गौरवर्णी बादलों की बात

लग रहा है यह

समय का फेर सा है,

बादलों में अब

प्रदूषण ढेर सा है।

 

अब गुलाबी और

कपसीली बदलियाँ लापता हैं,

न रुई के ढेर जैसे

बादलों के कुछ पता हैं।

 

रात के जुगनूं न जा जाने

अब कहां पर खो गये हैं,

ओढ़कर खामोशियां

लगता कहीं पर सो गये हैं।

 

आजकल न दिख रहा है

कोई बादल स्वर्ण जैसा,

न बर्फ के ढेर जैसा

न रजत के वर्ण जैसा।

 

अब न नभ में हाथियों के

शेर के आकार दिखते,

और न ही भालुओं के

चित्र बनते या बिगड़ते।

 

अब गगन में कालिमा है

और विष परिपूर्ण गैसें,

किस तरह अब गौरवर्णी

बादलों की बात सोचें।

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here