दादी बोली

जितनी ज्यादा बूढ़ी दादी,

दादा उससे ज्यादा|

दादी कहती ‘मैं’ शहजादी,

और दादा शह्जादा|

दादी का यह गणित,

नातियों पोतों को न भाता|

बूढ़े लोगों को क्यों माने,

शह‌जादी ,शहजादा|

दादी बोली,अरे बुढ़ापा,

नहीं उमर से आता|

जिनका तन मन निर्मल होता,

वही युवा कहलाता|

 

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

1 COMMENT

  1. ITS SHAME OUR HINDU WRITERS HAVE NO VISION THEY DON’T WRITE ABOUT THE FUTURE OF HINDUS . LOOK ALL AROUND HINDUS ARE GETTING KILLED AND CONVERTED . THEY DON’T SEE THE DARK FUTURE OF HINDUS AND BUSY WRTING POEMS TO ENTERTAIN THEM.

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