पाकिस्तान और चरमपंथी इस्लामी आतंकवाद के बढ़ते कदम

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-नरेश भारतीय-

Terrorism in pakistan

पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ शांति स्थापना का बार बार प्रयास करते भारत ने बहुत समय खो दिया है. हर बार पाकिस्तान की पहल पर युद्ध हुए हैं. भारत आत्मरक्षार्थ ही लड़ा है और हर बार पाकिस्तान को मात भी दी है. लेकिन इस पर भी युद्ध के लिए पाकिस्तान की भूख खत्म होती दिखाई नहीं देती. इसके पीछे जिहाद का उन्माद और कश्मीरी उग्रवादियों के साथ तालमेल बिठा कर वह कश्मीर को हथियाने का अपना हठ बनाए हुए है. भारत ने विश्व के समक्ष यह सिद्ध करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी कि वह पाकिस्तान के साथ शांतिपूर्ण तरीके से परस्पर समस्याएं सुलझाने में विश्वास करता है. लेकिन पाकिस्तान पश्चिमी देशों के क्षेत्रीय हित साधन का माध्यम बना होने के कारण उनके संरक्षण और सहायता के बल पर इतराता चला आया है. उसे अरबों डॉलर की आर्थिक और सैनिक साज़ो-सामान की सहायता, अफगानिस्तान में अमरीका की रणनीति के तहत, पिछले अनेक दशकों में लगातार मिली है. यह तथ्य सर्वविदित है कि उसका अधिकाँश पाकिस्तान ने भारत के विरुद्ध  अपनी जिहादी लड़ाई लड़ने में किया है. इस सत्य के साथ साक्षात्कार के बावजूद अमरीका और ब्रिटेन पाकिस्तान को इस मार्ग पर चलने से रोकने में सचेष्ठ नहीं हुए. अलकायदा से जुड़े तालेबान के खिलाफ ड्रोन हमलों से अमरीका ने कोई कार्रवाई की भी है तो सिर्फ अपने हित का ख्याल रखते हुए ही की है. पाकिस्तान ने प्रकट रूप से इस पर आपत्ति की क्योंकि सीमांत क्षेत्रों में इस्लामी कट्टरपंथ न सिर्फ उसके आम जन मन पर हावी है अपितु सेना में भी उसकी गहरी पैठ है. कोई भी पाकिस्तानी सरकार सेना के समर्थन के बिना और चरमपंथियों के विरोध की स्थिति में बनी नहीं रह सकती.

भारत के साथ पाकिस्तान की दुश्मनी जन्मजात है और साम्प्रदायिक पुट लिए हुए है. मज़हबी आधार पर भारत को बांटने की जिन्ना की दशकों पहले पूरी हुई ज़िद और लाखों लोगों की निर्मम हत्याओं से बने पाकिस्तान के इतिहास के पन्ने खून से रंगे पड़े हैं. वर्ष १९४७ से ही कश्मीर पर उसकी आक्रामकता का आधार बिंदु रहा है साम्प्रदायिक द्विराष्ट्रवाद का सिद्धांत. कश्मीर के एक हिस्से पर उसका अवैध अधिकार अभी तक कायम है. पाकिस्तान ने तभी से भारत के विरुद्ध जारी अपने जिहाद में कश्मीर के मुसलमानों को शामिल होने का आह्वान करके उन्हें अपने पक्ष में मोड़ने का भरसक प्रयत्न किया है. घाटी से हिन्दुओं को अपमानित करके मार भगाने में स्थानीय पाक समर्थक मुसलमानों ने उसकी योजना के तहत काम किया. उसके द्वारा छेड़े इस छद्मयुद्ध का कोई अन्त निकट दिखाई नहीं देता. जब कभी भारत पाक शांति वार्ताओं का माहौल बनने लगता है वह अपने पिठ्ठू कश्मीरी अलगाववादियों के साथ विचार परामर्श करने की तत्परता दिखता है.

