वेब मीडिया की बढती स्वीकार्यता

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“बदलाव अवसर लेकर आता है” – निडो क्यूबीन

मानव मन का अध्ययन करने वाले मनौवैज्ञानिकों का कहना है कि हमारा दिमाग वही सुनना चाहता है, जो हम सुनना चाहते हैं। शायद इसीलिए इस लेख का विषय इस तरह रखा गया है ताकि इस विषय पर चिंतन उसी दिशा में हो, जिस दिशा में आयोजकों को इच्छित है। इसमें दोराय नहीं कि मीडिया के तौर तरीके बदल रहे हैं। इसी के साथ वे प्लेटफार्म भी बदल रहे हैं जिनके माध्यम से पाठक मीडिया से रू-ब-रू होता है। इसमें भी कोई दोराय नहीं कि मीडिया में आने वाला समय इंटरनेट आधारित मीडिया या वेब मीडिया का है। सवाल यह है इसका समय आने में अभी कितना समय बाकी है। वेब मीडिया की स्वीकार्यता को समझने के लिए हमें इसके वैश्विक और भारत, दोनों परिदृश्यों में इस पर विचार करना होगा। इसी के साथ स्वीकार्यता को भी रीडरशिप तथा कमाई की क्षमता, दोनों पहलुओं पर परखा जाना चाहिए। विकसित देशों में वेब मीडिया मजबूती से खुद को स्थापित कर चुका है। अमरीका और इंग्लैंड में समाचार-पत्रों की विज्ञापन से कमाई में वृद्धि दर नकारात्मक है जबकि डिजीटल मीडिया करीब क्रमशः 9 और 7 प्रतिशत की दर से बढ रहा है। वहां अखवारों की कुल कमाई में डिजीटल मीडिया का हिस्सा 11 फीसदी हो गया है। इसी तरह रीडरशिप प्रसार में भी परंपरागत समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं की हालत वेब मीडिया के मुकाबले पतली है। पश्चिमी देशों में तो कई स्थापित पत्रिकाओं के ऑफलाइन संस्करण बंद हो चुके हैं और वे अब केवल ऑनलाइन संस्करण में ही उपलब्ध हैं। इस तरह विकसित देशों में वेब मीडिया प्रसार और कमाई, दोनों में ही वेब या इंटरनेट मीडिया को परंपरागत मीडिया पर बढत हासिल है, परंतु मीडिया के इस आधुनिक माध्यम के लिए भारत में अभी स्थितियां इतनी अनुकूल नहीं है। वेब मीडिया की क्षमता और ताकत को लेकर यहां पर जो रूमानी हाइप खडा किया जा रहा है, वह इतना वास्तविक नहीं है जितना कि यह सरसरी नजर से प्रतीत होता है। यहां प्रसार और कमाई दोनों ही मामलों में इसे कई चुनौतियों का सामना करना है।

