वाहो – वाहो गुरू गोबिन्द सिंह…

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परमजीत कौर कलेर.

वाहो वाहो प्रगटिओ मरद अगंमड़ा वरियाम अकेला…वाहु वाहु गुरू गोबिन्द सिंह आपे गुरू चेला…इस शब्द के बोल सुनकर तो आप समझ ही गए होंगे कि हम किस मर्द अंगमड़े बात कर रहें हैं …जी हां हम बात कर रहें हैं सिखों के दसवें गुरू गोबिन्द सिंह जी की।आज है सिखों के दशम पातशाह गुरू गोबिन्द सिंह जी का जन्म दिवस…जिन्होंने देश और कौम की खातिर अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया…

दसम पातशाह, कलगीधर दशमेश पिता, बाजा वाले, खालसा पंथ के दाते…जी हां हम बात कर रहें हैं सिखों के दसवें गुरू गोबिन्द सिंह जी की …जिनका आज है जन्म दिवस … गुरू गोबिन्द सिंह जी के प्रकाशपर्व को लेकर देशभर में गुरूद्वारों में जगह जगह अखंड पाठ के भोग डाले जाते हैं …नगर कीर्तन निकाले जाते हैं और लंगर लगाए जाते हैं … चारों तरफ माहौल होता है भक्तिमय … हर कोई रंगा नजर आता हैं दशम पातशाह साहिब श्री गुरू गोबिन्द सिंह के रंग में …सभी गुरू हैं उस अकाल पुरख का रूप …जो एक ज्योत और स्वरूप हैं…मगर हम संसारिक लोग अंधे हैं …जो उनके इस रूप को नहीं समझ पाते…देश कौम की खातिर अपने परिवार न्यौछावर करने वाली इस अजीम शख्सीयत का जन्म 22 दिसम्बर 1666 को पटना में हुआ…इनका जन्म माता गुजरी और नौवें पातशाह साहिब श्री गुरू तेग बहादुर के घर में हुआ…पटना के इसी स्थान पर गुरू का बाग , कंगन घाट गुरूद्वारा साहिब हैं…पटना छोड़कर आपका परिवार आनंदपुर रहने लगा…इसी स्थान पर केसगढ़ साहिब गुरूद्वारा है …1675 में गुरू तेग बहादुर जी जब दिल्ली जाने लगे तो …वो अपनी गुर गद्दी गुरू गोबिन्द सिंह जी को सौंप कर चले गए…गुरू गोबिन्द सिंह की दो शादियां हुई …पहला विवाह माता जीत कौर जी जबकि दूसरी शादी सन्दर कौर के साथ हुई…जीत कौर के घर में जुझार सिंह , जोरावर और फतेह सिंह ने जन्म लिया जबकि सुन्दर कौर से अजीत सिंह का जन्म हुआ…गुरू गोबिन्द सिंह जी का बचपन का नाम गोबिन्द राय था…पटना साहिब से आनंदपुर में बुलाकर श्री गुरू तेग बहादर जी ने अपने बेटे को गोबिन्द राय को घुड़सवारी, तीर कमान और बन्दूक चलानी सिखाई….और कई तरह की शिक्षाएं दी।