भारत के नव निर्वाचित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ के साथ मैत्री संपर्क करने में पहल करने की तत्परता दिखाई. सचिव स्तर की वार्ताएं शुरू करने का निश्चय हुआ लेकिन पहली ही ऐसी बैठक से ठीक पहले पाकिस्तान ने दिल्ली में नई सरकार की नाक के तले अपने दूतावास में कश्मीरी अलगाववादियों के साथ मुलाकातों का सिलसिला शुरू कर दिया. यह भारत की सदाशयता और प्रभुसत्ता का अपमान था और पाकिस्तान की निम्न राजनयिकता का एक नमूना भी. मोदी सरकार ने उसकी इस धृष्ठता पर कड़ा रुख अपनाते हुए बैठक रद्द करके उसे जतला दिया कि ऐसी अनाधिकारिक हरकत उसे स्वीकार नहीं है. द्विपक्षीय वार्ता के लिए राज़ी होकर भारत का मूकदर्शक बन कर अपनी धरती पर पाकिस्तान और कश्मीरी अलगाववादियों के बीच सांठ गांठ होते देखना भारत की कमज़ोरी मानी जाती. देश की पिछली सरकारों की तरफ इशारा करते हुए ही पाकिस्तान यह जतलाने में भी पीछे नहीं रहा कि अब तक वह ऐसा ही करता आया है. मोदी सरकार ने इसे विराम दे कर सही में भारत के बदलते तेवरों का परिचय दिया है.

भारत पाक संबंधों का सम्यक विश्लेषण करते हुए किसी का भी इस निष्कर्ष पर पहुंचना कतई ग़लत नहीं है कि पाकिस्तान की हठधर्मिता के बने रहते बातचीत के माध्यम से इनके परस्पर संबंधों में सहजता लाना लगभग असंभव हो गया है. निश्चय ही भारत अनिश्चित काल के लिए पाकिस्तान के इस घुसपैठी जिहाद और उसकी सरज़मीं पर पल बढ़ रहे भारत विरोधी आतंकवाद को जारी नहीं रहने दे सकता. भारतीय भूखंड में जैसी परिस्थतियाँ बनती नज़र आ रहीं हैं उनके दृष्टिगत भारत को अपनी रणनीति में आमूलचूल परिवर्तन करने की आवश्यकता पड़ेगी. कुछ नए उभरते गंभीर खतरों के प्रति सचेत रहते हुए ठोस निर्णय लेने पड़ेंगे. अमरीका, ब्रिटेन और अन्य पश्चिमी देश विश्व भर में अपने हितों की रक्षार्थ कहीं भी सैनिक कार्रवाई करने के अपने अधिकार का उपयोग करने से पीछे नहीं रहते. यह अधिकार भारत को भी है और अब उसे इसका उपयोग करने के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है. नई सरकार ने सत्ता में आने के तुरंत बाद अपने पड़ोसी देशों के साथ मेलजोल बढ़ाने की दिशा में प्रभावी कदम उठाए हैं. न सिर्फ विकास से सम्बंधित मामलों पर ध्यान केन्द्रित किया है बल्कि भारत की सामरिक महत्व की आवश्यकताओं की पूर्ति की दिशा में भी त्वरित कदम उठाए हैं. पाकिस्तान ही एकमात्र देश है जिसके साथ सुलह समझौते की दिशा में भारत के द्वारा उठाए गए कदम सफल होने के संकेत नहीं देते.   इसके अनेक विश्लेषण समय समय पर बुद्धिजीवी वर्ग के द्वारा दिए जाते रहे हैं. कुछ ने पाकिस्तान की कठिनाइयों को उसके बचाव में उभारने की कोशिश की है. लेकिन कुछ नहीं बदला. पाकिस्तान की मूलभूत सोच में कोई बदलाव नहीं आया.

