गुरु हरकृष्ण धिआईएै….

harkishan ji ( गुरु हरकृष्ण जयंति विशेष 23 जुलाई)

परमजीत कौर कलेर

गुरु हरिकृष्ण धिआईए जिस डिठै सब दुख जाए ।।गुरबाणी की इस पंक्ति को सुनकर आपने अंदाजा लगा लिया होगा कि हम किन गुरु साहिबान की बात कर रहे हैं…तो आपने ठीक अंदाजा लगाया… जी हां हम बात कर रहें हैं  सिखों के आठवें गुरु… हरिकृष्ण जी की जिनका आज है गुरुपर्व यानि कि प्रकाशपर्व ।

वो अकाल पुरख, सच्चा पातशाह जिसे चाहता है उसे ही अपना प्यार बख्शता है…उस परमात्मा ने अपनी लौ में किसको ,कब और किस उम्र में मिलाना है वो ही जानता है …महज  पांच साल  की उम्र में  गुरु हर कृष्ण जी को  गुरु गद्दी सौंपी गई। बेशक लोगों ने इस पर ऐतराज किया …मगर वो हुक्म में रहे थे उस अकालपुरख

श्री गुरु हरकृष्ण जी सिखों के आठवें गुरु थे …इनके जन्म की तारीख के संबंध में विद्वानों में मतभेद है …कुछ विद्वानों का मानना है कि इनका जन्म 7 जुलाई 1656 में हुआ…तो कुछ का कहना है कि इनका जन्म 23 जुलाई 1656 में पंजाब की पवित्र धरती कीरतपुर में हुआ…गुरु हरकृष्ण जी का जन्म पिता गुरु हर राय और माता कृष्ण कौर जी के घर में हुआ…जो अपने माता पिता के दूसरे पुत्र थे। राम राय गुरु हरिकृष्ण जी के बड़े भाई थे…मगर गुरु हरराय जी ने गुरु गद्दी अपने बड़े पुत्र को न देकर छोटे पुत्र हरकृष्ण जी को सौंपी…जब एक बार किसी शख्स ने गुरु हर राय से पूछा कि आपके दोनों पुत्रों में से गुरु गद्दी का वारिस कौन बनेगा …इस पर गुरु जी ने दोनों पुत्रों की परीक्षा ली…जब राम राय और हरकृष्ण जी पलंग पर बैठकर गुरुबाणी का पाठ कर रहे थे तो गुरु जी ने एक सुई मंगवाई…उन्होंने  सुई पलंग से निकालने के लिए कहा … ये सुई कि गुरु हरकृष्ण जी की ओर गई जो प्रभू भक्ति में लीन थे…मगर  उन्हें सुई चुभने का एहसास तक नहीं हुआ…इस इम्तिहान में हरकृष्ण जी पास हुए जो प्रभू का सिमरन करने में लीन थे और वो बड़े ही नर्म दिल थे  …जबकि राम राय सख्त मिज़ाज के थे ..तभी तो सुई उनकी ओर नहीं गई…इस तरह गुरु गद्दी की जिम्मेदारी बाल गुरु हर कृष्ण जी को सौंपी गई…जिसके कारण इनके बड़े भाई राम राय इनकी खिलाफत करने लगे यही नहीं वो मुगलों के साथ मिल गए… इस तरह महज पांच साल की उम्र में गुरु हर कृष्ण जी को गुर गद्दी सौंपी गई…उम्र महज पांच साल जो उम्र बच्चों के लिए होती सिर्फ शरारतों भरे बचपन की …बचपना तो उनमें था ही नहीं …वहीं गुरु हरकृष्ण जी में धीरज, संतोष, दया, उदारचित गुण थे …अन्तर्यामी गुरु हरकृष्ण जी सब कुछ जानते थे…उनके चेहरे का नूर बिल्कुल दूसरे गुरुओं की तरह था…गुरु साहिब जी ने छोटी उम्र में संगत को गुरु शब्द के साथ जोड़ना शुरु कर दिया था और अंध विश्वास में फंसे लोगों को बाहर निकाला । …एक बार मशहूर विद्वान लाल चंद ने गुरु हरकृष्ण की परीक्षा लेने का मन बनाया और उसने गुरु जी से गीता के अर्थ पूछने चाहे …वो बड़ा ही अहंकारी पंडित था…जिसे अपनी पढ़ाई, जात और सूझ समझ का काफी अहंकार था…गुरु हर कृष्ण जी की चारों और प्रशंसा हो रही थी और हर कोई उनमें बड़ी श्रद्धा और आस्था रखता था उनके चेहरे पर एक अलग कशिश थी…साहिब श्री हरकृष्ण जी प्रशंसा सुनकर पंडित जी सहन न कर सके और गुरु जी की परीक्षा लेने का मन बना लिया … उसने कहा कि इस शख्स ने तो श्रीकृष्ण से भी बड़ा नाम रख लिया मैं तो इसे तब मानू अगर ये गीता के अर्थ कर दे …सिखों ने ये बात साहिब श्री गुरु हरकृष्ण तक पहुंचा दी …गुरु हरकृष्ण जी ने प्रसन्न होकर पंडित जी को बुलाने के लिए कहा…इस तरह पंडित गीता समेत कई धार्मिक पुस्तकें उठाकर सतगुरु के दरबार में पहुंचा..अहंकार के गुमान में डूबे पंडित जी ने  गुरु जी के सामने झुकना  तक मुनासिब नहीं समझा..कि वो एक बालक के सामने भला क्यों झुके…मगर गुरु हर कृष्ण जी ने बड़े ही सहज भाव से पूछा…पंडित जी आप गीता के अर्थ सुनना चाहते हो…तो अहंकारी पंडित ने कहा कि आपने अपना नाम श्रीकृष्ण के नाम से भी बड़ा रखा है …हरकृष्ण मैं तो आपको तभी मानूगा अगर आप गीता के अर्थ करके बताओ…सतगुरू जो होते सर्वव्यापी उन्होंने कहा कि पंडित जी आप सोचोगे मैंने गीता को कंठस्थ  कर लिया होगा …इस लिए आप अपनी शंका दूर करने के ऐसा शख्स लेकर आए जो बिल्कुल अनपढ़ हो…गुरु नानक देव जी अपार कृपा से वो भी इसके अर्थ कर देगा…आखिरकार  पंडित जी एक गूंगे और बहरे छज्जू झीवर को लाए…सतगुरु जी ने छज्जू को अपने पास बुलाया और एक सोटी छज्जू के सिर पर रख दी…जिससे छज्जू के कपाट तो खुल ही गए…वहीं उन्हें आत्म ज्ञान भी हो गया…सतगुरु जी ने पंडित जी को कहा बोलो पंडित जी छज्जू राम जी गीता के अर्थ करेंगे..पंडित जी ने श्लोक बोला तो छज्जू राम ने पल भर में श्लोक के अर्थ समझा दिए…इस तरह पंडित जी को अपनी गलती का बेहद पछतावा हुआ और वो गुरु का सिख बन गया…गुरु जी ने समझाया कि अपने मन की सफाई करने के लिए हमें अहंकार , ईर्ष्या त्याग कर अपने ह्रदय को शुद्ध रखना चाहिए…और हर वक्त उस परम परमेश्वर का सिमरन करना चाहिए…हर एक से मीठी वाणी बोलो…सेवा करो अहंकार और मोह का त्याग करो।

