जमीनी हकीकत ने फुलाए चिदंबरम के हाथ पांव

0
106

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में नक्सलवादियों की बढ़ती तादाद ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के होश उड़ा दिए हैं। होम मिनिस्ट्री के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि अकेले छत्तीसगढ़ में ही दस हजार से ज्यादा नक्सलाईट्स मौजूद हैं। छग के नक्सल प्रभावित जिले रोजाना ही नक्सली साहित्य उगल रहे हैं, जिससे गृह मंत्रालय काफी हद तक चिंतित नजर आ रहा है।

होम मिनिस्टर के करीबी सूत्रों का कहना है कि अब तक केंद्रीय गृह मंत्रालय यह मान रहा था कि देश भर में करीब दस हजार नक्सली मौजूद हैं, किन्तु खुफिया तंत्र से प्राप्त जानकारी ने मंत्रालय के अधिकारियों की पेशानी पर पसीने की बूंदे छलका दी हैं। जानकारी में कहा गया है कि सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही नक्सलियों की तादाद दस हजार के उपर है।

सूत्रों ने आगे बताया कि छापामार कार्यवाहियों में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा, बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर, जगदलपुर आदि के जंगलों में बंदूक बनाने के अत्याधुनिक उपरणों की बरामदगी से मामला और संगीन हो गया है। माना जा रहा है कि अब नक्सली एके 47 और एके 56 जैसे हथियारों को भी जंगलों में ही तैयार कर रहे हैं। इससे साफ हो गया है कि नक्सली अब देशी हथियारों पर निर्भर नहीं रह गए हैं।

सूत्रों की बात पर अगर भरोसा किया जाए तो नक्सलवादी हथियारों को जमा करने के लिए पैसा पानी की तरह बहा रहे हैं। बंदूक, गोली और गोला बारूद को खरीदने की गरज से नक्सलवादी दुगनी तिगनी कीमतें भी अदा कर रहे हैं। सूत्रों ने स्वीकार किया कि नक्सलविरोधी केंद्रीय आपरेशन की व्यापक पब्लिसिटी का यह परिणाम है कि नक्सली अपने आप को हथियारों के मामले में और अधिक संपन्न बना रहे हैं।

अब तक दक्षिण से रसद पानी प्राप्त करने वाले नक्सलवादियों के बारे में सूत्रों ने कहा कि अब नक्सलियों के संबंध पूर्वोत्तर के अलगाववादी, आतंकवादी संगठनों से काफी गहरे हो रहे हैं। उल्फा और बोडोलेंड के संगठनों से नक्सलियों की सांठगांठ की बात भी सामने आई है। कहा जा रहा है कि इन संगठनो से नक्सलियों ने जमीन से हवा में मार करने वाले प्रक्षेपास्त्र, राकेट लांचर जेसी खतरनाक मशीने भी खरीदी हैं।

हाल ही में केंद्रीय सुरक्षा बल (सीआरपीएफ) की बटालियनों की मध्य प्रदेश से वापसी से नक्सलवादी गतिविधियां मध्य प्रदेश में भी बढ़ने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है। वैसे भी मध्य प्रदेश के बालाघाट, मण्डला और डिंडोरी जिलों के जंगल इन नक्सलियों की शरण स्थली के लिए काफी हद तक मुफीद माने जाते रहे हैं। गौरतलब होगा कि पूर्व में सूबे के परिवहन मंत्री लिखी राम कांवरे की भी उनके गृह जिले बालाघाट में इन नक्सलियों ने गला रेतकर निर्मम हत्या कर दी थी।

-लिमटी खरे

Previous articleआधी धोती वाले की याद में 11 लाख का पेन!
Next articleहिन्दू परिवार की सदस्य है गोमाता – स्वामी अखिलेश्वरानंद
लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here