इराक और सीरिया में इस्लामी राज्य (आई.एस. आई. एस) की स्थापना के साथ इस्लामी चरम पंथ अपने खूनी पंजे के फैलाव को बढ़ाता जा रहा है. इस्लामी जिहाद के नाम पर निर्मम सामूहिक नरसंहार, स्त्रियों के साथ बलात्कार और बच्चों पर अमानवीय अत्याचार के दृश्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सार्वजनिक चर्चा का विषय बने हुए हैं. अमरीका से प्रतिशोध के बहाने अमरीकी पत्रकारों की हत्याएं और विश्व के इस्लामीकरण अभियान की इसकी मुखरित होती घोषणाओं से पश्चिम में चिंता की लहर दौड़ गई है. अमरीका ने इन चरमपंथियों पर हवाई हमले किए हैं लेकिन उसकी गति को थामने में असमर्थ दिखाई दे रहा है क्योंकि इस क्षेत्र में पुन: युद्ध छेड़ने की गलती को दोहराने से बच रहा है. लेकिन मुख्यभूमि अमरीका को आई. एस. के संभावित हमलों से बचाने पर भी ध्यान केन्द्रित कर रहा है. ब्रिटेन ने भी इस्लामी चरमपंथियों से बढ़ते ख़तरे के प्रति जनता को सतर्क रहने की चेतावनी जारी की है. ब्रिटेन से कई युवाओं के इराक में आई.एस. का साथ देने के लिए जाने की खुफिया रिपोर्टें मिलने के बाद गहरी चिंता व्याप्त है. सरकार ने ब्रिटेन वापस लौटने पर उनके पासपोर्ट ज़ब्त कर लेने की घोषणा कर दी है. देश में सक्रिय मुस्लिम चरमपंथी संगठनों पर कड़ी नज़र रखी जा रही है. सीमाओं पर सुरक्षा बढ़ा दी गई है. देश के अंदर सुरक्षा पुलिस अधिकारियों को व्यापक अधिकार दे दिए गए हैं. किसी पर संदेह होने की अवस्था में उसकी  त्वरित जाँच पड़ताल करने की उन्हें अनुमति दे दी गई है. ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरौन और गृहमन्त्री थरेसा मे ने किसी भी स्थिति का सामना करने की सिद्धता प्रदर्शित करते हुए जनता को आश्वस्त किया है. लेकिन तनाव का वातावरण बनते और सामाजिक सम्बन्ध व्यवस्था बिगड़ते देर नहीं लगती.

जिहाद के नाम पर इराक में नवोदित चरमपंथी इस्लामी संगठन की बढ़ती पैठ को देखते हुए मध्यपूर्व में आस पास के इस्लामी राष्ट्र भी सतर्क हैं. इराक और सीरिया के लोग अपने आस पास चारों तरफ मची तबाही से दरपेश आई. एस. के आगे घुटने टेकने को विवश किए जा रहे हैं. यह बर्बर संगठन इस्लामी राज्य (आई. एस.) इराक के तेलकूप अपने अधिकार में ले चुका है. ऎसी स्थति में उसके पास और सैनिक साज़ोसामान जुटाने के लिए धन का अभाव नहीं रहेगा. आश्चर्य नहीं होगा यदि पश्चिमी देशों में से ही कुछ माध्यमों से उसको सैनिक शस्त्रास्त्र आपूर्ति भी उपलब्ध होने लगे जिनके विरुद्ध वे जिहाद छेड़े हुए हैं क्योंकि पहले भी ऐसा होता आया है.

इस्लामी राज्य (आई. एस.) के द्वारा घोषित जिहाद यदि मध्यकालीन बर्बरतापूर्ण इस्लामी विस्तारवाद के पुनर्स्थापन के ख़्वाब से जुड़ा है तो उसका भयावह स्वरूप विश्व के समक्ष प्रस्तुत करने में वह कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा है. उसने समस्त मुस्लिम जगत का आह्वान किया है कि इस्लाम के नाम पर जिहाद में उसका साथ दे. ऐसा ही आह्वान अफगानिस्तान को अपना केंद्र बनाने वाले इसके पूर्ववर्ती वैश्विक इस्लामी चरमपंथी संगठन अल क़ायदा को भी फिर से अपने पावों पर खड़ा करने में कारगर साबित हुआ है. अलकायदा के वर्तमान मुखिया अयमान अल जवाहिरी ने फुफकार भरी है. अलकायदा जिसका अपना इतिहास दर्जनों ऐसे आतंकवादी हमलों को अंजाम देने की घटनाओं से भरा पड़ा है. अमरीका को लक्ष्य कर अंजाम दिए गए हवाई हमले जिनमें हजारों निरपराधों की हत्याएं हुईं. न्यूयार्क में ट्विन टावर्स पर बहुत बड़े आतंकवादी हमले के बाद इसका सरगना ओसामा बिन लादेन अमरीका का नम्बर एक शत्रु घोषित किए जाने के बाद अफगानिस्तान में जा छुपा. वहां उसने तालेबान के साथ अपना मेलजोल बढ़ाया. पाकिस्तान ने उसे सुरक्षा प्रदान की थी. अमरीका ने पाकिस्तान में ही उसे ढूँढ़ कर उसे मौत के घाट उतारा था.

