गोरखा मोर्चे का अलगाववाद

दार्जिलिंग में चल रहे गोरखा आंदोलन ने जो हिंसक रुप धारण किया है, उसके लिए कौन जिम्मेदार है ? गोरखा जनमुक्ति मोर्चा को कहना है कि प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मोर्चे के तीन कार्यकर्त्ताओं की मौत और दर्जनों कार्यकर्ताओं के बुरी तरह से घायल होने के लिए जिम्मेदार है जबकि ममता का कहना है कि यह हिंसा मोर्चे के लोगों ने शुरु की। उन्होंने पुलिस के एक जवान की लगभग हत्या की, दर्जनों पुलिसवालों को अपनी पत्थरबाजी से घायल किया और उन्होंने भयंकर तोड़-फोड़ की। जाहिर है कि इस देश में किसी पुलिस या फौज की इतनी हिम्मत नहीं कि अहिंसक आंदोलनकारियों पर वह गोली चला सके। जब आंदोलनकारी पत्थर चलाएं, आग लगाएं, तोड़-फोड़ करें और बम फेंके तो पुलिस और फौज क्या करे ? चुप बैठी रहे ? उनके आगे हाथ जोड़े ? उनके आगे दंडवत करे ? उन्हें जिस काम के लिए नियुक्त किया गया है, वह उन्हें करना ही पड़ेगा। अब मोर्चे के लोग इतने गुस्साए हुए हैं कि वे ममता-सरकार से बात भी नहीं करना चाहते।
ममता बनर्जी ने यहां तक कह दिया है कि वे पहाड़ी-क्षेत्र के गोरखा बच्चों पर बांग्ला भाषा नहीं थोपेंगी। यह आंदोलन तो इसी बात को लेकर शुरु हुआ है कि बांग्ला भाषा सभी बच्चों के लिए अनिवार्य कर दी गई थी। अब आंदोलन अपने आप खत्म हो जाना चाहिए था लेकिन अब वह पृथक गोरखालेंड की मांग में बदल गया है। यह मांग पुरानी है। अंग्रेज के जमाने से चली आ रही है। सुभाष घीसिंग ने 25-30 साल पहले इसे जमकर उठाया था लेकिन गोरखा-बहुल क्षेत्रों को स्थानीय स्वायत्त प्रशासन देकर शांत कर दिया गया था। अब इस मांग ने इसलिए भी जोर पकड़ा है कि गोरखा जनमुक्ति मोर्चा को भाजपा का समर्थन प्राप्त है। दार्जिलिंग से भाजपा के जसवंत सिंह और एस.एस. आहलूवालिया जीतते रहे हैं। मोर्चे का कहना है कि वह दिल्ली सरकार से बात जरुर करेगा। लेकिन कोलकाता सरकार से कतई नहीं। ममता कहती है कि वे मर जाएंगी लेकिन दार्जिलिंग को बंगाल से बाहर नहीं होने देंगी। इस मामले ने भाजपा के सामने बड़ी दुविधा खड़ी कर दी है। यदि वह पृथक गोरखालेंड का समर्थन करती है तो पूरा प. बंगाल उसके लिए गरम तवा बन जाएगा और यदि वह गोरखालेंड का विरोध करती है तो उसकी लोकसभा सीट खतरे में पड़ जाएगी। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने आजकल बंगाल में भगवा फहराने के लिए काफी जोर लगा रखा है। घबराई हुई तृणमूल कांग्रेस गोरखा मोर्चे के साथ-साथ भाजपा पर भी पिल पड़े तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। केंद्र सरकार को अपने कदम फूंक-फूंककर रखने होंगे।

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