मीडिया एक विशुद्ध व्यवसाय है या इसमें सरोकार निहित हैं, इस पर बहस की गुजाइंश है, लेकिन मीडिया एक व्यवसाय है, इसमें कोई संदेह नहीं। आप किसी भी व्यवसाय को तभी आगे ले जा सकते हैं यदि यह आपको कुछ कमाई करके दे। इसलिए वेब मीडिया की स्वीकार्यता पर सोच विचार करते हुए हमें इसके प्रसार और कमाई (विज्ञापन और ग्राहक शुल्क) की क्षमता दोनों पर विचार किया जाना चाहिए। हमारे देश में इन दोनों मसलों पर वेब मीडिया अभी प्रारंभिक चरण से गुजर रहा है। पहले प्रसार की बात की जाए। आजकल ज्यादा से ज्यादा लोग इंटरनेट का इस्तेमाल ताजा समाचारों की जानकारी के लिेए करते हैं। लाइव इवेंटस जैसे क्रिकेट मैच, चुनाव परिणाम और आकस्मिक घटना के समय इसकी महत्ता और अधिक हो जाती है। लोगों की जीवनशैली भी इस मीडिया के अनुकूल हो रही है। एक महत्वपूर्ण दिक्कत आधारभूत संरचना की कमी है। अंतरराष्ट्रीय टेलीकम्यूनिकेशन यूनियन के अनुसार भारत में मात्र 13% लोगों के पास ही इंटरनेट कनेक्शन है। इसमें भारत का विश्व में 164वां स्थान है। इसी तरह सिर्फ 10% लोग ही स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं। इंटरनेट की सीमित पहुंच और इसके मंहगे दाम वेब मी़डिया के रास्ते की मुख्य अडचन है। वैसे भारत की विशाल जनसंख्या के मद्देनजर यह अपेक्षाकृत कम प्रतिशतता भी अपने आप में विशाल बाजार है, लेकिन इस बाजार से पैसा कैसे कमाया जाए, यह अपने आप में अनोखी चुनौती है। व्यवसाय के लिए यह महत्वपूर्ण है कि उसके उत्पादों को लक्षित उपभोक्ता न केवल जाने और पसंद करें, बल्कि इसके लिए कीमत चुकाने को भी तैयार रहें। भारत में इंटरनेट पर उपलब्ध समाचार से संबंधित ज्यादातर सामग्री मुफ्त में उपलब्ध है। इसके लिए पाठकों से कोई कीमत नहीं वसूली जाती। ग्राहक शुल्क की तो संकल्पना यहां सही से लांच भी नहीं की गई है। इस तरह ग्राहकों से अपने उत्पाद की कीमत के तौर पर होने वाली आय, वेब मीडिया के मामले में नगण्य है। इस तरह आय का एक महत्वपूर्ण जरिया खोकर यदि आप मात्र रीडरशिप को ही स्वीकार्यता मानते हैं तो व्यवसाय की दृष्टि से आप हाराकिरी (आत्महत्या करने की एक जापानी परंपरा) ही कर रहे हैं।

अब बात करते हैं मीडिया उद्योग की कमाई के एक अन्य स्रोत की। यह है विज्ञापन से होने वाली कमाई। भारत में इंटरनेट विज्ञापन में पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढोतरी हुई है, परंतु अभी तक यह करोंडों में ही सिमटा हुआ है। इसमें भी ज्यादातर हिस्सा गूगल जैसी कंपनियों के पास है। अमरीका जैसे देश भी जहां प्रसार के मामले में इंटरनेट आधारित मीडिया परंपरागत मीडिया को कडी टक्कर देकर पीछे छोड रहा है, वहां भी इस माध्यम पर विज्ञापन के आंकडे उत्साहवर्धक नहीं है। वहां अखवारों की कुल कमाई में 46% हिस्सा प्रिंट विज्ञापन का है, जबकि डिजीटल विज्ञापन का हिस्सा 11% है। भारत में ज्यादातर मीडिया कंपनियों के डिजीटल और प्रिंट विज्ञापन में अलग-अलग विवरण उपलब्ध नहीं है, लेकिन सामान्य तथ्य यही है कि यहां भी विज्ञापनदाता डिजीटल माध्यम पर विज्ञापन देने में खुद को सहज महसूस नहीं करते। इंटरनेट पर ज्यादातर विज्ञापन लिंक आधारित होते हैं और यह ग्राहक की मर्जी पर रहता है कि वह लिंक पर क्लिक करके विज्ञापन देखे या न देखे। ऐसे में विज्ञापनदाताओं को अपने उत्पाद के लिेए इस माध्यम में वह अटेंशन नहीं मिल पाती, जो प्रिंट मीडिया में सहज ही उपलब्ध है। शायद यही कारम है कि ज्यादातर विज्ञापनदाता अपने प्रचार के लिए इंटरनेट आधारित मीडिया को तरजीह नहीं देते। इस तरह साफ है कि न तो ग्राहक शुल्क और न ही विज्ञापन, वेब मीडिया इन दोनों ही मोर्चों पर ही वस्तुतः बेहाल है। वेब मीडिया से संबंधित साइटस पर ज्यादा से ज्यादा क्लिक और ट्रैफिक तब तक व्यवसाय की दृष्टि से महत्वहीन हैं, जब तक यह का जरिया न बन पाएं।

