-प्रभात कुमार रॉय
प्रकांड विचारक, अथक अजेय योद्धा, अत्यंत लुभावनी मनमोहक शख्सियत के धनी डा राममनोहर लोहिया सरीखे राजनीतिक नेता आधुनिक भारत में कम ही हुए हैं। अत्यंत विस्मयकारी रूप से डा लोहिया ने आम लोगों और बोद्धिकों को एक साथ प्रभावित किया। अपनी प्रखर देशभक्ति और बेलौस तेजस्वी समाजवादी विचारों के कारण अपने सर्मथकों के साथ ही डा लोहिया ने अपने विरोधियों के मध्य भी अपार सम्मान हासिल किया। जंग ए आज़ादी के अग्रिम पातों के योद्धाओं में शुमार हाने के बावजूद कदाचित अपनी कुर्बानियों का राजनीतिक फायदा उठाने का प्रयास नहीं किया। आजादी के दौर में भी संघर्ष और बलिदान की अविरल परम्परा को कायम रखते हुए, अत्यंत कठिन जीवन की राह को बहुत उल्लासपूर्ण भाव से जीया। शोषित वंचित किसान मजदूरों के लिए गहन संवेदना और पराक्रम लेकर राजनीति करने वाला ऐसा नेता आज के दौर में प्राय: अप्राप्य है।
डा राममनोहर लोहिया ने कहा कि इंसानी जिंदगी को राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, अथवा सांस्कृतिक दायरों में कैद करके कदाचित निरूपित नहीं की जा सकती, वरन् उसके लिए समग्र चिंतन दृष्टि की दरकार है । उन्होने समाजवादी मूल्यों और आदर्शों को केंद्र बिंदु में रखकर एक समतामूलक समाज को निर्मित करने का सपना देखा। राममनोहर लोहिया अकसर कहा करते थे कि मैं चाहता हूं कि इंसान की जिंदगी में राम की मर्यादा, कृष्ण की उन्मुक्त्ता, शिव का संकल्प, मुहम्मद की समता, महावीर-बुद्ध की रिजुता और यीशु की ममता सब एक साथ ही समाहित हो जाए।
दरअसल डा लोहिया ने अपने जिंदगी में भी ऐसी मन की इस स्थिति को बनाने और साधने की भरपूर कोशिश अंजाम दी। वह प्राय: यह भी कहा करते थे कि मेरा तो जन्म ही राम की धरा पर हुआ है। उल्लेखनीय है कि वह 23 मार्च 1910 को फैजाबाद में पैदा हुए। राम, कृष्ण, शिव, महावीर, बुद्ध, मौहम्मद, ईसा, मार्क्स और गॉंधी पर उन्होने बहुत सोचा ,बोला और लिखा। राम की मर्यादा के वह बहुत कायल रहे और रामायण मेला आयोजित करने के वह सूत्रधार बने। यह एक अत्यंत विडंबनापूर्ण तथ्य है कि अकसर लोग लोहिया जी को एक मर्यादा तोड़क के तौर पर निरूपित करते रहे। यह संभवतया इस लिए भी हुआ कि अपनी अभूतपूर्व मौलिकता के कारण उन्होने इस तरह से क्रांतिकारी आचरण किया कि उनकी मर्यादाएं घिसीपिटी रूढिग्रस्त मर्यादाओं से विलग प्रतीत होती है। उदाहरण के लिए विवाह के प्रश्न पर उनकी अवधारणा नारी पुरूष के मध्य पराम्परागत रिवाजों पर निर्मित नहीं हुई।
अपने बाह्य व्यक्तित्व में डा लोहिया एक मामूली कद काठी के सांवले रंग के शख्स में ऐसी क्या बात रही कि उनके इर्द गिर्द अकसर अत्यंत सुदंर महिलाएं घमूती नजर आई। इस विषय में बहुत सी बातें कही सुनी गई। कुछ ने कहा कि डा लोहिया के तेवर अत्यंत आक्रामक रहे, अत: महिलाओं को आक्रमक तेवर वाला यह शख्स पंसद आया। उनके निकटस्थ साथियों का कहना था कि जिस बेबाक तरीके से डा लोहिया ने नारी-पुरूष समानता की पैरवी की, वह अद्भुत रही। शायद यही सबसे अहम कारण रहा कि महिलाएं सहज तौर पर उनके प्रति आकर्षित रही।