क्या चरमपंथी संगठन ‘इस्लामी राज्य’ आई. एस. के उभार को अल कायदा में ओसामा बिन लादेन के उत्तराधिकारी आयमन अल जवाहिरी ने प्रतिस्पर्धी चुनौती के रूप में लिया है? या फिर भारतीय भूखंड में ही अपनी  उपस्थिति दर्ज करने के लिए इसे एक अवसर मान कर अपनी पैठ मज़बूत करने की ठानी है. अंतत: आई. एस. और अलकायदा एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा में उतरते हैं या क्षेत्रीय दृष्टि से अपनी अपनी पकड़ मजबूत बनाते हुए एक दूसरे के पूरक बनते हैं इस पर नज़र रहेगी. लेकिन दोनों ही स्थितियों में यदि कुछ निश्चित रूप से अब स्पष्ट दिखाई देता है तो वह यह है कि विश्व को ऐसे इस्लामी चरमपंथ से लहुलुहान करने के षड्यंत्र गति पा रहे हैं. अल कायदा के अल जवाहिरी ने अपने हालिया बयान में भारत को चेतावनी दी है. इससे पूर्व आई. एस. ने भारत के कुछ इलाकों में भर्ती करने के प्रयास शुरू कर दिए थे. स्पष्ट है चरमपंथी इस्लामी उग्रवाद के प्रसार की योजनाएं पाकिस्तान के चरमपंथियों को साथ लेकर गति पा रही हैं.

अल कायदा ने भारतीय भूखंड में अपनी नया केंद्र ‘अलकायदा जिहाद’ के नाम से खोलने की घोषणा करते हुए कश्मीर, गुजरात, केरल और असम में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने की धमकी दी है. भारत की मोदी सरकार के लिए यह एक बड़ी चुनौती है. देशवासियों के लिए यह एक कठिन दौर साबित हो सकता है. लेकिन इस समय देश में एक मज़बूत सरकार है जो अपने कर्तव्य निर्वहन में पीछे नहीं रहेगी. पूरा देश उसके पीछे खड़ा है. गृहमंत्री राजनाथसिंह ने खतरे की संभावना की जानकारी मिलते ही प्रधानमन्त्री को जानकारी दी और इसके जल्द बाद ही देश में ‘हाई अलर्ट’ घोषित कर दिया गया. सुरक्षा व्यवस्थाओं की समीक्षा का दौर शुरू हुआ. विरोधी दल भी सरकार को स्थिति का संज्ञान लेते हुए उचित कदम उठाए जाने की सलाह सरकार को दी. ध्यान देने योग्य है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कश्मीर में पाकिस्तानी सेना के द्वारा युद्धविराम का उल्लंघन जारी रहने की स्थिति में उसे मुंहतोड़ जवाब देने की अनुमति सीमा सुरक्षा बलों को पहले ही दे चुके हैं. चीन की घुसपैठ को रोकने के लिए कदम भी उठाए जा चुके हैं. विकास के मार्ग पर देश को अग्रसर करने वाले कृतसंकल्प राष्ट्रनायक प्रधानमंत्री मोदी और उनके सहयोगी मंत्रीमंडल को अब विनाशकारी तत्वों से जूझने के लिए आपात रणनीति के निर्धारण और उसे कार्यान्वित करने का निर्णय करने का समय भी अब आ पहुंचा है.

यह वक्त विकास और विनाश के बीच चुनाव करने का अवसर भी मुस्लिम समाज को देता है. विकासोन्मुख समूचा विश्व विनाशकारी कथित इस्लामी आतंकवाद के विरुद्ध मार्चा लेने को कृतसंकल्प हो रहा है. इसकी मध्ययुगीन विस्तारवादी बर्बरता के इतिहास को दोहराए जाते कोई नहीं देखना चाहता. विश्व में लोकतंत्र, स्वतन्त्रता और विकास के बढ़ते अवसरों के मध्य विनाश के जिहादी विषकंटक बिखेरने वाले पथभ्रष्ठ इस्लामी तत्व अपने ही मुस्लिम समाज के भी बहुत बड़े शत्रु हैं. ऐसे माहौल में शांति और सुख से रहने वाले मुस्लिम समाज से एक ही प्रश्न पूछने लायक बचा है. वह विनाश चाहता है या विकास? यदि शेष सामान्य समाज की तरह वह भी शांति और विकास का पक्षधर है तो उसे साहस जुटा कर अपने सहधर्मी इन पथभ्रष्टों को रोकना होगा. कुछ ऐसा कर दिखाना होगा जिससे यह लगे कि विनाश के पथ पर धेकेलने वालों के साथ वे बराबर लोहा लेने के लिए अपने अपने देश की सरकार के साथ खड़े हैं।

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