इसके अलावा एक और बात जो आजकल चर्चा में है, वह वेब मीडिया द्वारा परंपरागत मीडिया का स्थान लेने की है। मतलब वेब मीडिया समाचार-पत्रों को प्रतिस्थापित करने की और बढ रहा है। यह बात सही है कि वेब मीडिया आगे बढ रहा है, लेकिन अपने देश में अभी यह उस स्थिति में नहीं आया है कि समाचार-पत्रों को प्रतिस्थापित कर सके। अमरीका आदि विकसित देशों में समाचार-पत्रों की प्रसार संख्या में लगातार कमी आ रही है। यह रुझान पिछले दो दशकों से जारी है। वहां पर ऑनलाइन मीडिया काफी हद तक प्रिंट मीडिया की जगह ले रहा है, लेकिन हमारे यहां वह स्थिति अभी कोसों दूर है। भारत में समाचार-पत्रों की प्रसार संख्या अभी भी काफी तेज गति से बढ रही है। इनकी अपेक्षाकृत कम कीमतों और भारत में बढती साक्षरता दर की वजह से इनकी वृद्धि संभावना को निकट भविष्य में कोई खतरा नहीं है। वेब मीडिया में भी जो लोकप्रिय साइटस हैं, वे भी परंपरागत अखवारों के ऑनलाइन संस्करण ही हैं।

इन सब चुनौतियों की बाबजूद वेब मीडिया के बारे में एक बात स्पष्ट रूप से कही जा सकती है कि यह माध्यम लंबी दौड का घोडा है और भविष्य इसी का है। भारत में स्मार्टफोन और ब्रॉडबैंड कनेक्शन, दोनों की संख्या और प्रतिशतता बढने वाली है। इसी के साथ वेब मीडिया के लिए उपभोक्ता और अधिक बढेंगे। जापान में इंटरनेट पहुंच का स्तर 98 फीसदी तक पहुंच गया है, भारत में भी इंटरनेट की पहुंच क्रांतिकारी रूप से बढने की उम्मीद है। इसके साथ वेब मीडिया के लक्षित उपभोक्ता युवा है, यह आबादी का वह वर्ग है जिसके पास आज पैसा भी है और प्रोद्योगिकी के साथ सहज तालमेल भी। इस तरह वेब मीडिया की गिरफ्त में समाज का वह वर्ग है जो लंबे समय तक इसके साथ रहने वाला है। ऑनलाइन रिटेल भारत में अपने आप को बेहद मजबूती के साथ स्थापित कर चुका है। फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियां एक ही दिन में करोडों की बिक्री कर परंपरागत विक्रेताओं की नींद उडा चुकी हैं। इसके साथ अब लोग ऑनलाइन भुगतान में भी सहजता महसूस करने लगे हैं। ऐसे में वेब मीडिया उद्यमियों के पास अपनी सामग्री के लिए ग्राहक शुल्क वसूलने की आदतें विकसित करने का स्वर्णिम अवसर है। यदि वे अपने उत्पादों को ग्राहकों की जरूरतों के हिसाब से ढाल पाए तो कोई वजह नहीं है कि वे परंपरागत मीडिया के समकक्ष खुद को खडा न कर पाएं। वेब मीडिया उद्यमियों को चाहिए कि वे प्रसार संख्या को कमाई और विज्ञापन में बदलने के नुस्खे ढूंढें।

प्रबंधन गुरु पीटर ड्रकर ने कहा है कि “उद्यमी बदलाव ढूंढता है, इसका सामना करता है और इसे अवसर में बदलता है।” वेब मीडिया से संबंधित संस्थानों को यही करने की जरूरत है। 

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