बनारस से इंटरमीडिएट और कोलकता से बी ए (आर्नस) प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के पश्चात उच्च शिक्षा के लिए लंदन के स्थान पर बर्लिन का चुनाव किया। मात्र तीन माह में जर्मन भाषा में धारा प्रवाह पारंगत होकर अपने प्रोफेसर जोम्बार्ट को चकित कर दिया। अर्थशास्त्र में डाक्टरेट की उपाधि केवल दो बर्षो में प्राप्त कर ली। जर्मनी में चार साल व्यतीत करके, डा लोहिया स्वदेश वापस लौटे। किसी सुविधापूर्ण जीवन के स्थान जंग ए आजादी के लिए अपनी जिंगदी समर्पित कर दी। डा लोहिया प्राय: कहा करते थे कि उन पर केवल ढाई आदमियों का प्रभाव रहा, एक मार्क्स का, दूसरे गॉधी का और आधा जवाहरलाल नेहरू का।
1934 में आचार्य नरेंद्र देव की कयादत में समाजवादियों का प्रथम सम्मेलन ‘अंजुमन ए इस्लामिया’ पटना में आयोजित हुआ। डा लोहिया ने इसमे विधिवत रूप से समाजवादी आंदोलन की भावी रूपरेखा पेश की। सन् 1935 में पं0 नेहरू ने ही अपने कॉंग्रेस अध्यक्ष कार्यकाल में लोहिया जी को कॉंग्रेस का महासचिव नियुक्त किया। अपने महासचिव कार्यकाल में डा लोहिया ने ही नेशनल कॉंग्रेस में विदेश विभाग शुरू किया। 9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने भारत छोडो़ आंदोलन का ऐलान किया। 1942 के आंदोलन में डा लोहिया ने संघर्ष के नए शिखरों को छूआ। जयप्रकाश नारायण और डा लोहिया हजारीबाग जेल से फरार हुए और भूमिगत रहकर आंदोलन का शानदार नेतृत्व किया। 20 मई 1944 को गिरफ्तार करके लाहौर किले में रखा गया, जहां कि उनका और जयप्रकाश नारायण का ब्रिटिश पुलिस ने अमानुषिक टार्चर किया।
1946 में तकरीबन दो वर्ष के बाद डा लोहिया को रिहाई किया गया। 1946-47 के वर्ष लोहिया जी की जिंदगी के अत्यंत निर्णायक वर्ष रहे, जबकि उनका पं0 नेहरू से मोहभंग हुआ, क्योकि डा लोहिया की राय में पं0 नेहरू ने अपने सिद्धांतो से समझौता करके, सत्ता के लालच में भारत विभाजन स्वीकार किया। जून 1947 की कॉंग्रेस कार्य समिति की बैठक में खान अब्दुल गफ्फार खान, जयप्रकाश नारायण और डा लोहिया ने भारत विभाजन प्रस्ताव का जबरस्त तौर पर मुखर विरोध किया। यहीं से डा लोहिया और पं0 नेहरू के मध्य संबंध का नया अध्याय प्रारम्भ हुआ। लोहिया ने क्षुब्ध होकर कहा कि जवाहर लाल का व्यक्तितव हिमालय के समान है, मै उसे तोड़ तो नहीं सकता, किंतु उसमें दरारे अवश्य पैदा कर दूंगा। सन् 1948 में सोशलिस्ट पार्टी ने विधिवत तौर से कॉंग्रेस से अलग होने का फैसला ले लिया। डा लोहिया की शख्सियत बहुआयामी रही। वह एक ओर तेजस्वी सत्याग्रही रहे, वही दूसरी ओर गहन मौलिक चिंतक। डा लोहिया का कहना था कि भारतीय जातिव्यस्था को मार्क्सवाद के नजरिए से समझा नहीं जा सकता। उनका यह भी मौलिक विचार रहा कि समाजवाद का जो दर्शन भारत में कारगर सिद्ध हो सकता है, उसकी बुनियाद राजनीतिक सत्ता और आर्थिक ताकतों के शानदार विकेंद्रियकरण पर आधारित रहेगी। आचार्य नरेंद्र देव के व्यक्तित्व और विद्वतापूर्ण विचारों के कायल होने के बावजूद, डा लोहिया के उनसे बहुत से प्रश्नों पर