गुरू गोबिन्द राय का जब जन्म हुआ…तो बालक के जन्म की खुशियां पूरे नगर में मनाई गई…जब बालक गोबिन्द राय का जन्म हुआ था तब गुरू तेग बहादुर जी असम- बंगाल में गुरू जी की शिक्षाओं का प्रचार कर रहें थे…सिख संगत के बीच बालक का नाम रखा गया …माता गुजरी जी ने बालक गोबिन्द को दया करूणा और प्रेम का पाठ तो पढ़ाया ही …साथ ही साहस , वीरता और निडरता की घुट्टी भी पिलाई ।बचपन बेपरवाह होता है…गुरूओं का बचपन भी शरारतों से अछूता नहीं था बालक गोबिन्द राय ने भी बचपन में बड़ी शरारतें की … गोबिन्द राय की उम्र केवल चार साल की थी…जब गुरू तेग बहादुर जी वापिस लौटे जैसे ही उन्होंने अपने घर में कदम रखा तो देखा कि नन्हा बालक दो दल बना कर खेल रहा था…जब गुरू तेग बहादुर ने इस खेल का कारण पूछा …तो उन्होंने निडरता से कहा कि ये यवन है मेरे दुश्मन है इसलिए में ऐसा कर रहा हूं ।खेल खत्म हुआ तो बालक से गुरू तेग बहादुर ने उसका परिचय पूछा… बालक ने दलेरी से कहा मेरा नाम गोबिन्दराय है … और मेरे पिता गुरू तेग बहादुर जी हैं …ये बात सुनकर गुरू तेग बहादुर जी के चेहरे पर चमक आ गई…और झट से बालक ने उनसे पूछा कि आप कौन है तो इस पर गुरू तेग बहादुर जी ने कहा कि मैं आपका पिता हूं…ये सुनते ही बालक ने अपने पिता के चरणों को स्पर्श किया और पिता ने पुत्र को गोद में उठा लिया…उनके गर्व का कोई ठिकाना नहीं रहा…जैसे जैसे बालक गोबिन्द बड़ा होता गया…उस तरह उसकी कारगुजारिया भी बढ़ने लगी…वो अक्सर घड़लेकर गुजरती औरतों के घड़ों को तीर से निशाना लगाते थे…बालक गोबिन्द राय का निशाना इतना अचूक था कि कोई भी घड़ा खाली नहीं जाता था…इसकी शिकायत औरतों ने बालक की माता गुजरी को दी…और उन औरतों को माता गुजरी ने उन्हें पीतल के घड़े दिए…पीतल के घड़े पाकर महिलाओं की खुशी का तो कोई ठिकाना न रहा …जब फिर गोबिन्द राय ने इन घड़ों में निशाना लगाया तो वो इसमें सफल नहीं हो सके…जब माता गुजरी जी गोबिन्द राय को ऐसा करते हुए देखा तो माता ने गुजरी ने बड़े प्यार भरे लहजें में समझाते हुए कहा कि…आपके खेल से किसी की जान जा सकती…मां से मांफी मांगते हुए बालक गोबिन्द ने कहा कि आज के बाद में ऐसा कभी नहीं करूंगा…

गोबिन्द राय कोई साधारण बालक नही था …सन्त महात्मों को इस बात का अहसास हो जाता है …पटियाला के गुड़ाक गांव के भीखन शाह भी पहुंचे हुए फकीर थे…उन्हें सपना आया कि पटना में एक ऐसे पैगेम्बर ने जन्म लिया है…जो ईश्वरीय शक्तियों से शक्तियों से सम्पन्न है…सपना देखने के बाद वो पटना की ओर चल दिए…और पूछते हुए गोबिन्दराय की हवेली में पहुंचे …फकीर ने माता गुजरी से पूछा कि माता जी मैंने सुना है कि आपके घर में पैगम्बर ने अवतार लिया है …ये बात सुनकर माता जी बड़ी हैरान हुई और कहा फकीर बाबा मैं नहीं जानती कि वो पैगम्बर है या कुछ और मेरे लिए तो वो मेरा बेटा है…इतने में गोबिन्दराय बाहर से आए …बालक को देखकर फकीर बाबा ने दो कटोरों में पानी भर कर उससे पूछा ये दोनों कटोरे अलग अलग धर्मों के हैं …मैं देखना चाहता हूं कि तुम्हारी आस्था किस धर्म में है…गोबिन्दराय दोनों कटोरों को छुआ और फिर उन्हें गिरा दिया…भीखन शाह फकीर बड़ी हैरानी से गोबिन्दराय का मुंह देखता रह गया…और माता गुजरी से कहा…तेरा यह बालक कोई साधारण बालक नहीं है …ये बड़ा होकर महान योद्धा, दीन दुखियों का सहायक और किसी धर्म से पक्षपात नहीं करेगा…न ही किसी धर्म से पक्षपात करेगा …मगर जिस धर्म में अनाचार या अधर्म का बोलबाला होगा उसका विनाश करने में भी पीछे नहीं रहेगा…अत्याचारियों का विनाश करेगा…और सभी को अपना बनाकर चलेगा …ये बालक था ईश्वर का अंश…उन्हीं दिनों राजा फतेह चन्द पटना में रहते थे उनके पास किसी चीज की कोई कमी नहीं थी…कमी थी तो बस एक औलाद की…एक दिन राजा अपने खास हितैषी के कहने पर अपनी पत्नी के साथ गुरू तेग बहादुर जी को मिलने आए…बालक गोबिन्दराय हवेली में खेल रहा था फतेहचन्द की पत्नी के बुलाने पर वो उनकी गोद में चले गए…गोबिन्द राय उसकी गोद में बैठे तो उसे ऐसा लगा कि मानो उसकी औलाद प्राप्ति की कामना पूरी हो गई हो…गोबिन्द राय को प्यार दुलार करने के बाद वो अपने महल में आ गई…कुछ महीनों बाद उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई…गोबिन्द राय ने उनकी गोद में बैठकर उनकी बंधी कोख को खोल दिया था…इसके बाद उन्होंने चार पुत्रों को जन्म दिया…इसके बाद राजा और रानी बालक गोबिन्द के भक्त हो गए…

