-विमलेश बंसल आर्या-
जय हो वीर हकीकत राय।
सब जग तुमको शीश नवाय॥ जय हो…
1. सत्रह सौ सोलह का दिन था,
पुत्र पिता से पूर्ण अभिन्न था।
स्याल कोट भी देखकर सियाय॥ जय हो………
2 वीर साहसी बालक न्यारा,
व्रत पालक, बहु ज्ञानी प्यारा।
कोई न जग में उसके सिवाय॥ जय हो………
3 मुहम्मद शाह का शासन काल था,
असुरक्षित हिंदू का भाल था।
छोटी उम्र में कर दिया ब्याह॥ जय हो………
4 पिता ने दाखिल किया मदरसा
सीखने अरबी, फ़ारसी भाषा।
बड़ा हो अफ़सर नाम कमाए॥ जय हो………
5 देख बुद्धि, कौशल, चतुराई,
दया मौलवी ने बरसाई।
चिढ़ गए सारे मुस्लिम भाई॥ जय हो………
6 मारा पीटा और धमकाया,
साजिश रचकर उसे फंसाया।
ले गए काज़ी पास लिवाय॥ जय हो………
काज़ी बोला-
7 इस्लाम धर्म को करो कबूल,
या फ़िर जीवन जाना भूल्।
जल्लाद से आरी दूं चलवाय॥ जय हो…
वीर बालक बोला-
8 जीना मरना प्रभु की इच्छा,
धर्म, पूर्वजों का ही अच्छा।
हंसकर दे दिया शीश चढ़ाय॥ जय हो…
9 वसंत पंचमी का दिन प्यारा,
अमर हुआ बलिदान तुम्हारा।
विमल यशस्वी गान सुनाय॥ जय हो…
दोहा: तेरह वर्ष की उम्र में जिसने किया बलिदान,
वीर बालक का करें जय जय जय गुणगान
जय हो बालक वीर हकीकत राय।
वीर प्रसूता पुण्य भारत भूमि के अमर शहीद कि कीर्ति दिगदिगंत तक अमर रहेगी. ऐसे ही वीरों कि कुर्बानियों से हमारी संस्कृति पली, बढ़ी और सुरक्षित है. आपकी लेखनी को सादर नमन.