प्रखर मतभेद रहे। विचार के नजरिए से वह एक तर्क समपन्न विचारक रहे, किंतु उनकी तर्क प्रणाली कदापि एकांगी नहीं रही। डा लोहिया ने आजादी के दौर में समाजवादी आंदोलन को नए आयाम प्रदान किए। आर्थिक समानता के साथ जातिय समानता और नारी पुरूष समानता की बात प्रखरता के साथ पेश की। नौजवान नेताओं की एक पूरी पीढी को शिक्षित दीक्षित किया और राजनारायण, मधु लिमये, जनेश्वर मिश्र, जार्ज फर्नाडीज, रामसेवक यादव, किशन पटनायक, लाडलीमोहन निगम, जी मुराहरि, रविराय, कर्पूरी ठाकुर, धनिक लाल मंडल, वीपीजी राजू, सुरेंद्र मोहन जैसे कितने ही जबरदस्त नेता देश को दिए। डा लोहिया की विरासत और विचारधारा अत्यंत प्रखर और प्रभावशाली होने के बावजूद आज के राजनीतिक दौर में देश के जनजीवन पर अपना अपेक्षित प्रभाव कायम रखने में नाकाम साबित हुई। उनके अनुयायी उनकी तरह विचार और आचरण के अद्वैत को कदापि कायम नहीं रख सके। संसदवाद की भयावह दलदल ने समाजवादी आंदोलन को निगल लिया। व्यवहारिक राजनीति की विवशता के नाम पर समाजवादी जीवन मूल्यों और आदर्शो की बलि चढा़ दी गई। सांप्रदायिकता और जातिवाद को पूर्णत: ध्वस्त करने का संकल्प लेने वाला महान् समाजवादी आंदोलन स्वयं ही सांप्रदायिकता एवं जातिवाद की भयानक भंवर में डूब गया। लोहिया जी के चिंतन, चरित्र, वाणी और आचरण की परिपूर्ण एकता का अनुगमन न कर सकने के कारण जातिवाद और सांप्रदायिकता के विषधरों ने समाजवादी आंदोलन को लकवाग्रस्त कर दिखाया। अब तो लोहिया जी के समाजवाद के नाम पर देश में मुलायम सिंह, अमर सिंह, लालू यादव और रामविलास पासवान जैसे बहुत से राजनीतिक मौकापरस्त किरदार शेष बचे हैं।
श्रीमान् हिमवंत जी एवं सुनील पटेल जी डा. लोहिया के विषय में लिऐ गए संक्षिप्त लेख
पर अपनं अत्यंत शानदार विचार प्रस्तुत करने के लिए बेहद शुक्रिया। आज हतारे वतन को डा. लोहिया सरिखे बेबाक, प्रचंड देशभक्त एंव समाजवादी व्यक्तित्वों की बहुत दरकार है, जोकि हमारे देश को भ्रष्टाचार अनाचार और अत्याचार से निज़ात दिला सकें और लाखों भारतीय शहीदों के रक्त से सीचीं गई आज़ादी को बचा सकें।
महान् युगद्रष्टा डॉ. राममनोहर लोहिया जी के बारे में बताने के लिए श्री राय जी को धन्यवाद. काश आज के नेता श्री लोहिया जी के आदर्श को अपनाए.
डा. लोहिया के समाधान ने देश को यहां तक ला दिया। अब आगे की राह कौन दिखाएगा। अभी के अमेरिकापरस्त अर्थशास्त्री नेता (मनमोहन, यशवंत, प्रणव, चिदम्बरम) तो देश को बेच डालेंगें।
भारतीय रेल का आधुनिकीकरण रोक कर वायु-सेवाको आगे बढाने के लिए विमानतल बनाए जा रहे है ताकी देश का धन अमेरिका (एवम युरोपीय देशों) के काम आ सके। कम्प्युटर सफ्टवेयर बनाएंगे लेकिन जितना निर्यात नही करेगें उससे कही ज्यादा हार्डवेयर आयात करेंगें। मोबाईल ईक्वीपमेंट भी आयात करेंगें जिससे गावों का धन विदेशो को सौंपा जा सके।
आज देश को डा लोहिया जैसे चिंतक की सख्त आवश्यकता है। दक्षिण एसिया के लोग विश्व के सबसे मेहनती लोगो है। हमारे पास भरपुर प्राक़्रुतिक संसाधन है। लेकिन हमारे पास देशभक्त क्षत्रिय नही है।