दादाजी से झगड़ रहा था,
उस दिन टंटू पंडा|
मुरगी पहले आई दादा,
या फिर पहले अंडा|
दादा बोले व्यर्थ बात पर,
क्यों बकबक का फंडा|
काम धाम कुछ ना करता तू,
आवारा मुस्तंडा|
इतना कहकर दादा दौड़े,
लेकर मोटा डंडा|
इससे पूछो मुरगी आया,
या फिर पहले अंडा|
दादाजी से झगड़ रहा था,
उस दिन टंटू पंडा|
मुरगी पहले आई दादा,
या फिर पहले अंडा|
दादा बोले व्यर्थ बात पर,
क्यों बकबक का फंडा|
काम धाम कुछ ना करता तू,
आवारा मुस्तंडा|
इतना कहकर दादा दौड़े,
लेकर मोटा डंडा|
इससे पूछो मुरगी आया,
या फिर पहले अंडा|
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रहा है। ऐसे में मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। प्रवक्ता डॉट कॉम इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।