गुरु हर कृष्ण जी ने अपने छोटे से जीवन काल में  लोगों को अंधविश्वास से निकाला और साध संगत को गुरु शब्द के साथ जोड़ने के लिए प्रेरित किया…साथ ही आपने ऊंच नीच, जात पात के भेदभाव को खत्म करके सबको समानता और आपसी भाईचारे का पाठ पढ़ाया ।गुरु हर कृष्ण जी बेशक उम्र में छोटे थे लेकिन वो आवाम के लिए बड़े ही अज़ीज थे …उनसे हर एक के संबंध आपसी भाईचारे वाले थे …राजधानी में तो चारों तरफ उनकी प्रसिद्धि थी…इसी दौरान दिल्ली में हैजा और चेचक जैसी बीमारियों का प्रकोप बढ़ गया …मुगलों शासकों को जनता की ज़रा जितना भी फिक्र नहीं थी…लोगों में ऊंच नीच , अमीर गरीब के भेदभाव को खत्म करते हुए गुरु जी ने लोगों में सेवा भावना को प्रफुल्लित किया …मुस्लिम समुदाय के लोग उनकी सेवा भावना से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें बाला पीर कहने लगे…लोगों की उनके प्रति श्रद्धा को देखते हुए औरंगजेब भी उनका कुछ न बिगाड़ सका…जब गुरु हर कृष्ण जी 1644 में दिल्ली पहुंचे तो राजा जय सिंह और सिखों ने उनका बड़ी ही गर्मजोशी से स्वागत किया…गुरु साहिब राजा जय सिंह के बंगले में रूके…यहां पर गुरु जी के दर्शन दीदार के लिए लोग दूर दूर से महल में पहुंचे।उसी समय फैली थी चेचक और हैजा जैसी कई बीमारियां…इन बीमारियों ने इतना गंभीर रूप अख्तियार कर लिया था कि लोगों की मौत के आगोश में जा रहे थे …लोगों को इन बीमारियों से निजात दिलाने के लिए……गुरु जी ने महल में बने सरोवर के पानी से लोगों का इलाज किया…इस तरह दिल्ली निवासियों की बीमारियां काफूर हो गई…इस सरोवर के जल को आज भी पवित्र माना जाता है…मान्यता है कि आज भी अगर कोई बीमार व्यक्ति इस जल को पीता या स्नान करता है तो उसकी बीमारी काफूर हो जाती है…