जिस समय गुरू गोबिन्द सिंह जी का जन्म हुआ …तब पूरे भारत पर मुगलों का राज था …मुगल अपनी मनमर्जी कर रहे थे …जुल्म और अत्याचार इस कद्र बढ़ चुके थे कि लोगों को इस्लाम धर्म कबूल करने के लिए तंग किया जाता था…

उस समय भारत पर मुगल शासक औरगंजेब का राज था…उसने हिन्दु धर्म को खत्म करने का पूरा मन बना लिया था …और जुल्मों की इंतहा हो गई…यही नहीं हिन्दुओं को जबरदस्ती इस्लाम कबूल करने के लिए अत्याचार किए जाते थे …कुंवारी लड़कियों के साथ जबरदस्ती और धक्केशाही की जाती थी …मुगलों के इन अत्याचारों के आगे हिन्दु कायर और डरपोक बन चुके थे …कोई भी ऐसा महान योद्धा नहीं था जो मुगलों के खिलाफ आवाज उठा सकता …उधर बालक गोबिन्द राय की बहादुरी देखिए…उम्र महज दस साल…न इस बच्चे का कोई सलाहकार और न ही कोई पंथ प्रदर्शक…आसरा था तो सिर्फ उस सच्चे पातशाह का….एक ओर औरगंजेब गोबिन्द राय से टक्कर लेने के लिए तैयार बैठा था तो दूसरी ओर पहाड़ी राजे…1675 ई. को आनन्दपुर में बाल गुरू को शोभामान किया गया…औरगंजेब के कश्मीरी पंडितो के अत्याचार इस कद्र बढ़ चुके थे…जिसके कारण गुरू तेग बहादुर जी काफी चितिंत थे …बालक गोबिन्द ने उनकी चिन्ता का कारण पूछा…पिता ने अपनी सारी व्यथा पुत्र को सुनाई…और लोगों को अत्याचारो बचाने के लिए किसी सूरमा की जरूरत है तो बालक गोबिन्द ने कहा कि पिता जी आपस बढ़कर और कौन सूरमा हो सकता…बालक गोबिन्द के बोल गुरू जी हृदय पर लग गए और गुरू तेग बहादर जी ने शहीदी प्राप्त की…सम्पूर्ण मानव भलाई के लिए गुरू तेग बहादुर जी ने बलिदान दिया…

कलगीधर दशमेश पिता की शूरवीरता और बहादरी की मिसाल को कोई भूले से भी नहीं भूल सकता …उन्होंने डरपोक हो चुके हिन्दुओं को बहादुरी और वीरता का पाठ पढ़ाया… मुगल शासक औरगंजेब ने तो जुल्म की इंतहा कर दी और जुल्म की सारी हदें तोड़ डाली……हिन्दुओं में आपसी कलह के कारण जुल्मों का विरोध नहीं हो रहा था… इन्हीं जुल्मों के खिलाफ आवाज उठाई दशम पिता गुरू गोबिन्द सिंह जी ने…उन्होंने निर्बल हो चुके हिन्दुओं में नया उत्साह और जागृति पैदा करने का मन बना लिया…इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए गुरू गोबिन्द सिंह जी ने 1699 को बैसाखी वाले दिन आनन्दपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की…ऊंच नीच मिटाने और सब में आपसी भाईचारा कायम करने के लिए 1699 को बैसाखी वाले दिन गुरू गोबिन्द सिंह जी ने कड़ी परीक्षा ली सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि कौन व्यक्ति अपना सिर देने को तैयार है भरी सभा में से केवल पांच व्यक्ति ही आगे आए…इनमें दयाराम लाहौर का खत्री, धर्मदास दिल्ली का जाट, हिम्मतराय उड़ीसा का कहार, मोहकम चंद गुजरात का धोबी और साहब चंद महाराष्ट्र का नाई था…इन पांचो व्यक्तियों को पांच प्यारों का नाम दिया गया और कलगीधर दशमेश पिता ने इन्हें अकालपुरख का ध्यान करने को कहा उनको अमृत छकाया और खुद उनसे अमृत छका …इन पांच प्यारों के नाम के साथ सिंह शब्द लगाया गया…इसलिए तो कहा भी गया है …

