अलविदा -२०१०

श्रीराम तिवारी

काल चक्र की गणना, मानव सभ्यता के जिस मुकाम पर प्रारंभ हुई होगी, सम्भवत वह भारत के पूर्व वैदिक काल और अमेरिकी माया सभ्यता के अवसान का समय रहा होगा. यह सर्वविदित और सर्वकालिक स्थापित सत्य है की भारत में विदेशी आक्रमणों से पूर्व भी उन्नत सभ्यताएं विद्यमान थी.

यह भी सर्वस्वीकार्य सत्य है कि भारत सहश्त्रब्दियों तक कबीलाई और पुरा सामंती द्वंदों से गुजरा है विभिन्न कबीलों के रस्मों-रिवाज और भोगोलिक कारकों ने लोक रूढ़ परम्पराओं और सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टियों का निर्माण किया. यही करण है कि आज; पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण चारों और अनेकानेक सभ्यताओं और संस्कृतियों के पुरावशेष बिखरे पड़े हैं.

ऐतिहासिक दुर्घटनाओं और बाह्य आक्रमणों ने इन भारतीय स्वरूपों को निरंतर अद्द्तन किया और प्रकृति के अबूझ रूपों को देवी या विकराल शक्ति मानने की जगह वैज्ञानिक दृष्टि का श्री गणेश किया. काल गणना के लिए शकों के आक्रमण के दौरान ही गुप्त काल के विद्वानों ने विक्रम और शक संवत का श्री गणेश किया. किसने किया? कब किया? क्यों किया?

इसका सटीक विवरण भारत में संभवत लोप हो चुका है.

समुद्रगुप्त और उसके पूर्व बुद्ध के समकालीन समाजों में वन-महोत्सव, मदनोत्सव, के रूप में सत्रावसान या नए काल खंड का स्वागत किये जाने के अनेक प्रमाण और उल्लेख हैं. रामायण में राम को १४ वर्ष का वनवास दिए जाने की घटना और महाभारत में पांडवों को १२ वर्ष वनवास और तेरहवें वर्ष में आज्ञातवास यह सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त प्रमाण हैं कि भारत में काल गणना का अपना तंत्र विकसित हो चुका था. भले ही वो आज भी संथालों या बस्तर के अंदरूनी भागों में बसे पाषाण युग को प्रतिबिंबित कर रहे आदिवासियों तक न पहुंचा हो.किन्तु हिमालय की तलहटी, गंगा-यमुना के दो आव पञ्चनद प्रदेश तथा दक्षिणा पथ में यह निश्चय ही वैज्ञनिक मापदंड पर कसा जा चुका था.

लव, निमेश, परमाणु, जुग घडी, प्रहर, दिवस, पाख, मॉस, वर्ष, सदी, शताब्दी, युग एवं मन्वंतर इत्यादि शब्द सिर्फ इसीलिए मिथ या अवैज्ञानिक नहीं घोषित किये जा सकते की वे पोथियों, पुरानों और शास्त्रों में दर्ज हैं. जिस तरह आज के अधुनातन वैज्ञानिक भौतिकवादी युग में सब कुछ निरपेक्ष या सत्य नहीं है, उसी तरह पुरा साहित्य और खास तौर से भारतीय काल गणना में सब कुछ गप्प या बकवास नहीं है.

भारत के अधिकांश गाँव में शादी-विवाह, तीज त्यौहार और सोम काम काज अभी भी शक संवत या विक्रमी संवत की काल गणना से निष्पादित होते हैं.अंग्रेजी कलेंडर याने ईसवीं सन की काल गणना को राज्याश्रय प्राप्त होने के कारण और राज -काज में अंग्रेजी की हैसियत पटरानी जैसी होने के कारण उसके कलेंडर को ब्रह्मास्त्र का दर्जा प्राप्त हो गया है. हो सकता है की शेष दुनिया में भारत जैसी काल गणना का नितान्त अभाव हो और वे इस रोमन केलेंडर किन्तु भारत में जब उससे से बेहतर वैज्ञानिकता से सायुज काल कलन का मध्यम उपलब्ध है तो देश के तथा कथित सभ्रांत और पैसे वालों का इसाई केलेंडर के आधार पर नया वर्ष उत्सवी उमंगों से मनाने के निहितार्थ क्या हो सकते हैं? क्या यह धर्म निरपेक्षता का प्रतिनिधित्व करता है? क्या यह भारतीय परिवेश, भारतीय भोगोलिकता, भारतीय समृद्ध सांस्कृतिक चेतना का प् रतिनिधि है?

जहाँ तक ईसवीं २०१० के अवसान पर वैश्विक या भारतीय भू मंडल पर नकारात्मक-सकरात्मक अनुभवों के रेखांकन की बात है तो इस काल खंड में भारत के खाते में बेशुमार उपलब्धियां हैं

{१}.विगत सत्र में दुनिया के शीर्ष-वीटो धारक पांच राष्ट्रों के प्रतिनिधि भारत आये.

{२}वैश्विक भूंख सूचकांक में भारत दुनिया के सबसे निर्धन राष्ट्रों की सूची में ६७ वें स्थान पर पहुंचा.

{३}भारत के एक अमीर आदमी ने २७ मंजिला मकान बनाने में ५००० करोड़ रूपये खर्च किये.

{४}२-जी स्पेक्ट्रम में हुए १७६००० करोड़ रूपये के घपले के लिए राजनीत शर्मसार हुई.

{५}महंगाई बढाने में कृषिमंत्री की वयांवाजी, वायदा वाजार, और चुनाव गत खर्च की भरपाई.

{६}विक्किलीक्स के खुलासे और अमेरिका का चाल चरित्र चेहरा उजागर करने के लिए समर्पित रहा यह वर्ष २०१०.

इसी प्रकार की अनेकों प्राकृतिक राष्ट्रीय, अंतर राष्ट्रीय आपदाओं और मानवीय भूलों के कबाड़े के रूप में वर्ष २०१० से पीछा छुड़ाती देश और दुनिया की मेहनतकाश जनता-नए उजाले, नए सुखमय संसार की असीम आकांक्षाओं के साथ आगत साल {ख्रीस्त }२०१० का हार्दिक स्वागत करने को आतुर है ….सभी साथियों को बधाई ….नूतन वर्ष मंगलमय हो. साल २०११ की शुभकामनाएं ….

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