गुरु साहिब के नाम और  सिमरन में ऐसी ताकत है …उसे तो कोई गुरु का भक्त या प्यारा ही समझ सकता है…यही नहीं कई लोग तो उस अकाल पुरख की परीक्षा भी लेते हैं…जो है सर्वव्यापक और सबके दिलों की जानने वाले… जब गुरु हरकृष्ण जी दिल्ली पहुंचे तो लोगों और राजा जय सिंह ने उनका बड़ा ही तहेदिल और तनदेही से स्वागत किया…यही नहीं राजा जय सिंह ने भी उस अकाल पुरख , सर्वव्यापी , सबके दिलो की जानने वाले साहिब श्री हर कृष्ण जी की परीक्षा ली उसने बहुत सारी औरतों को एक जैसे कपड़े पहनाकर गुरु जी के पास भेजा औऱ इसमें असली महारानी की पहचान करने के लिए कहा…गुरु साहिब जी उनमें से एक की गोद में जा बैठे जो थी असली महारानी …गुरु हर कृष्ण जी ने ही दीवान लगाने रागी , रबाबी, शब्द कीर्तन करना , धर्म उपदेश देना सतगुरु हर कृष्ण जी ने ही शुरु किया था …राजा जय सिंह का बंगला आजकल दिल्ली में गुरुद्वारा  बंगला साहिब के नाम से मशहूर है…गुरु जी के दर्शन दीदार सभी के लिए खुले थे मगर उन्होने औरंगजेब को दर्शन देने से इंकार कर दिया…चैत्र महीने की सुदी की पंचमी वाले दिन उनको बुखार हो गया और इस बुखार के कारण इन्हें चेचक निकल आई…वह बंगला छोड़कर यमुना नदी के किनारे चले गए…गुरु हरकृष्ण जी के बड़े भाई राम राय ने बादशाह को जाकर कहा  जिसकी आप प्रशंसा करते नहीं थकते वो आज चेचक की बीमारी शिकार हुआ पड़ा है…गुरु साहब को जब इस बात का पता चला गुरु साहिब ने कहा कि राम राय की गुरु बनने की ख्वाहिश कभी पूरी नहीं होगी …उसे मसंद जला कर खाक कर देंगे…ये गुरू जी श्राप नहीं था …बल्कि उसके पिछले कर्मों का फल था….और गुरू साहिब के मुख से निकले ये शब्द सच साबित हुए भी ।

वो सच्चा परमेश्वर इतना दयालु होता है कि अपनी साध संगत को कोई भी दुख तकलीफ पेश नहीं आने देता…और खुद अपनी संगत के दुख झेल लेता हैं …लोगों के रोगों , कष्टों को दूर करते हुए श्री गुरु हरकृष्ण जी ने उनका जीवन सुखमय कर दिया और सारा दुख अपने ऊपर ले लिया….चेचक जैसी बीमारी ने उन्हें घेर लिया…आपके इलाज के लिए राजा जय सिंह और औरगंजेब ने हकीम और वैद्य भी भेजे …मगर उन्होंनें इलाज नहीं करवाया और इलाज करवाने से मना कर दिया…सर्वव्यापी परमेश्वर जो सब कुछ जानते थे जब इनकी बीमारी ने गंभीर रूप अख्तियार कर लिया तो इन्होंने अपनी माता को अपने पास बुलाया और कहा कि     मेरा अन्तिम समय नज़दीक है…इसी दौरान एक दिन आपने भारी समागम करवाया और इसमें बाबा बुड्ढा जी के पड़पोते भाई गुरदित्ता जी को पांच पैसे और नारियल सौंप  गुरु गद्दी पर रख दिया और कहा बाबा बकाला। बाबा बकाला नौवे गुरु तेग बहादर जी को संकेत करता था जो उस समय ब्यास नदी के किनारे गांव  बाबा बकाला में रह रहे थे…यही नहीं उन्होने उपदेश किया कि उनके ज्योति जोत समाने के बाद न तो कोई रोएगा …उन्होंने इस मौके पर सिर्फ गुरबाणी के शब्द कीर्तन की सलाह साध -संगत को दी थी…इस तरह बालक प्रियतम प्यारा चैत्र 14 बिक्रमी सम्वत 1921  ….30 मार्च 1664 में वाहेगुरु शब्द उचारते हुए ज्योति जोत समां गए… आज जरूरत है गुरू हरकृष्ण जी के मार्ग पर चलने की …उनका जीवन प्रेरित करता है कि हम भी अपने बच्चों शुरु से भगवान से जुड़ने के लिए प्रेरित करें ताकि वो बुरी आदतों से हमेशा बचे रहे ।

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