वाहो वाहो गोबिन्द सिंह आपे गुरू चेला

इसके बाद कई लोगों ने अमृत छका और गुरू के रंग में रंग गए…

मानवता का हमेशा भला करने वाले इस संत सिपाही का साहस तो अदम्य था। दशम पातशाह गुरू गोबिन्द सिंह जी दुनिया का उदार करने के लिए आए थे…जिन्होंने जात पात में फंसी जनता की बेड़ियों को तोड़ा और सभी को एकता का पाठ पढ़ाया…कोई भी संत महात्मा इस धरती पर अवतार धारण कर आते हैं तो वो हमें सिर्फ एक ही उपदेश देते हैं परमात्मा से मिलने का…वो चाहे यशु मसीह हो , मुहम्मद साहब, गुरू गोबिन्द , भगवान राम ,सबका केवल एक उपदेश हैं प्रभू का नाम जपना और उसकी रज़ा में रहना …गुरू गोबिन्द सिंह जी का पूरा जीवन इसकी मिसाल था… गुरू गोबिन्द सिंह जी ने नौ बरस की उम्र में अपने पिता को बलिदान के लिए प्रेरित किया…चारो बेटों और माता गुजरी को देश की खातिर न्योछावर कर दिया और कहा…

चार मुए तो क्या हुआ जीवित कई हजार

इतिहास गवाह है कि दशम पातशाह साहिब श्री गुरू गोबिन्द सिंह जी ने मानवता भलाई के लिए अपना पूरा परिवार कुर्बान कर दिया था….साध संगत की सेवा करते हुए गुरू गोबिन्द सिंह जी ने अपना पूरा जीवन व्यतीत कर दिया…हजूर साहिब नंदेड़ में गुरू गद्दी श्री गुरू ग्रंथ साहिब को सौंप दी…श्री गुरू ग्रंथ साहिब में अलग -2 धर्मों की बाणी दर्ज है…इसलिए ये सबका सांझा है…1708 ई. हजूर साहिब नदेड़ में बलिदान और त्याग की मूर्त गुरू गोबिन्द सिंह जी ज्योति जोत समां गए…

वो साध संगत को ही अपना परिवार मानते थे…गुरू गोबिन्द सिंह जी भगवती मां शक्ति रूप के उपासक थे…उन्होंने चंडी चरित्र नामक भगवती की स्तुति की रचना की…उन्होंने उतराखंड के लक्ष्मण कुंड के निकट प्रभू की भक्ति की…जिसे हम हेमंकुड के नाम से जानते हैं….यही पर दशम पातशाह ने भगवती की शक्ति हासिल कीथी…जाप साहिब, अकाल उस्तति,बचित्र नाटक, चंडी चरित्र की रचना की …गुरू गोबिन्द सिंह जी का प्रकाशपर्व बड़ी ही श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है…सारा दिन गुरूद्वारों में गुरु गोबिन्द सिंह की स्तुति में शब्द कीर्तन होता है…अखंड पाठ के भोग के डाले गए और लंगर लगाए जाते हैं…गुरूद्वारों में धार्मिक कार्यक्रम होते हैं और सबके भले के लिए अरदास की जाती है…और इस संबंध में प्रभात फेरिया लगाई जाती हैं…सभी ऊंच नीच का भेदभाव मिटाकर गुरू घर की सेवा में तल्लीन नज़र आते हैं…हमें मनुष्य जीवन 84 लाख योनियों भोगने के बाद मिला है…इस लिए हम सभी का जीवन का उदेदश्य तभी पूरा होगा …जब गुरूओं के बताए मार्ग पर चले …जीवन में चाहे दुख आएं चाहे सुख आए …उसकी मौज समझ कर रहें अर्थात् परमात्मा की रज़ा में रहें…जैसे गुरू गोबिन्द सिंह जी रहे परमात्मा की मौज में

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