ता जा रहा है।एक तरफ मुसलमानों को खुश करने के लिए सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव दिल्ली की जामा मस्जिद के ईमाम के आगे नतमस्तक हैं तो दूसरी तरफ अपनी मुल्ला मुलायम की पुरानी छवि को दोबारा हासिल करने का उतावलापन भी उनके चेहरे पर दिख रहा है।इसी उतावलेपन के कारण ईमाम बुखारी जैसी शख्सियतें समाजवादी पार्टी पर हावी होती जा रही हैं।

हालात यह है कि तुष्टिकरण की राह पर चल रही अखिलेश सरकार के खजाने का बड़ा हिस्सा मुसलमानों को खुश करने में खर्च हो रहा है।जिसके चलते बेराजगारों को भत्ता,हाईस्कूल पास बच्चों को टैबलेट और इंटर पास बच्चों को लैपटाप की घोषणा नहीं हो पा रही है।इन योजनाओं को लागू करने में आ रही बाधाओं को दूर करने का गंभीर प्रयास क्यों नहीं किया,यह बताने वाला अखिलेश सरकार में कोई नहीं है।जबकि इस बात का चुनाव के दौरान सबसे अधिक प्रचार हुआ था।अखिलेश मुसलमानों में अपनी पैठ बनाने के लिए पिता की तरह मुल्ला अखिलेश बनने को बेताब लग रहे हैं।इसी लिए उनके इर्दगिर्द मुस्लिम चाटुकारों का जमावड़ा बढ़ता जा रहा है।ऐसे चाटुकारों की भले ही अपने समाज में कोई हैसियत न हो लेकिन सपा सरकार की आॅख का तो वह नूर बने ही हुए हैं।इन चाटुकारों के कारण सिर्फ एक माह पुरानी सरकार में बिखराव दिखने लगा है।आजम खाँ जो पार्टी में वापसी के बाद सपा प्रमुख के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले थे,वह ही नाराज हो गए हैं,जिस तरह से पार्टी ईमाम बुखारी के सामने नतमस्तक दिख रही है,उससे आजम खाँ ही नहीं पार्टी के अन्य मुसलिम नेताओं में भी नाराजगी के सुर फूटने लगे हैं।आजम तो इस बात से बेहद नाराज हैं कि बुखारी मुद्दे पर पार्टी ने उन्हें किनारे कर दिया।जबकि यह बात किसी से छिपी नहीं है कि बुखारी मुसलमानों के हितों के लिए नहीं अपने और अपने परिवार के हितों को साधने के लिए समाजवादी पार्टी और मुलायम पर हल्ला बोले हुए हैं।समाजवादी पार्टी के नेताओं को समझना होगा कि वह कोई भी फैसला लेते समय उसे राजनीति के चश्मे से न देखे।जो भी फैसला लिया जाए वह प्रदेश की सौ प्रतिशत जनता को ध्यान में रखकर लिया जाए न कि 18-20 प्रतिशत लोगों को लुभाने के लिए।समाजवादी पार्टी को मुसलमानों को सही में आगे ले जाना है तो वह ऐसे मुसलमानों का साथ लें जो तरक्की पसंद हों, जिनकी सोच व्यापक हो और हित अपने परिवार तक नहीं समाज से जुड़े होना चाहिए।

नवनियुक्त उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने सपा सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि सरकार तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है।अंतिम संस्कार तक पर सियासत हो रही है।कब्रगाहों की चहारदीवारी कराने पर रोष जताते हुए बाजपेयी बोले कि हिंदुओं के श्माशानों की उपेक्षा बर्दाश्त नहीं कि जाएगी।

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

2 COMMENTS

  1. फूट डालो और मौज करो, राज करो.
    यथा प्रजा तथा राजा||
    {नहीं गलत नहीं लिखा है, लोकतंत्र में मूर्ख प्रजा ने जिस को सिंहासन पर बिठाया वह जो करे सो अब सहना ही होगा|}
    जब साम्प्रदायिकता ही संवैधानिक है, तो क्या अपेक्षा कर सकते हो?

  2. यह तो होना ही था .मुल्ला मुलायम और क्या कर सकते है ,इस विषय पर सोचने की जरूरत भी नहीं थी.यह मुस्लिम कार्ड इन्हें हीरो बनाएगा इनका यही सोच है.जरूरत विपक्ष को जोरदार विरोध करने की है वह इसलिए संभव नहीं है क्योंकि वह अभी तक सदमे में है.मायावती जानती है की उसने तो राज कर लिया, पांच साल पहले मुलायम हिलने वाला नहीं, इसलिए चोथे व पांचवे साल में कुछ करेंगे. इतने जनता का कच्मुर निकले तो अच्छा है, ताकि उसे भी सबक मिल जाये. उसका भी अपना वोट बैंक है,जो तब तक वापस संभल जायेगा.अब यू पी की जनता ही संघठित हो कर इस सम्प्र्यदायिक भेद भाव का विरोध करे तब ही कुछ होगा.
    राहुल बाबा तो अभी २०१४ तक वहां जायेंगे नहीं क्योंकि वहां विरोध करना केंद्र में महंगा पद सकता है.ममता का तो कोई भरोसा नहीं कब आँख दिखा दे, फिर कहाँ जायेंगे. इसलिए राजनितिक दलों से टी कोई उम्मीद करनी नहीं चाहिए.अन्यथा यह बाप बेटे मायावती से भी बदतर हालत कर देंगे.यू पी की जनता से लोगों को सहानुभूति ही हो सकती है ,बाकि उनकी माली हालत ,कानून व्वयस्था ,और प्रसाशन में कोई सुधार की आशा नहीं.

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